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श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि ॥
अर्थात् - रात्रि में नमस्कार नहीं करना चाहिये, क्योंकि रात्रिमें नमस्कार करने से आशीर्वाद सफल नहीं होता है, इसलिये प्रातःकाल यथोचित (१) पदों का प्रयोग (२) कर नमस्कार और आशीर्वाद का प्रयोग करना चाहिये ॥ १ ॥
परन्तु हमारी सम्मति तो यह है कि यह जो रात्रि में नमस्कार करने का निषेध किया गया है वह मानव (३) सम्बन्ध में सम्भव है कि जहां नमस्कार और आशीर्वाद का प्रयोग होता है किन्तु देव प्रणाम में यह निषेध नहीं जानना चाहिये, देखो ! योगी लोग प्रायः रात्रिमें ही इष्टदेव में चित्त वृत्ति को स्थापित कर नमस्कार और ध्यानादि क्रिया को करते हैं। जैसा कि कहा है कि:
या निशा सर्व भूतानां तस्यां जागर्ति संयमी ॥
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यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो सुनेः ॥१॥ अर्थात्-सब प्राणियों के लिये जो रात्रि होती है उसमें संयमी पुरुष जागता है तथा जिस वेला (४) में प्राणी जागते हैं वह वेला ज्ञानदृष्टिसे देखने वाले मुनिके लिये रात्रि होती है ॥१॥ ( ५ )
इसका तात्पर्य यही है कि संयमी पुरुष रात्रिमें शान्त चित्त होकर जप और ध्यान यादि क्रियाको करता है, इसके अतिरिक्त (६) सहस्त्रों मन्त्रों के जपने और ध्यान करनेका उल्लेख (9) रात्रि में भी है कि जिन के जप समय में देववन्दना (८) आदि कार्य किया जाता है; यदि रात्रिमें देवनमस्कार का निषेध होता तो मन्त्रशास्त्रादि में उक्त विधिका उल्लेख क्यों किया जाता, अतः रात्रि में देव नमस्कार का निषेध नहीं हो सकता है, किन्तु ऊपर जो नमस्कार के निषेध का वाक्य लिखा गया है वह मानव
५- इस
१- यथा योग्य ॥ २- व्यवहार ॥ ३- मनुष्य ॥ ४- समय 11 चाक्य का तात्पर्य यह है कि रात्रि में जब सब प्राणी सो जाते हैं तब संयमी पुरुष सब प्रपञ्चों से रहित तथा शान्त चित्त होकर ध्यानादि क्रिया में प्रवृत्त होता है तथा जिस समय ( दिन में ) सब प्राणी जागते हैं उस समय योगी ( ध्यानाभ्यासी) पुरुष रात्रि के समान एकान्त स्थानमें बैठा रहता है तथा प्रपञ्च में रत नहीं होता है ॥ ६- सिवाय ॥ ७-लेख, विधान, प्रतिपादना ॥ ८-देव नमस्कार ॥
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