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________________ पञ्चम परिच्छेद । ( १८५ ) इन तीनों प्रकारों के नमस्कारों में कायिक नमस्कार को उत्तम माना गया है, क्योंकि कायिक नमस्कार से देव नित्य सन्तुष्ट होते हैं ॥ ८ ॥ दण्डादिरचना के द्वारा जो ( कायिक ) नमस्कार किया जाता हैं कि जिसका कथन पहिले कर चुके हैं; इसीको प्रणाम भी जानना चाहिये ॥ ९ ॥ ( यह सब कालिका पुराण के 90 अध्याय में कहा है ) [ प्रश्न ] उक्त वाक्यों के द्वारा नमस्कार के भेद तथा उनमें उत्तमता; मध्यमता तथा अधमता भी ज्ञात [ १ ] हुई; परन्तु कृपया इस विषय का स्पष्टतया २] वर्णन कीजिये कि श्री पञ्च परमेष्ठियों को उक्त नौ प्रकार के नमस्कारों में से कौन सा नमस्कार करना चाहिये, अर्थात् किस नमस्कोर के द्वारा उनको ध्यान करना चाहिये ? [ उत्तर ] श्री पञ्च परमेष्ठि नमस्कार. विषय में वाचिक नमस्कार के उत्तम मध्यम और प्रधम भेदों का नितान्त [ ३ ] सम्भव नहीं है, अब शेष रहे कायिक तथा मोनस [ ४ ] नमस्कार के तीन २ भेद, उनमें से कायिक और मानस नमस्कार के उत्तम भेद का ही प्रयोग करना चाहिये; परन्तु यह स्मरण रहे कि कायिक और मानस नमस्कार के उत्तम भेद का प्रयोग भी द्रव्य और भाव के संकोच (५) के साथ में होना चाहिये - अर्थात् कर, शिर और चरण आदि की ग्रहण (६); कम्पन (9) और चलन (८) आदि रूप काय द्रव्य चेष्टा के निग्रह (2) के द्वारा तथा मनोवृत्ति विनियोग (१०) रूप भाव सङ्कोचन के द्वारा नमस्कार क्रिया में प्रवृत्ति करनी चाहिये, जैसा कि प्रथम " नमः" पद के संक्षिप्त अर्थ के वर्णन में कह चुके हैं । ( प्रश्न ) सुना है कि रात्रि में नमस्कार करना वर्जित (१९) है, सो क्या यह बात ठीक है ? ( उत्तर ) जी हां, किन्हीं लोगों को यह सम्मति है कि महाभारत में रात्रि में प्रणाम करने का निषेध किया गया है, जैसा कि यह वाक्य है किरात्रौ नैव नमस्कुर्यात्तनाशीरभिचारिका ॥ अतः प्रातः पदं दत्त्वा, प्रयोक्तव्येच ते उभे ॥ १ ॥ १- मालूम ॥ २- स्पष्टरीतिसे ॥ ३-निरन्तर अत्यन्त ॥ ४- मनः सम्बन्धी ॥ ५-संक्षेप ॥ ६-लेना ॥ ७- हिलना ॥ ८-चलना ॥ ६-निरोध ॥ १० - व्यवहार, उपयोग, प्रवृत्ति ॥ ११ - निषिद्ध ॥ २४ Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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