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________________ ( १८४) श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि । स वाचिकोऽधमो शेयो, नमस्कारेषु पुत्रको [१] ॥ ६ ॥ इष्टमध्यानिष्टगते, मनोभिस्त्रिविधं पुनः ॥ नमनं मानसम्प्रोत-मुत्तमाधममध्यमम् ।। ७ ।। त्रिविधे च नमस्कारे, कायिकश्चोत्तमः स्मृतः ॥ कायिकैस्त नमस्कार, देवास्तुष्यन्ति नित्यशः ॥८॥ अयमेव नमस्कारो, दण्डादिप्रतिपत्तिभिः ॥ प्रणाम इति विज्ञेयः, स पूर्वम्प्रतिपादितः ॥ ६ ॥ (इति कालिका पुराणे ७० अध्याये) अर्थ-हाथ और पैरों को पसार कर तथा पृथ्वी पर दण्ड के समान गिरकर और जानुत्रों ( २ ) से धरणी ( ३ ) को प्राप्त कर एवं शिर से पृथ्वी का स्पर्शकर जो नमस्कार किया जाता है वह कायिक नमस्कार उत्तम है ॥१॥ जानों से पृथ्वी का स्पर्श कर तथा शिर से भी पृथ्वी का स्पर्श कर जो नमस्कार किया जाता है वह कायिक नमस्कार मध्यम है ॥ २ ॥ जान और शिर से पृथ्वी का स्पर्श न कर किन्तु दोनों हाथों को सम्पु. ट रूप ( ४ ) में करके जो यथायोग्य नमस्कार किया जाता है वह कायिक नमस्कार अधम है ॥ ३॥ भक्ति पूर्वक (५) अपने बनाये हुए गद्य वा पद्यसे जो नमस्कार किया जाता है वह वाचिक नमस्कार उत्तम माना गया है ॥ ४ ॥ पौराणिक वाक्यों अथवा वैदिक मन्त्रों से जो नमस्कार किया जाता है वह वाचिक नमस्कार मध्यम है ॥ ५॥ मनष्य के वाक्यके द्वारा जो नमस्कार किया जाता है वह सब नमस्का. रों में हे पुत्रो ! (६) वाचिक नमस्कार अधम है ॥६॥ मानस नमस्कार भी तीन प्रकार का है-इष्टगत (७); मध्यगत (८) तथा अनिष्टगत (6) मन से जो नमस्कार किया जाता है उसे क्रम से उत्तम मध्यम और अधम जानना चाहिये ॥ ७ ॥ १-सम्बोधनपदम् ॥२-घुटनों ।।३-पृथिवी ॥४-अञ्जलिरूप ।। ५-भक्ति के साथ ॥६-यह सम्बोधन पद है ॥ ७-इष्ट में स्थित ॥ ८- मध्य (उदासीनता) में स्थित ॥ ६-अनिष्ट ( अप्रिय ) में स्थित ॥ Aho ! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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