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पश्चम परिच्छेद ||
( १८३)
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( प्रश्न ) - इस नवकार मन्त्र में पञ्च परमेष्ठियों को नमस्कार कहा गया है सो नमस्कार के अनेक भेद सुनने में आये हैं तथा उनमें उत्तमता (१) मध्यमता ( २ ) और अधमता ( ३ ) भी मानी गई है; अतः उन नमस्कार के भेदों तथा उनकी उत्तमता आदि के विषय में सुनने की अभिलाषा है ।
( उत्तर ) - यदि उक्त विषय में सुनने की अभिलाषा है तो सुनिये:( क ) " नमः" अर्थात् नमन का "कार" अर्थात् करण ( क्रिया ) जिसमें होती है उसको नमस्कार कहते हैं ।
( ख ) नमस्कार तीन प्रकार का है - कायिक ( ४ ), वाचिक ( ५ ) और मानसिक ( ६ ) जैसा कि कहा भी है कि:
कायिको वाग्भवश्चैव, मानसस्त्रिविधो मतः ॥ नमस्कारस्तु तत्वज्ञैरुत्तमाधममध्यमः ॥
अर्थात् तत्वज्ञ जनोंने तीन प्रकार का नमस्कार माना है- कायिक, वा चिक और मानसिक, फिर उसके तीन भेद हैं, उत्तम, मध्यम और प्रथम ॥ १॥
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( ग ) ऊपर लिखे अनुसार कायिक आदि नमस्कार के तीन भेद हैं:प्रासार्थ पादौ हस्तौच, पतित्वा दण्डवत् क्षितौ ॥
जानुभ्यां धरणीं गत्वा, शिरसा स्पृश्य ( 9 ) मेदिनीम् ॥ क्रियते यो नमस्कार, उत्तमः काकस्तु सः ॥ १ ॥ जानुभ्यां क्षितिं स्पृष्ट्वा, शिरसा स्पृश्य मेदिनीम् ॥ क्रियते यो नमस्कारो, मध्यमः कायिकस्तु सः ॥ २ ॥ पुटीकृत्य करौ शीर्षे, दीयते यद्यथा तथा ॥ अस्पृष्ट्वा जानु शीर्षाय, क्षितिं सोऽथन उच्यते ॥ ६ ॥ या स्वयं गद्यपद्याभ्या, घटिताभ्यां नमस्कृतिः ॥ क्रियते मक्तियुक्त व वाचिकस्तूत्तमः स्मृतः ॥ ४ ॥ पौराणिकै बैदिकैर्वा, मन्त्रैर्या क्रियते नतिः ।
मध्यमो ऽसौ नमस्कारो, भवेद्वै वाचिकः सदा ॥ ५ ॥ यत्तु मानुषवाक्येन, नमनं क्रियते सदा ॥
१- श्रेष्ठता ॥ २-मध्यमपन ॥ ३- निकृष्टता ||४- शरीरसम्बन्धी ।। ५-चचनसम्बन्धी ।। ६-मनः सम्बन्धी ॥ ७- यह चिन्तनीय पद है ॥
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