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श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि ॥ (उत्तर ) ग्यारह अंग तथा बारह उपाङ्गों का पठन पाठन करना तथा चरण (१) सत्तरी और करण (२) सत्तरीका शुद्ध रीति से पालन करना; ये उपाध्याय के पच्चीस गुण हैं।
(प्रश्न ) कृपया उक्त पच्चीस गुणों का कुछ वर्णम कीजिये ?
( उत्तर ) ग्यारह अङ्ग तथा बारह उपाङ्ग एवं चरण सत्तरी तथा करण सत्तरी का विषय अन्य ग्रन्थों में अच्छे प्रकार से विस्तार पूर्वक कहा गया है; अतः ग्रन्थ विस्तार के भय से यहां उसका वर्णन नहीं किया जाता है, उक्त विषय का वर्णन ग्रन्थान्तरों में देख लेना चाहिये।
( प्रश्न ) साधु के सत्ताईस गुण कौन से हैं ? .
( उत्तर ) छः व्रत (३) षट् काय रक्षा (४) पांचों इन्द्रियों [५] तथा लोभ का निग्रह, [६] क्षमा, भावविशुद्धि [७] विशुद्धि पूर्वक [८] उपयोग के साथ बाह्य [4] उपकरणों [१०] का प्रतिलेहन, संयम के योग [१९] में युक्त रहना, अविवेक का त्याग, विकथा का त्याग, निद्रा आदि [१२] प्रमादयोग का त्याग, मन, वचन और शरीर का अशुभ मार्ग से निरोध [१३] शीतादि परीषहों [१४] का सहन तथा मरणान्त उपसर्ग [१५] का भी सहन कर धर्मका त्याग न करना ये सत्ताईस गुणा साध के हैं [१६] ।।
(प्रश्न ) कृपया उक्त गुणों का कुछ वर्णम कीजिये?
[ उत्तर ] साधु सम्बन्धी उक्त सत्ताईस गुणों का वर्सन अन्य ग्रन्थों में विस्तार पूर्वक किया गया है। अतः ग्रन्थ के विस्तार के भय से यहां उक्त विषय का वर्णन नहीं करना चाहते हैं।
१-चारित्र ॥ २-पिण्ड विशुद्धि आदि ॥ ३-रात्रिभोजन विरमण सहित पांच महाव्रत ॥४-पृथिवी आदि छः कायोंकी रक्षा॥ ५-त्वगिन्द्रिय आदि पांचों इन्द्रियों का ॥ ६-निरोध, रोकना ॥ ७-वित की निर्मलता ॥ द-विशुद्धि के साथ ॥ १-बाहरी ॥१०-पात्र आदि॥ ११-समिति और गुलि आदि.योग॥ १२-आदि शब्द से निद्रा २ आदि को जानना चाहिये । १३-रोकना ॥ . १४-शीत आदि बाईल परोषह हैं ॥ १५-उपद्रव । १६-कहा भी है कि “छन्नव छक्काय रक्खा, पंचिदिय लोह निगाहो खन्ती॥ भावधिसोही पडिले, हणाय करणे विसुद्धाय ॥१॥ सञ्जम जोए जुतो, अकुसल मण वयणकाय संरोहा । सीयाइ पीड सहणं, मरणं उपसग्गसहणच" ॥२॥
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