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पञ्चम परिच्छेद ।
२१- अदत्तादान (१) से सर्वथा निवृत्त रहना । २२-सब प्रकार के मैथुन से विरति (२) करे ।
२३- सब प्रकार के परिग्रह (३) से विरमण ( ४ ) करे ।
२४ - (५) ज्ञानाचार (६) के पालन करने और कराने में सर्बदा उद्यत
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रहना ।
२५- सम्यक्रत्र (9) के पालन करने और कराने में सर्वदा उद्यत रहना । २६ - चारित्राचार (८) के पालन करने और करानेमें सर्वदा उद्यत रहना । २१-तप आचार (c) के पालन करने और कराने में सर्वदा उद्यत रहना २८ - धर्मानुष्ठानमें यथाशक्ति पौरुष को व्यवहार में लाना (२० ) । २९-ईर्यासमिति (११) अर्थात् साढ़े तीन हाथ दृष्टि देकर उपयोग पूर्वक (१२) गमन करना ।
३०–भाषा समिति – अर्थात् उपयोग पूर्वक भाषण करना । ३१-एषणासमिति अर्थात् — बयालीस दोषरहित आहारका ग्रहण करना ३२- श्रादाननिक्षेप समिति - अर्थात् संयम धर्म (१३) के पालन करने में उपयुक्त वस्तुओं को देखकर तथा उनका प्रमार्जन (१४) कर ग्रहण और स्था
पन करना ।
३३- परिष्ठापनिका समिति - अर्थात् परपीड़ा रहित निर्जीव स्थल में [-] मल मूत्रादि का उपयोग पूर्वक त्याग करना ।
३४ – मनोगुप्ति [१५] – अर्थात् अशुभ प्रवृत्तिसे मनको हटाना । ३५ - वचन गुप्ति – अर्थात् अशुभ प्रवृत्ति से वचन को हटाना । ३६ - काय गुप्ति - अर्थात् अशुभ प्रवृत्ति से शरीर को हटाना । ( प्रश्न ) उपाध्याय के पच्चीस गुण कौन से हैं ?
१- न दिये हुये दूसरे के पदार्थ का ग्रहण ॥ २- निवृत्ति वैराग्य ३ - ग्रहण, संग्रह ॥ ४- निवृत्ति ॥ ५- अब यहां से आगे पांच प्रकार के आचार का पालन कहा जाता है ॥ ६-ज्ञान विषयक आचार ॥ ७- दर्शनाचार ॥ ८-चारित्र विषयक आचार ॥ ह-बारह प्रकार के तपोविषयक आचार ॥। १० - अर्थात् वीर्याचार का पालन करना ॥ ११- अब यहां से आगे पांच समितियों का विषय कहा जाता है ॥ १२- उपयोग के साथ ॥ १३-संयमरूत्र धर्म ॥ १४- शुद्धि ॥ १५-दूसरे को पीड़ा न पहुंचे इस प्रकार के निर्जीव स्थान में ॥ १५- अब यहां से आगे तीन गुप्तियों का विषय कहा जाता है ॥
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