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श्रीमन्त्रराजमुणकल्पमहोदधि ॥
(प्रश्न )-साधुओं का ध्यान किस के समान तथा किस रूप में करना चाहिये?
(उत्तर)-साधनों का पान आषाढ़ के मेघ के समान श्याम वर्ण में करना चाहिये।
( प्रश्न )-“णमो लोए सव्व साहूणं” इस पांचवें पद में लोए” अर्थात् "लोके" ( लोक में ) यह पद क्यों कहा गया है अर्थात् इस के कथन से क्या भाव निकलता है ?
(उत्तर)-'लोए, यह जो पांचवें पद में कहा गया है उस के निम्न लिखित प्रयोजन हैं:
( क )-अढाई द्वीप प्रमाण लोक में साधु निवास करते हैं। - ( ख )-“लोए” यह पद मथ्य मंगल के लिये है; क्योंकि “लोक दर्शने" इस धातु से “लोक' शब्द बनता है तथा सब ही दर्शनार्थक धातु ज्ञानार्थक माने जाते हैं तथा ज्ञान मङ्गलस्वरूप है। अतः मध्य में मङ्गल करने के लिये इस पद में 'लोए' पद रक्खा गया है (१)।
(ग)-तीसरा कारण यहभी है कि “सम्वसाहूर्ण" इस पद में प्राकाम्य सिद्धि सन्निविष्ट है ( जिस का वर्णन आगे किया जावेगा), क्योंकि साधजन पर्याप्त काम होते हैं, उनके सम्बन्ध में प्रयुक्त “लोए” पद इस बातको सचित करता है कि उन माधु जनों की जो इच्छा भी होती है वह ज्ञान सह चारि. णी ही होती है अर्थात् रजोगुण और तमोगुण की वासना से रहित सात्वि. की इच्छा होती है और उनकी आराधना के द्वारा जो साधक जन प्राकाम्य सिद्धि को प्राप्त होते हैं उनकी कामना भी रजोगुण और तमोगुण से रहित सात्त्विकी होती है।
(प्रश्न ) “णमो लोए सव्वसाहूणं" इस पांचवें पद में 'सव' अर्थात् 'सर्व' शब्द का प्रयोग क्यों किया गया है; यदि सर्वशब्द का प्रयोग न करते तो भी "साहूणं” इस बहुवचनान्त शब्द से सर्व अर्थ जाना ही जा सकता था; अत एव प्रथम चार पदों में सर्व शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है?
(उत्तर)-उक्त पांचवें पदमें “सवसाहूणं” इस पद में जो साध शब्दके साथ समस्त सर्व पद का प्रयोग किया गया है उसके निम्न लिखित कारण हैं
१-महानुभाव जन ग्रन्थ के आदि मध्य और अन्त में मङ्गल करते हैं ।
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