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________________ पञ्चम परिच्छेद | ' (१५५) चार्यों को नमस्कार हो । ४ – उपाध्यायों को नमस्कार हो । ५-लोक में सर्व साधुओं को नमस्कार हो । ६ - यह पञ्च नमस्कार। 9- सब पापों का नाश करने वाला है । - तथा सब मङ्गलों में । - - प्रथम मङ्गल है ॥ (१) ( प्रश्न ) - किन्हीं पुस्तकों में "मी" पद के स्थान में " नमो” पद देखा जाता है, क्या वह शुद्ध नहीं है ? ( उत्तर ) - वररुचि आचार्य के मत के अनुसार "नमो” पद शुद्ध नहीं है, क्योंकि जो नमस् शब्द अर्थात् अव्यय है उस का उक्त प्राचार्य के मत के अनुसार प्राकृत में "मो" शब्द ही बनता है, कारण यह है कि - "ना ः सर्वत्र” (२) यह उन का सूत्र है, इस का अर्थ यह है कि - प्राकृत में सर्वत्र ( आदि में तथा अन्त में ) नकार के स्थान में कार श्रादेश होता हैं, परन्तु हेमचन्द्राचार्य के मत के अनुसार " नमो ” और “रामो" ये दोनों पद बन सकते हैं अर्थात् दोनों शुद्ध हैं, क्योंकि उक्त प्राचार्य का सूत्र है कि "वा दी” (३) इस सूत्र का अर्थ यह है कि- आदि में वर्त्तमान संयुक्त (४) नकार के स्थान में कार प्रदेश विकल्प करके होता है, अतः हेमचन्द्राचार्य के मतके अनुसार उक्त दोनों पद शुद्ध हैं, परन्तु इस नवकार मन्त्र में "रामो" पद का ही उच्चारण करना चाहिये किन्तु " नमो " पद का नहीं, क्योंकि श्रदि (५) वर्त्ती "मो” पद में प्रणिमा सिद्धि सन्निविष्ट है ( जिस का वर्णन आगे किया जावेगा ); उस का सन्निवेश “नमो" पद में नहीं हो सकता है, दूसरा कारण यह भी है कि - " मो” पद के उच्चारण में दग्धाक्षर (६) होने पर भी कार अक्षर ज्ञान का वाचक है तथा ज्ञान को मङ्गल स्वरूप कहा है, अतः आदि मङ्गल (9) के हेतु "रामो" पद का ही उच्चारण, करना चाहिये । ( प्रश्न ) - " नमः इस पद का संक्षेप में क्या अर्थ है ? ( उत्तर ) " नमः” यह पद नैपातिक है तथा यह नैपातिक पद द्रव्य १- यहां पर श्री नवकार मन्त्र का उक्त अर्थ केवल शब्दार्थमात्र लिखा गया है | २- सर्वत्र ( आदावन्तेच ) नकारस्य स्थाने णकारो भवतीति सूत्रार्थः ॥ ३आदीवर्त्तमानस्यासंयुक्तस्य नकारस्य णकारो वा भवतोति सूत्रार्थः ॥ ४- संयोगरहित ॥ ५ ॥ आदि में स्थित ॥ ६-दग्ध अक्षर ( जिस का छन्द अथवा वाक्य के आदि में प्रयोग करना निषिद्ध है ॥ ७ आदि में मङ्गल ॥ " Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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