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श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि ।
२५-त्रों (१) हीं णमो अरिहंता अरे (पारि(२)) अरिणि मोहिणि मोहय मोहय स्वाहा ।। इस मन्त्र का नित्य १०८ बार स्मरण करने से लाभ होता है ।
२६-त्रों घण्टाकर्णो महावीरः सर्वव्याधि विनाशकः ॥ विस्फोटकभयं प्राप्त (३) रक्ष रक्ष महाबलः (४) ॥ १॥ इस मन्त्र को भोज पत्र पर कंकुम
और गोरोचन से जाती (५) की कलम से कुए अथवा नदी के तट पर बैठकर लिखे, फिर "ओं णमो अरिहताण हां (६) (ही) स्वाहा: ओं णमो सिद्धाणं ह्रीं स्वाहा, प्रों णमो आयरियाणं हूँ स्वाहा, ओं णमो उवउझायाणं ह्रौं स्वाहा, प्रों णमो सव्वसाहूण ह्रः स्वाहा ॥ इम दूसरे मन्त्र का सुगन्धित पुष्पों के द्वारा १०८ वार जाप करके कषाय वस्त्र (७) से रक्षा (८) को लपेट कर वि. स्फोटक () रोगवाले मनष्य के गलेमें अथवा बाहु में बांध दे तो विस्फोटक विरूप (१०) नहीं होते हैं ।
२७-नों हीं वरे सुवरे असि प्रा उसा नमः ॥ इस विद्या का तीनों समय (१९) १०८ वार स्मरण करने से यह विभव (१२) को करती है ।
२-ओं ह्रीं ह्र गमो अरिहंताण ह्रीं नमः ॥ इस मन्त्र का तीनों समयों में श्वेत (१३) पुष्पों के द्वारा एकान्तमें निरन्तर १०८ वार जाप करनेसे सर्व सम्पत्ति और लक्ष्मी होती है ॥
२९-ओं ह्रीं श्रीं प्लुं प्लु अहं ई ऐं क्लीं प्लुं प्लुं नमः॥ यह परमेष्ठि मन्त्र सर्व अभ्युदयों का कारण है (१४) ॥
३०-ओं ऐं हीं श्रीं क्लौं ठरलं अहं नमः ॥ इस मन्त्र का तीनों समयों में जप करनेवाले पुरुष के सर्व कार्य सिद्ध होते हैं
१-पूर्वोक्त "नवकार मन्त्र संग्रह"पुस्त कमें 'ओं णमो अरुहंताणं अरे अरणि मोहिणि अमुकं मोहय मोहय स्वाहा" ऐसा मन्त्र है और इसका फल वहां स्वस्त्रीवशीकरण कहागया है॥२-दोनों ही पाठ सन्दिग्ध हैं॥ ३-"भयप्राप्तः” ऐसा पाठ होना चाहिये ॥४-यदि यह सम्बोधन पद होता तो ठीक था ॥५-मालती (चमेली)॥ ६-"हां" यही पाठ ठीक प्रतीत होता हैं, क्योंकि "हीं” शब्द का आगे प्रयोग किया गया है ॥ ७-कषाय वर्ण वाले वस्त्र ॥ ८-राख भस्म ॥ १-फोड़ा॥ १०-विकृतरूर वाले ॥११-प्रातःकाल, मध्यान्ह तथा सन्ध्या समय ॥ १२-ऐश्वर्य॥ १३-सफेद ॥ १४-तात्पर्य यह है कि इस परमेष्ठि मन्त्र का जप करने से सर्व अभ्युदय होते हैं।
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