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चतुर्थ परिच्छेद ॥
मुल मुल इच्छियं मे कुरु कुरु स्वाहा ॥ यह त्रिभवन स्वामिनी विद्या है, इसका उपचार (१) यह है कि-जाती (२) के पुष्पों से २४००० जाप करने से यह सर्व सम्पत्ति को करती है।
१०-ओं ही अहत उत्पत उत्पत स्वाहा ॥ यह भी त्रिभवन स्वामिनी विद्या है, स्मरण करने से वाञ्छित (३) अर्थ को देती है ॥
२०-ओं थम्भेउ जलं जलणं चिन्तय इत्यादि घोर वसग्गं मम (४) अमुकस्य (५) वा पगासे उ स्वाहा ॥ इस गाथा को चन्दन आदि द्रव्य (६) से पट्ट (७) पर लिखना चाहिये तथा नवकार के कथन के साथ इसका १०८ वार स्मरण करना चाहिये तथा सुगन्धित पुष्पों अथवा अक्षतों से पूजन भी करना चाहिये,तो यह(विद्या)सब भयोंको नष्ट करती है तथा रक्षाकरती है ।
२१-इसी प्रकार हृदय कमल में इसका एक सौ आठ वार जप करे तो चतुर्थ फल को प्राप्त होता है ॥ ___२२-ओं णमो अरिहताणं, ओं णमो सिद्धाणं, ओं णमो प्रायरियाणं प्रो गामो उवज्झायाणं, ओं णमो लोए सब्वसाहूणं, एसो पंच णमोकारो, सव्वपवाप्पणासणो, मंगलाणच सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं, ओं ह्रीं ह्रपट स्वाहा ॥ यह रक्षा का मन्त्र है इसका नित्य स्मरण करना चाहिये, ( ऐसा करने से ) सर्वरक्षा [८] होती है। ____२३-त्रों () ही णमो अरहताण सिद्धाण सूत्रीण पायरियाण उव. जमायाणं साहूणं मम ऋद्धि वृद्धि समीहितं कुरु कुरु स्वाहा ॥ इस मन्त्रका पवित्र होकर प्रातः काल तथा सायङ्काल ३२ वार स्मरण करना चाहिये, ऐसा करने से सर्व सिद्धि होती है।
२४-ओं अर्ह असि पा उसा नमो अरिहताणं नमः ॥ इस मन्त्र का हृदयकमल में १०८ बार जप करने से चतुर्थ फल को प्राप्त होता है।
१-प्रयोग पवार, विधि ॥ २-मालती (चमेली)॥३-अभीष्ट॥४-"मम” इस पद के स्थानमें षष्ठीविभक्त्यन्त अपने नाम का उच्चारण करना चाहिये ॥५-"अमुकस्य" .. इस पद के स्थानमें षष्ठीविभक्त्त्यन्त पर नाम का उच्चारण करना चाहिये। ६-पदार्थ -काप्ठ का पट्टा ॥ ८-सबसे रक्षा ॥६-पूर्वोक्त "नवकार मन्त्रसंग्रह” पुस्तकमें “ओं अरिहंताणं सिद्धाणं आयरियाणं उवझायाणं साहूणं मम रिद्धि बृद्धि स. माहितं कुरु कुरु स्वाहा” ऐसा मन्त्र है ।
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