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विषयानुक्रमणिका |
विषय
चारों शुक्ल ध्यानों के अधिकारी निश्चल भंग को ध्यानत्त्व
अन्य योगी- ध्यान हेतु
प्रथम शुक्ल ध्यान का आलम्बन अन्तिम दो ध्यानों के अधिकारी योग से योगान्तर में गमन संक्रमण तथा व्यावृत्ति पूर्णाभ्यासी योगी के गुण
अविचार से युक्त एकत्त्व ध्यान का स्वरूप
मन का अणु में स्थापन
मनः स्थैर्य का फल
ध्यानाग्नि के प्रवलित होने पर योगीन्द्र को फल प्राप्ति तथा
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आत्मध्यान का फल
तत्त्वज्ञान प्रकट होने का हेतु गुरुसेवन की आज्ञा गुरु-महिमा
वृत्ति का औदासीन्य करना
उसका महत्व
कर्मों की अधिकता होने पर योगी को समुद्घात करने की
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आवश्यकता
दण्डादि का विधान
दण्डादि विधानके पश्चात् ध्यान विधि तथा उस का फल अनुभव सिद्ध निर्मल तत्त्वका वर्णन
चित्त के विक्षिप्त आदि चार भेद तथा उन का स्वरूप निरालम्ब ध्यान सेवन का उपदेश व उस की विधि वहिरात्मा व अन्तरात्माका स्वरूप
परमात्मा का स्वरूप
योगी का कर्त्तव्य
सङ्कल्प तथा कामना का त्याग औदासीन्य महिमा
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