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श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि।
इसके स्मरण मात्रसे संसार का वन्धन टूट जाता है तथा परमानन्दके कारण अव्यय (१) पदको प्राप्त होता है ॥ ६० ॥
नासिका के अग्रभाग में प्रणव, शून्य और अमाहत, इन तीनोंका ध्यान करने से पाठ (२) गुणों को प्राप्त होकर निर्मल ज्ञान को पाता है।
शंख वन्द और चन्द्रमाके समान इन तीनों का सदा ध्यान करने से मनुष्यों को समग्र विषयोंके ज्ञान में प्रगल्भता (३) हो जाती है । ६२ ॥
दोनों पार्श्वभागों (४) में दो प्रणवोंसे यक्त, दोनों प्रान्तभागों में माया से युक्त तथा मध्यमें “सोऽहम्” से युक्त अल्हीकार का मूर्धा (५) में चिन्तन करे ॥६२॥
कामधेनु के समान अचिन्त्य (६) फल के देनेमें समर्थ तथा गणधरों के मुखसे निकली हुई निर्दोष विद्याका जप करे ॥ ६४ ॥
षटकोणवाले अप्रतिचक्रमें “फट इस प्रत्येक अक्षर का, वाम (७) भाग में “सिद्धि चक्रायस्वाहा” इस पदका तथा दक्षिणभागमें बाहरी भागमें विन्दुके सहित भतान्त को उसके वीचमें रखकर चिन्तन करे तथा "नमो जिणाणं” इत्यादि को "रो” को पूर्वमें जोड़कर बाहर से वेष्टित (८) कर
.. माठ पत्रवाले कमल में दीप्त तेज वाले प्रात्माका ध्यान करे तथा उस के पत्रों में क्रम से प्रणव आदि मन्त्र के अक्षरोंका ध्यान करे ॥ ६७ ॥
पहिले पूर्वदिशाकी ओर मुख करके आदित्य मण्डल () का आश्रय लेकर पाठ अक्षर वाले मन्त्र का ग्यारह सौ वार जप करे ॥ ६ ॥
इस प्रकार पूर्व दिशाके क्रम से अन्य पत्रों की ओर लक्ष्य (१०) देकर योगी परुष को सर्व विघ्नों की शान्ति के लिये आठ रात्रितक जप करना चाहिये ॥६॥
पाठ रात्रिके बीत जानेपर मुखवर्ती (११) कमल के पत्रों में इन वर्गों को क्रमसे देखता है ॥ ७० ॥
ध्यानमें विघ्नकारक (१२) भयङ्कर सिंह हाथी, राक्षस आदि व्यन्तर तथा अन्य प्राणी भी उसी क्षण शान्त हो जाते हैं ॥ ७१ ॥
१-अविनाशी २-आठ सिद्धियों ।। ३-कुशलता, निपुणता ॥ ४-पसवाड़ों में ॥ प-मस्तक ॥६-न सोवे जाने योग्य ॥ ७-बायें ॥ ८-घेरा हुआ ॥ ६-सूर्य मण्डल ।। १०-ध्यान ॥ ११-मुख में स्थित ॥१२-विघ्न करने वाले ॥
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