SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय परिच्छेद ॥ (११५) मुखके भीतर पाठ दल (१) वाले कमल का ध्यान करे, उन दलोंमें अक्षरों के नाठों वर्गों का (२) ध्यान करे तथा “ओं नमो अरहताणं" इस प्रकार से अक्षरों का भी क्रमसे ध्यान करे, पीछे उसमें स्वरमयकेसरोंकी पतिका ध्यान करे तथा उसमें सुधाविन्दुसे विभूषित कर्णिका का ध्यान करे, तथा उस कर्णिकामें चन्द्रविम्बसे गिरते हुए, मुखके द्वारा सञ्चार करते हुए, प्रभा मण्डल (३) के बीचमें रहे हुए तथा चन्द्र के समान मायावीज का चिन्तन करे, पीछे पत्रों में भ्रमण करते हुए तथा आकाशतलमें सञ्चरण (४) करते हुए, मनके अन्धकार का नाश करते हुए, गोल, सुधारस (५) वाले तालुद्वार से जाकर भ्र कुटी में उल्लसित (६) होते हुए, तीन लोकमें अचिन्त्य माहात्म्य (७) वाले तथा ज्योतिर्मण्डल (८) के समान अद्भत पवित्र मन्त्र का एकाग्र चित्त से स्मरण करने पर मन और वचन के मल से मुक्त हुए पुरुष को श्रत ज्ञान उत्पन्न हो जाता है, इस प्रकार स्थिर मनसे छः मास तक अभ्यास करने से मुख कमल से निकलती हुई शुम की शिखा को देखता है, तदनन्तर एक वर्ष तक अभ्यास करने से ज्वाला को देखता है, इसके बाद संवेग (ए) के उत्पन्न हो जानेसे सर्वज्ञ के मुख कमल को देखता है, त. दनन्तर प्रदीप्त कल्याण माहात्म्य वाले, अतिशयोंको प्राप्त हुए तथा भामण्डल (१०) में स्थित सर्वज्ञ को साक्षात् (११) देखता है, इसके पश्चात् मनको स्थिर कर तथा उसमें निश्चय को उत्पन्न कर संसार वनको छोड़कर सिद्धि मन्दिर (१२) को प्राप्त होता है "४८-५७॥ मानों चन्द्र विम्बसे उत्पन्न हुई सदा अमृत को बरसाने वाली तथा कल्याण का कारण मस्तक में स्थित “क्षिम्" इस विद्याका ध्यान करे ॥५॥ क्षीर समुद्र से निकलती हुई, सुधा जलसे प्लावित (१३) करती हुई तथा सिद्धि की सोपान (१४) पति के समान शशिकला का मस्तक में ध्यान करे ॥५॥ - १-पत्र ॥२-स्वर वर्ग, कवर्ग, चवर्ग, वर्ग, तवगं, पवर्ग, अनन्यवर्ग, तथा ऊ मवर्ग, इन आठ वर्गो का ॥३-प्रकाशमण्डल ॥ ४-गमन ।। ५-अमृतरस ॥६-प्रदीप्त, शोभित ॥ ७-न विचारने योग्य महिमा वाले ।। ८-प्रकाश मण्डल ॥ -संसार से भय ।। १०-दीप्तिसमूह ।। ११-साक्षात् के समान ।। १२-मोक्ष भवन ॥ १३-आई ।। १४-तीढ़ी ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy