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श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि ॥ सहस्रों पापों को करके सैकड़ों जन्तुओं को मारकर इस मन्त्र का प्रा. राधन कर तिर्यञ्च भी देवलोक को प्राप्त हुए हैं ॥ ३८ ॥
पांच गुरुओं के [१] नामसे उत्पन्न, सोलह अक्षर वाली विद्या है, उसका दो सौ बार जप करनेवाला पुरुष चतुर्थ के फल को [२] प्राप्त होता है ॥ ३८ ॥
छः वर्णवाले मन्त्र को (३) तीन सौ वार, चार अक्षर वाले मन्त्र (४) को चार सौ बार तथा पांच अक्षरवाले वर्ण (५) को पांच सौ वार जपकर योगी पुरुष चतुर्थ के फल (६) को प्राप्त करता है ॥ ४० ॥
इनका यह फल प्रवृत्तिका हेतु कहा है। किन्तु वास्तवमें तो उनका फल स्वर्ग और अपवर्ग (७) है ॥४१॥ . अत से निकाली हुई पांच वर्णवाली, पञ्जतत्वमयी विद्या का (c) निरन्तर अभ्यास करने से वह संसार के क्लेश को नष्ट करती है ॥४२॥
चार मङ्गल चार लोकोत्तम और चार शरमा रूप, पदोंका अव्यग्रमन (e) होकर स्मरण करने से मनुष्य मोक्ष को प्राप्त होता है ॥४३॥
मुक्ति सुख को देनेवाली पन्द्रह अक्षर की विद्याका ध्यान करे तथा सर्व के समान सर्वज्ञानों के प्रकाशक मन्त्र का (१०) स्मरण करे ॥१४॥
इस मन्त्र के प्रभाव को अच्छे प्रकार से कहने में कोई भी समर्थ नहीं है। जोकि (मन्त्र) सर्वज्ञ भगवान् के साथ तुल्यता को रखता है ॥४५॥
यदि मनुष्य संसार रूप दावानल (११) के नाश की एक क्षण में इच्छा करता हो तो उसे इस प्रोदि मन्त्र के प्रथम के सात वर्णों का (१२) स्मरण करना चाहिये ॥४६॥ ___ तथा कर्मों के नाश करनेवाले पांच वर्षों से युक्त मन्त्रका स्मरण कर. ना चाहिये तथा सबको अभयदायक (१३) वर्णमाला (१४) से युक्त मन्त्रका ध्यान करना चाहिये ॥४७॥
१-पांचों परमेष्ठियों के ॥ २-उपवासके फलको ॥३-"अरहंत सिद्ध” इस मन्त्र को ॥४-"अरहत” इस मन्त्र को ॥५-"असि आउसा" इस पदको ॥ ६-उपवा. सफल ॥ ७-मोक्ष ।। ८-"ह्रां ह्रीं हूँ ह्रौ ह्रः असि आउसा" इस विद्याका ॥ -सावधान मन ॥१०-"ओं श्रीं ह्रीं अहँ नमः” इस मन्त्र का ॥ ११-दावाग्नि ॥१२-"णमो अरि हताणं" इन सात वर्णों का ॥ १३-अभय को देनेवाले ॥१४-अक्षर समूह ।।
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