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________________ तृतीय परिच्छेद। यों (१) का चिन्तन करे, पीछे आउ पत्रवाले मुख कमल पर दूमरे पाठ वर्णो का (६) स्मरण करे, इस प्रकार मातृका [२] स्मरण करने से श्रुत ज्ञान में पारगामी हो जाता है ॥ २ ॥ ३ ॥ ४ ॥ इन अनादि सिद्ध वर्णो का विधि पूर्वक ध्यान करने से ध्याता पुरुष को मष्ट आदि के विषय में उसी क्षण ज्ञान हो जाता है । ५॥ अथवा-नाभि कन्द के नीचे पाठ (३) दल वाले पद्म (४) का स्मरण करे, उसमें पाठ वर्गों से युक्त दलोंके साथ स्वरोंकी पंक्तिसे विशिष्ट रम्य (५) केमर का स्मरण करे, सब द नसन्धियों में सिद्धों की स्तुति रूप में शोभित पद (६) का स्मरण करे, सब दलों के अग्रभागों में माथाप्रणव से पवित्र किये हुए पद (७) का स्मरण करे, उसके बीचमें रेफ से युक्त, कलाविन्दु से रम्य, हिमके समान निर्मल, प्राद्य (८) वर्ण के सहित अन्तिम वर्ण (ए) का स्मरण करे, (१०) अहं यह अक्षर प्राण प्रान्त (१९ का स्पर्श करनेवाला तथा पवित्र है उसका हस्व, दीर्घ. सूदम और अति सूक्ष्म रूप उच्चारण होता है, इस प्रकार से उच्चारण करने से नाभि कण्ठ और हृदय से घण्टिका आदि ग्रन्थियां विदीर्ण (१२) हो जाती हैं, पीछे अत्यन्त सक्ष्म ध्वनिसे मध्य मार्ग में जाते हुए उसका स्मरण करे, पीछे विन्दु से सन्तप्त. १३) कला में से निकलते हुए, दुग्ध के समान उज्ज्वल, (१४) अमत की तरङ्गों से अन्तरात्मा को भिगाते हुए, उस का चिन्तन करे, पीछे अमत के सरोवर से उत्पन्न हुए, सोलह दलवाले कमल के मध्य भाग में प्रात्मा को स्थापित कर उन पत्रों में सोलह विद्या देवियों का चिन्तन करे, पीछे स्फटिक के समान निर्मल झरनों में से करते हुए तथा दुग्धके समान श्वेत अमृत से अपने को दीर्घ काल तक सींचते हुए उसका ध्यान करे, पीछे इस मन्त्रराज के अभिधेय (१५) तथा परमेष्ठी (१६) तथा स्फटिक के समान निर्मल अर्हन्त का मस्तक में ५-पच्चीस व्यञ्जनों ॥२-अन्तःस्थ और ऊष्म वर्णो का ॥३-स्वर और व्यञ्जन समूह ॥४-पत्र ॥ ५-कमल॥ ६-सुन्दर ॥ ७-"हीं” इस पदका ॥ ८-“ओं ही” इस पद का ॥ -पहिले अर्थात् अकार ॥ १०-हकार ॥ -अर्थात् "अह" इस पदका स्मरण करे ॥ ११-आण का अन्त भाग ॥ १२-छिन्न ॥ १३-तपी हुई ॥ १४-उजले ।। १५-वाच्य, कथनीय ॥ १६-परम पदपर स्थित ॥ Aho ! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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