SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय परिच्छेद | ( १०६ ) बुद्धिमान् जनों ने ध्यान के अबलम्वन [१] ध्येय को चार प्रकार का माना है - पिण्डस्थ, पदस्थ, रूपस्य और रूपवर्जित ॥ ८ ॥ पिण्डस्थ ध्यान में पार्थिवी, आग्नेयो, मारुती, वारुणी और पाचवीं तत्रभू, ये पाँच धारणायें हैं ॥ ८ ॥ तिर्यग्लोक के समान क्षीर समुद्र का ध्यान करे, उम में लम्बूद्वीप के समान, सहस्त्र पत्र तथा सुवर्ण कान्ति वाले कमल का स्मरण करे, उस के के. सर समूह के भीतर सुमेरु पर्वत के समान, प्रदीप्त, पोली कान्ति वाली, कर्णिका का परिचिन्तन करे, तथा उस में श्वेत सिंहासन पर बैठे हुए तथा कर्म के नाश करने में उद्यत श्रात्मा का चिन्तन करे, इस का नाम पार्थिवी धार है ॥ १० ॥ ११ ॥ १२ ॥ नाभि में षोडश पत्रवाले [२] कमल का चिन्तन करे, कर्णिका में महामन्त्र [३] तथा प्रत्येक पत्र में स्वरावली [४] का चिन्तन करे, महामन्त्र में जो अक्षर रेफ विन्दु और कला से युक्त [५] है उसके रेफ से धीरे २ निकलती हुई धूमशिखा [६] का स्मरण करे, तदनन्तर स्फुलिङ्ग [9] समूह का तथा ज्वाला समूह का ध्यान करे तदनन्तर ज्वाला समूह से हृदय में स्थित कमल को जला दे ऐसा करने से महामन्त्र के ध्यान से उत्पन्न हुआ प्रबल अग्नि प्रष्ट कर्म निर्माण रूप [८] अधोमुख [९] प्राठों पत्रों को जला देता है, तदनन्तर देह के बाहर श्रग्नि के समीप जलते हुए, अन्त भाग में स्वस्तिक [१०] से लांछित [१९] तथा वह्निके बीज से युक्त कमल का ध्यान करे, पीछे मन्त्र की शिखा भीतरी अग्नि के समीप देह और कमल को बाहर निकालकर भस्मसात् [१२] करने के पश्चात् शान्त हो जाती है इसका नाम श्रग्नयी धारणा है ॥ १३-१८ ॥ तदनन्तर त्रिभुवन मण्डल को पूर्ण करनेवाले, पर्वतों को डिगानेवाले तथा समुद्रोंको क्षोभित करनेवाले वायु का चिन्तन करे तथा उस वायु से उस ( पूर्वोक्त) भश्मरज [१३] को शीघ्र ही उड़ाकर दृढ़ अभ्यास वाला तथा ३- “अहं " ४ - स्वर पंक्ति ।। ५- " हैं ” ॥ ६ - धुएं की लौ |७ - अग्नि कणोंका समूह । ८-आठ कर्मों की रचना रूप ॥ ६-नीचे मुख वाला ॥ १०- साथिया ।। ११-चिन्हवाला || १२- दग्ध ।। १३- भस्मरूप धूल १-आश्रय ॥ २- सोलह पत्रोंसे युक्त ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy