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________________ श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि । ६५- नमो अरि हताणं ॥ “अलि” नाम वृश्चिक राशि का है, उसमें (हनंक धातु हिंसा तथा गति अर्थ में है) "हन्ति” अर्थात गमन करता है ( उक्त धातु से विच प्रत्यय करने पर अलिहन शब्द बनता है), वृश्चिक राशि में स्थित “म” अर्थात् चन्द्र "त्राण” अर्थात् विपत्ति से रक्षक (१) नहीं होता है, क्यों कि वृश्चिक राशि में चन्द्र नीच होता है, इसलिये वह दुर्बल होता है, यह गणितानुयोग ( २ ) है॥ ६६-"अलि” नाम सुरा तथा पुष्पलिह (३) का अनेकार्थमें कहा गया है, अतः "अलि” शब्द सुरा का वाचक है, उसको जो छोड़ता है, उसका नाम “अलिह” अर्थात् सुरा वर्जक (४) है, मुरा उपलक्षण रूप (५) है, अतः मांस प्रादि को भी जान लेना चाहिये, अर्थात मद्यादि वर्जक (६) "अन्त" अर्थात स्वरूप जिनका उनको "अलिहान्त” कहते हैं, अर्थात श्राद्धों [७] के कुल, उनको नमः अर्थात् उद्यम हो, तात्पर्य यह है कि श्राद्ध कुल उदित (८) हैं । ६७-किसी शैव () को कथन है कि-हम्” अर्थात् मैंने रे” अर्थात् राम के विषय में "नमः” अर्थात् नमस्कार को "प्रताणं” अर्थातू किया, "र" शब्द से एकाक्षर माला में राम अर्थ कहा गया है ("अतन्वम्” यह क्रिया हस्तनी विभक्ति (१०) के उत्तम पुरुष के एक वचन में बनती है, प्रकार पाद पूरण अर्थ में है)। ... ६८-कोई जैन कहता है कि-"अहं रामे नमः नातन्वम्” अर्थात् मैं ने राम को नमस्कार नहीं किया, प्रकार निषेध अर्थ में है, क्योंकि माला में कहा है कि अ, म, तो, और न, ये प्रतिषेध अर्थ में हैं। . ६९-नमो भर हंताणं ॥ “न” अर्थात् वन्धन को ( मोगश् धातु बन्धन तथा हिंसा अर्थ में है ) “मीनाति” अर्थात नष्ट करता है, ड प्रत्यय करने पर “नमः” शब्द बन जाता है, “नम” अर्थात् बन्धच्छोटक (११) अर्थात् . १-रक्षा करनेवाला ॥ २-गणित व्याख्या ॥३-भ्रमर (भौंरा ॥४-मद्य का त्याग कग्नेवाला ।।५-सूचनामात्र ॥६-मद्य आदिका त्याग करने वाला ।। ७-श्रावको। ८-उदय युक्त, अदय वाले ॥ १-शिवमतानुयायो।। १० अनधान भूत (लङ् लकार)॥ ११-बन्धनसे छुड़ाने वाला ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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