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वीर पेशापलि.
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तनो ढिगलो प्रत्यक्ष · साचओ देषी श्रे० पारसइं ते देवीवाणी सांभली सूरी कहै-रोगग्रस्तनई निद्रा प्रासाद नवो प्रारंभ कीघो । मूल मंडप १ रंगमंडप २ किहां थ (५६-१) की ? । एहवा आ. नी वाणी नृत्यमंडप ३ सर्व निपजाव्युं । द्वार कोट निवजाव्यो। सांभली शासन देवीइं बालीका स्वरूप धरी : आवीनई तेहवे एक दिने स्वपुत्री पुठ्यु-ए द्रव्य तुम्हे किहा आचार्यनई करई जिमणे हाथै सूत्रना कोकडा नव देइं। थकी लावओ छओ ? इम वार ३ पुछै । पारस श्रेष्ठिई मुझ देही समाधी हूइं उबेलास्युं । ते सांभली श्री सरपुत्रीनई भद्रक पणई यथास्थित कह्यं । तिवारइं अधि- स्वती कहई सेढी नदीनई कंटी पलास वृक्ष हेठई टायकई द्रव्यनी वार्ता प्रगट करी जांणी स्वर्णाक्षत चीकणी भूमिका छई । ते अहिनाणई पहिला श्री नागाद्रव्य बंध कीधो । तिबारइं प्रासाद एतलो रह्यौ । तिवारइं ज्र्जुन योगीई विद्यासीधीइं भूभंडारित बिंब श्री थंभण पासश्रीमानदेव मुरीई श्रे० पारसना आग्रह थकी वि० सं० नओ समहिम्न छई । तिहां तुम्हे जाग्यो । श्री थंभण १११८ वर्षे श्री फलवद्धि नगरें महा महोछवई श्री पासनी स्तुती करज्यो । कीर्तना करतां ते बिंब सद्य पास बिंब थाप्यो । यदुन--
प्रगट हुसई । तहेना स्नाननई जलि सकल रोग ए देह श्रीमत् पार्श्वजिनाधीश: फलवाईपुरस्थितः । थकी जास्ये | पिण कोकडा नव तुम्हे उबेलज्यो। इम प्रणम्य परया भक्त्या सर्वाभीष्टार्थ साधकः । १ । कही देव्या श्री शारदा स्वस्थानिकई गयो । तेहना वचइणिपरे स महिम्न श्रीफलवार्द्ध तीर्थ प्रगट हओ। नने अनुसारई गौदुध चीकणी भूमीनइं अहिनाणी खाखर ४० तप्त श्री मुनिचंद्र सूरी |
वृक्ष हेठली जाई श्री अभय देवाचार्य उभा रही श्री श्री सूरीना उपदेश थकी वि. सं. १११५ बर्षि श्री थंभण पासनी कीर्ति तदूपि जयतिहुण बनि इ 'फणि दधिपद्रई वायट ज्ञातीय दो. अंबराजई श्री शांतिनाथनो फण फार फुरंत रयणकर' १७७० ए काव्य सतरमु कहिबिंब था (५५-२) प्यो । पुनः श्री सूरीना उपदेश ता श्री पास बिंब (५६-२) भूमिका थकी प्रगट थकी श्री सीरोही नगरे वि. सं. १११७ वर्षि विजापान तत्काल हुओ | श्री संधि स्नात्र ओछवई श्री पासना सगोत्रि(?)चहुआण श्री पृथ्वीराज हुओ | श्री सूरीई पाखी अभिषेकनओ जल सुच्चिपात्रई भरी गृहस्थि श्री आचासत्र ग्रंथ नीपजाव्यो | एहबई वि. सं. १११८ वर्घि श्री र्यनी देहीनई छांटवि करी गुरु अंग थकी सकल रोग उपअभयदेवसुरी प्रगट हुआ ।
द्रव सम्या । देह तप्तसुवर्णोपम हइ । महोछव मंगल श्री अभयदे वसूरीनी उत्पत्ति कहई छई। जय शब्द हूओ । तिणहीज टिकाणई सेढी नदीमेदपाट देशी बडसल ग्रामई तूंअर सगो नामि राज- नई तटि थंभणपुरनामें गाम थाप्यो । प्रासाद नीपपुत्र रहे छै । तिहां कौटिक गठे खरतर बिरुद धारक जावी वि. सं. १११९ वर्षि श्री अभयदेव सूरीइं थंभश्री जीनेश्वर सूरी विहार करता तिहां आया । श्री सूरी- णपुर प्रासादि श्री पासजी थाप्या । तिहां थकी विहार नई देधी सीबो ( सगो ? ) नम्यो । श्री गुरुई भव्यात्मा करता श्री अणहिल्ल पाटणि श्री पंचाश्वर पासने जूहारी जांणि उपदेश कह्यो । साभली बूज्यौ । तत्काल दीक्षा चोमा रह्यो । रहितां थकां एकदा गुरुने शासन देव्या लीधी । जोग्य जाणी आ० पद देई श्री अभयदेव सूरी दत्त नव सूत्रना कोकडानो उपयोग आव्यो । तिवारई नाम दीधु । अत्युग्र षट् विगयना त्याग थकी पूर्व कर्मा- श्री सरीई वि. सं. ११२० वर्षि भगवती प्रभुष नव अंग नुसारें देही कूष्ठ हूओ | श्री सूरी पूर्वोपार्जित कर्मे सूत्रना जे सिद्धान्त तेहनी टीका नीपजावी । ए वै श्री अहियासता थका गुज्जरात देसि भाणपुर गामि आव्या । थंभण पास प्रगट कार वि. सं. ११४५ वर्षि श्री गोपवडवृक्ष हेठलि रात्रि सुतां सुप्नमां तप लब्धि थकी नगरें आ० श्री अभयदेव सूरी स्वर्ग हुओ । तेह पछी अर्धनीसाई सासन देवी कहई-ऋषीश्वर ! जाग्र छो? (५७-१ ) केतलेक वर्षे गुर्जर देसी यवनराज हूओ ।
Aho I Shrutgyanam