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३० जैन साहित्य संशोधक-परिशिष्ट.
[खंड तिवारई श्री सकल संधि मिली सप्रभाव बिच जाणी वि. ११५० वर्षे दक्षिा लीधी । सोमदेव रुषी नाम दीधुं । सं० १३६२ वर्षे श्री खंभायत नगरे सुठिकाणे घणे श्री गुरुनी कृपा ( ५८-१) थी अनुक्रमि गुरु श्री देवयत्नि श्री थंभणापास थाप्या। नीलुप्पल समान नील चंद्र सुरी १ अनि शीध्य रुषी सोमदेव २ए बिहूं कलिंजर वर्ण देह धारक सकल क्षुत्रोपद्रववारक ते बिंब आज नामि पर्वतई कोइक ओषधीनई सोधिवा जाई छई। - लगाण समभाव छ ।
तिहां मारगमां श्री मलय गिरि सूरी मिल्या । तिहां थकी कुमा उक्तंच-जयत्यसौ स्तंभनपार्श्वनाथः
रिया गामें जातां थका तटाके धोबी वस्त्र धोतोदीटा । पानी प्रभावपूरैः पूरितं सनाथः ।
चीर देषी पूछी आ । तिवारी ते वस्त्रख्यालक गुरुन विघ्नसधन्वंवतरणैव येन
कहई-आ गामना श्रेष्टी तेहनी पाहेरवानो छ । तिहां कुष्ठोपतापोऽभयदेव सूरी ॥
चउमासि रह्या । केतलक दीने ते श्रीमाली गृहस्थनें स्फुटीचकाराभयदेवमरी--
पद्मनाना मुष आगेलई विद्या साधननु रहस्य कयौ । योभूमीमध्यास्थितमूर्ति सिद्धं (?)।। १ ।। श्री जीन शासननो भक्तिने हेत तिणे श्रीमालिइ अगिइणि परि आ० अभयदेव सूरी हता हुआ। कार कीधी । शुभ दिनई श्री रुषभ देव प्रासादे भी ग्रह
इति आ० अभय देव सूरी संबंध | श्री देवचद्रंसुरी १ श्री मलयगिरी सरी २१० सोम पुनः एहवई वि. सं. ११५२ वर्षे श्री जयसिंह देवि देव ३ ए त्रिह साधु दिगंबर हूइ काउस्सगे रह्या । श्री सीद्धपुर नगर वसाव्यु | इ ग्यार मालई करी श्री सन्माख नग्न पद्मनी स्त्री उभी रही । तेहना स्वामी ग्राम रुद्रालय थाप्यो । पुनः श्री विधिनाथ नवमा तीर्थकर, श्र० ते नग्न खडग हाथई झाली लई श्री गुरुने पासई आवी नओ प्रासाद नीपजाव्यो । स्व दर्शन १ अपर दर्शन २, साहस धैर्य धरी उभी र ( ५८-२) यो । गुरुई गृहस्थपोषी धणुं सुकृतई द्रव्य कांधो । वि. सं. ११५४ बर्षे नई कयूं-ध्यान थकी चुकै तेहना मस्तकई तत्काल खड्ग वृध तटाक १७ (५७-२ ) कराव्या ! ४१ जलनी दीर्घ दीजें, विलंब नहीं । इम विधि विद्या साधतां साहसीक वापीका निपजावी । ६१ कुंड बंधाव्या । ६७ रघु धैर्यपणो देषी ते देव ईग्यारमई दिने आवी कहई 'तूटो, तटाका दर्भावती. सहेली, झंझुवाडा प्रमुष नगरें गढ वर मांगि '| तिवारइं गुरु श्री देवचंद्र सरीइं वीर ५२ बंधाव्या । लघु वापिका १०२१, विश्राम थानीक वसिनओ वर माग्यो । श्री मलयगिरी सूरीइं सिद्धांतनी १०६८. देव देव्या यक्ष प्रासाद एक लक्ष निपजाव्या । टीका करवानो वर माग्यो । अनि रु० सेमदेवि राजा एहवई गुज्जरे अणाहिल पत्तनाधीश सोलंकी श्री जय- प्रतिबोधवानी शाक्ति मागी । त्रिहू साधुने ते देव वर सिंह देव राज्ये श्री कोटिक गछे, चंद्र कुले, वज्री शाघाई देइं अलोप हूओ | गृहस्थनें कोटी द्रव्यनी प्राप्ति हुई । आ० श्री देवचंद्र सूरी तेहना शिष्य आ० श्री हेमचंद्र तिहां थकी देवदत्त वर लेई श्री मलयगिरी सूरीई सूरी प्रगट हुआ।
मालव देशे बिहार कीधो अनि गुरु श्री देवचंद्र सूरी १ हवई श्री हेमचंद्राचार्यनी उत्पत्ति की है। अनि शिष्य रु० सोमदेव २ ए बिंहू गुरु शिष्य श्री गिरि___ गुर्जर देशि धंधुकि नगरई मोद ज्ञाती गोत्री साचओ रहै नारि नेमीश्वरनी यात्राई दर्शन करवा गया । तिहां छैई । तेहनी स्त्री चंगी नामि । तेहनओ पुत्र चगंदन मारगे कोइक गामि एक वाणक दरीद्री रहई छ । नामि छ। तिहा विहार करता आ० देवचंद्र सूरी पहिला नेहनई माता पिता महा श्रीमंत हूता । तेहनी आव्या । श्री सूरीनो धम्मोपदेस सांभली तिणई चंगदव भ्रांति ।तणे वणिक घरनी पुनः......थकी खणीने तिहा नामि पणिपुत्रे गुरु संयोगे परम श्रावक हओ। थकी द्रव्य प्रग (५९-१) ट कीचो | व्यंतराधिष्ठिते वि. सं. ११४५ वर्षे तेहनो जन्म । पांचमे वर्षे वि. सं. सेवतरा प्रगट हूया । तेह थकी घरने मध्य भागई दि
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