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जैन साहित्य संशोधक-परिशिष्ट.
पार ए सदैव श्री गुरुनि भक्ति साचवई । एकदा श्रीगुरु नगरे पंचनदीई मध्य भागई सैयद मलछनई वादई विहार करता श्रीगार्जर( ५३-१देशी वडनगरई आया। जीत्या | तिहां बणा जाडेचा क्षत्रीय प्रतिबोधी आढार तिहां संघ घणि मक्ति माचबई । श्रीसंप्रति निर्मापित गौत्र उपकेस ज्ञाता कीधा । ते परम जैन धर्म वासीत श्रीमहावीर प्रासादि घणा स्नात्रि, अष्ट प्रकारी पुजा, हूआ | श्री जिन शासनई शौभिनीक ए सूरी कहीवाणा। अष्टोतरीइं पंच शब्दा सदैव हूया । तिवारई मिथ्यात्वी श्री गुरुना नाम स्मरणिं दुखात विलय जाय । घाडवइं जैन महिमा जाणि कोइक त्रिवाडी वाडवने बरे अनुक्रमि श्री कुमारपाल राज्य विक० सं० १२११ वर्षे डोकरी गो करेरडी जणीने मृत्यु पामी । द्वष थकी ते श्री सूरीनई स्वर्गा हुओं। वाडवे गौ शव रात्रि एक द्वे मिली उपाडी लेई गुप्तपणइं
इति जिनदत्त सूरी संबंधः जिनघरे मूकी । सुप्रभाति शिष्य जिनदत्त दर्शनि आव्या! पुनः एहवई श्री मरुदेशी श्री फलवर्द्धि पुरी तीर्थनी प्रदिक्षणा करता गौ शव दीटो। तुरत आवी गुरुने उत्पत्ति, ते कहै छै । पुनः नाणावाल गछै श्री मानदेव कह्यो । गुरे उपयोग देइ जोयुं । मिथ्यात्वि व्यं तर पिण सूरी विहार करता फलवद्धिपुरी चुमासु रह्या । तिहां नहीं । मिथ्यात्वि वाइव जाण्या । श्रीगुरुइं देवधरनी ओ० गुरुड गौत्रि श्रे० पारस नामें गृहस्थ रहै छै । ते मोटी आसतना जाणी बावन वीर माहिलो पूर्णभद्र वीर भद्रक परिणाम करी निरंतर श्री सूरी वांदई । एकदा तेड्यो । ते हाथ जोडी कहे कार्य कहो । गुरु कहई शा- ते पारस श्रेष्टी गांम बाहिर कार्यार्थि, लधु बोरडीनी जालि समोन्नति करौ। आ प्रासाद थकी छ मासनी अवधई ए वृक्ष मध्ये कांइक नीला अनि कांइक सूका म्लान फूलाई शव सजीयन करी प्रगट पण काढो । किसई जेह जीव... करी पूजीत एहवओ पाषाणनो ढीगलो देषी, गुरु श्री ने अभयदान हुई । ते गुरुनई वचने देव मौ कलेवरई मानदेवनई आवी पुछ्युं ( ५४-२) जे ए दृषद पइठो । पतले देवघर थकी प्रगट पणिं सकल वा(५३-२) सदैव पूजि देखु टुं । ते माटे अत्र स्थानिकें काई डव तथा अन्य मनुष्य देवता ते गा सिंग धुणावती जिहां आश्चर्य दिसें छई । तिवारी श्री सूरी पारसनई कहईत्रिवाडी वाइवनइं घरई शिघई देव शक्ति वत्सीनई हेते ए दृषद पिला कर ओ | तिणे पारसे गुरु आज्ञा थकी करी मिलि । स्तनि दृधपान ते बसाई कीघो। तदेषी ते दृषद वेगला भिन्न भिन्न कीधा । तेतलई श्री पार्श्व सकल वडनगर वाडव हर्षित हुआ । माहोमाहि कहई--- बिंब दीटओ । पासने अधिष्टायाक प्रगट मनुध्यने अनामुका बीवाडी ! आ किस्यु ? ते वाडी यहई-ए शब्दि कहई-~~-जे प्रासाद करावी पूजा करजे । तिवारई महा कोईक दव शक्ति | नगरई वाला हुई | ए. जैना- पारस कहई द्रव्य नही । अधिष्टायक कहई श्री पासना चार्य महानाय धारक । पुनः अत्र गौ १ अनई वत्सी २ मुघाग्री समु प्रभाति स्वर्णना अक्षतनो ढिगलो निरंतर व्यय ए बिहु ज.वर्ने अभ्यदानना दातार कृपावंत दयावंत प्रमाण हुस्यई । ते द्रव्ये प्रासाद नीपजावं जे | पिण जांणी सकल मिथ्यात्वि श्रीगुस्ने नम्या | श्रीजिनशास- ए वार्ता कोई : आगलई न कहेवी | ते. पारस श्रेष्ठी ननी उन्नति हुई । एतलई नाम तो श्रीजिनदत्त सूरी अंगीकार करी घरे आवी श्री गुरुने बिंब प्रगट हूआनी पिण गौ १ वसाने २ अभयदान देव थकी उपगारी वार्ता कही । तिवारइं ते अधिष्ठायक आराध्यो । तिवारई हृया, तेह थकी सकल मनुष्य वडनगरे मिली श्री जिन ते देव आवी गुरुन कहई-पहिला इणि पुरि इणि दत्तने 'उपगारी सूरी' ए. बीजो नाम कह्यो । पुनः अण- ठिकाणे संप्रति नृपकारक पार्श्वनाथनो प्रासाद हूंतो । हिल् पत्तन पार्श्व श्री वायड नगरे श्रीगुरुइं वायड ज्ञाती- ते कालना योगी जज्जर हूई क्षय हुओ । ते बिंब ए या घणा गृहस्त प्रतिबेधी जिनधर्म वासित कीधा। श्री पासनी प्रगट हुई। श्रे० पारसनई दर्शन दीधो । पुनः श्री सूर्राई वृद्ध सिंधु देशी उचा (५.१ ) बीजई दिने देवक ( ५५.१ ) थक प्रमाणे स्वर्ण अक्ष
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