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________________ अंक ३] धीर बंशावलि. -anananA .. ..FRAMAnAAAAAA......... .. ARAMA ३७ तर श्रीदेव सूरी! वादीविताल बिरुदधारक थिराद्रीई चहुआण क्ष (५२-१) श्री सरीने हल्लारदेश स्वामी राजश्री कर्णसिंही त्री प्रतिबोधक श्रीशांति सुरी प्रगट हुआ । श्री रुपश्री बिरुद दीर्छ । पुनः जेहना उपदेश थकी ओ० सूरीयें चक्रेश्वरी १ पद्मावती २ ना साहाज्य कुर्कट गोत्रि सं० गोपि नव प्रसाद कीधा । पुनः चउ- थकी छवठण (?) पाण वि० सं० १०९१ वर्षि दशत एक श्री जिन बिंब धातु पट्टिकाई भराव्या । सातसें श्रीमाली गौत्रने धुलिकोट पडतो कह्यो । एतलि दक्षिणे नासिक नगरे श्रीचंद्रप्रभ प्रासादें जीणोद्धार हूओ। श्रीसंघ रक्षक, उत्तराध्ययननी वृद्ध टीका आढार पुनः वि० सं०१००४ वर्षे श्री रामसैन्य नगरइं श्रीरु- हजारना कारक, पुनः जीवविचार प्रकरणना कारक, षभ प्रासाद हुओ | पुनः श्री सरीये मालवदेसिं घणा- कानोहडी नगरई विक्रम सं० ११११ वर्षि श्री शांति पोरु गृहस्तने प्रतिबोधिन जैन प्राग्वाट कीधा । वि० सूरीनो स्वर्ग ह ओ । एहवई वि० सं० १११७ वर्षे सं० १००७ वर्षि शालानि स्थिति हुई || वडगछदं श्री चक्रेश्वरई ध्यारसया अनई पनर राज ३८ तत्सट्टे श्री अजितसिंह सूरी। कुमर प्रतियोध्या । पुनः धनपाल पंडिते श्रीरुषभ पंचाश्री सूरीना उपदेश थकी मेवाइ देशी प्रा. दौ० शिका । १ । देशीनाम माला कीधी। रुगनाथी सप्त प्रासाद नीपजाव्या । पुनः वि० सं० ३९ तत्पट्टे श्री यशोभद्र सूरी । १०१० वर्षि श्री रामसैन्य नगरें श्री रुषभ चैत्ये श्री लघु गुरुभाई श्रीनामचंद्र सूरी । चंद्रप्रभ स्वामी विंब प्रतिष्ठा हई । (५१-२) एवई डोकरा आ० गुरु श्री उद्यौतन सूरी आज्ञा यदुक्तं-चारित्रशद्धिविधिवज्जिनागमा लही श्री अझाहरी नगर थकी विहार करता श्री गुर्जरई विधाय भव्यानभितः प्रबोधयन् । अणहल्ल पाठणि आवी श्रीवर्द्धमानसूरी स्वर्ग हूया । चकार जैनेश्वरशासनोन्नतिर्यः तेहना शीष्य श्रीजिनेश्वर सूरी । पाटणि राजा श्री दुल्लभशिष्य लब्धाभिनवोतु गौतम( ? )॥ १ ॥ नी सभाई कूर्चपूरगच्छीय चैय ( ५२-२ ) वासी साथी नृपादृशाये ( सं. १०१० ) शरदांसहस्रे । कांस्यपात्रनी चरचा कीधी। तिहां श्रीदशविकालिकनि यो रामसैन्याह्वपुरे चकार | चरचा गाथा कहीने चैत्य वासीने जीत्या । तिवारइंरानाभयचैत्येऽष्टमतीर्थराज जाश्री दुल्लभ कहै ए आ. शास्त्रानुसारे खरं बोल्या तेह बिंबप्रतिष्ठा विधिवत्स्वद्रव्यैः ।। २ ॥ थकी विक्र० सं० १०८० वर्षे श्रीजीनेश्वर सुरिइं खरतर चंद्रावतीभूपतिनत्रकल्प बिरुद लाद्धो । तेहना सिष्य श्रीजीनचंद्र १ लघु गुरुभाई श्रीकुंकणमंत्रिणमुनरुद्धिं । श्री अभयदेव सूरी २ । तत्पट्टे श्रीजिन बल्लभ सुरि हूया | निर्मापितोत्तुंगविशाल चैत्यं तिणिं चित्रकूट पर्वति आवी श्रीमहावीरनओ छठको योऽदीक्षयत् शुगिरा प्रबोध्य ।। ३ || कल्याणक परुप्यौ । पुनः दोढसो, छयासीया ग्रंथ नीपएहवे वि.सं. १०२८ वर्षि आचारांग सूत्र १ सुगडा जाव्या । एक शत आ जाव्यो । एक शत अनि चौत्रसि बोलई करी खरतर गग सूत्र २ टीकाना करणहार श्रीशीलाचार्य प्रगट हआ।पुनः छनी समाचारी थापी । जेहना शिष्य श्री जिनदत सूरी तिणहीज वर्षि नीवृत्ति गळे अनेक ग्रंथकारक श्रीदौ- या । तेहनो संबंध कहई छइंणाच्यार्य प्रगट हया। पुन: मालव दोसिं उज्जणि श्रीलक्ष विक्रम सं. ११३२ वर्षि जन्म | एहवि श्रीजयभोजराजानो राज्य हओ। तेहनइं बेटई वीरनारायणि सिंघ दे राज जन्म ह ओ। वि० सं० ११४१ वर्षि वि. सं. १०७७ वर्षि सिवाणा गढ वसाव्यो । पुनः दीक्षा | विक० सं० ११७० वर्षे सुरीपद । श्रीसूरी नई एहवे वि० सं० १०९४ वर्षि, श्रीवडगठई श्रीलघुभोजदत्त तपस्वी जाणी चसटी योगिणी, बावन वार, पूनः पंच - Aho! Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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