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अंक ३]
वीर पेशावलि.
पिण हण्यो । ते बौद्ध सेन प्रातकाल हुओ जाणी पीताने पाप शुद्धिनइं देती आकर्षित बोधनी संख्याई चउदशत देसि बल्यो । हरि प्रभाते गृहस्थ श्री मुनिसुव्रतने दर्शनि अनि चउमालीस प्रकर्ण पूजापंचाशक प्रमुष, एक २ आव्या । देव प्रदिक्षणाई गृहस्थने रजहरण १ अनि पंचाशकै गाथा पंचास २ ( ४०-२) हूई एहवा ५० चुपडी २ लाधा । ते श्रीहरीभद्रने दीधा । गुरे रजोहरण पंचाशक, त्रीस अष्टक, सोल षोडस, पुनः आवश्यक वृद्ध
ओलख्यो । बौद्ध पुस्तीकानि चुपड़ी ते माही घंटाकर्णनो वर्ति कारक, विक्र० सं० ५६५ वर्षे श्री हरिभद्र स्वर्ग मंत्र वा ( ३९-२ ) च्यो । श्रीहरीभद्रे चितव्यु जे मुझ हुओ । इणि परि श्री हरिभद्रसूरी हूवा । शिष्य बिहू बौद्ध देशी विद्या भणवा गया तेहने बौद्धे कंड पूनः श्रीहरिभद्र सूरीना भाणेज श्रीसिद्धर्षि उपमिति करी हण्या दीसे छै । विद्याना रहस्य लेइ जातां जांणी भव प्रपंचा १ श्रीचंद्रकेवली चरित्र २ श्रीविजयचंद्रकेवली हण्या । गुरुने क्रोध हुआ | शालाने यंत्र कपाट करी, चरित्र ३ ना करणहार स्वर्ग हुओ । तेलपूरीत कढाइ लोहनी अग्नी चढावी गूरु दत्त पूर्व आ.
इति हरिभद्र संबंध ।। . म्नाय करी, जेतले कढाई कांकरी नाषई तिवारे बौद्ध तपस्वी
२७ तत्सद्दे श्रीविबुध प्रभसूरी । चउदशत अनि चुमालीस मंत्राकर्षित शकुनीका रुपि कडाहनि प्रदिक्षणा दीये छै । तेहवें जाकिनी नामि सा- पवई श्रीवीरमुक्ति हूआ पछी एक हजार अने चउद धवी, जेहना मुख थकी गाथा सांभली बाडीमा जा- वर्ष गयई हूतई पुनः वीकसं० ६ ० १ वर्षे गये हुंतई माइं गुरुमुष थकी गाथार्थ सांभली संपूर्ण प्रतिज्ञाई लवदेशी धारनगरई श्री सम्मति ग्रंथना करणहार श्री हरिभद्रे व्रत लीधु छै; एतलें इहां याकिनी नामी साधवी मल्लवादी सुरी प्रगट हुया । ते श्री हरीभद्र सूरी ने उपकारीगी हुई । ते माटी या- पुनः एहवे अवसरि आचार्य श्री बप्पभट्टसूरि प्रगट किनीसूनु श्रीहरीभदसूरी एहवओ विरुद काहँवाणूं । ते हूया तेह श्रीहरीभद्रनी गुरुबहिन याकिनी साधवीइं उंचु जोयुं, एत -
बप्पभट्ट सूरीसंबंध लई शकुनीका रूपे बौद्धाचार्य आवता दठा | साधवीई
कहै छै। जुमाहट देशि गोपाचलनी तलहट्टीइंगोपनगर जाण्यु जे क्रोधना फल कडवा छई। घणा जीवनें असंतोष वसे छ । तिहां चहुआंण श्री आम राजा राज करई छ । (४०-१) उपनो जांणी आचार्यनि क्रोधर्ना शांतिनइं एहवे अवसरइं श्री भारद्वाज वंशि प्रष्णवाहन कुले हर्ष हेति शिज्जातरी श्राविका साथई लेई शाला द्वारि उभी पुरी (४१-१) य गछि आचार्य बप्पभट्ट सूरी विहार कररही गुरु प्रतिकहै-एक पचिंद्री जीवनो घात अजाण ता आव्या । श्रीगुरु उपगारीपणे धर्मकथा कहै । तिवारई थकी हुओ तेहनी आलोयण कहो । तिवारई शालाई श्री आम संघ सहित गूरुप्रति वीनती करे, जो तुम्हे महा रह्या गुरु कहे-पंच कल्याणक तप अनि उपवास दश साधु छौ । भन्य जीवनें पवित्रनई हेति जंगम तीर्थ छै । चउविहार कह्या छै: । एतले चिहू उपवासें एक कल्या- ते माटे इंहां गोपनगरें चुमासे तुम्हें अवश्य रहिवं । णक तप जाणवो | पंच कल्याणक तपनी आलोयण तुम्ह गरु कहई जिहा लगण तुम्हारि सुदृष्टि हसि तिहां लगण ने आवी । ते सांभली साधवी कहें-अजाणपणेनी एवडी रहस्यं | इम कही श्रीगुरु चोमासें रहा । आम प्रमुख आलोयण कहौ छौ, तिवारई जाणपणाथकी घणा पंचें- संघ श्रीगुरुनी बहु विविध भक्ति साचवई । निरंतर गूरु द्रीय जीवना वधनी आलोयण कीसी हुई ? ते सांभली वांदी गुरुमुघे धर्मव्याख्या सांभले । गुरुवाणी रंजितथको गुरु कहै -ते कयु स्युं । गुरुने क्रोधनी शांति हुई । परम जैन राजा हुओ | एकदा पून्य तीथीनई दिने आम बोध सघला आकर्ष्या ते जीवता मुक्या । ए असार सं- राजानी स्त्री नीला वस्त्र सिणगार पेहरी गूरु मुष आगली सारे कुण गुरु कुंण शिष्य इम चितवी स्व'चित्त थकी कृत गृहलीइ स्वास्तिक करई छै । तिहां पगले २ वार २ मुखि
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