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जैन साहित्य संशोधक-परिशिष्ट.
मरकल डा करई । तिवारई आम राजाई गुरु श्री बप्प- दर्शन करी शालाई आव्या, गुरु नहीं । नगरई वार्ता हुई भट्टने पुछयु
एतलेइं आम राजा पिण आव्या । शाला जोता बारणीए बाल,चमकत्तिए एए कुणह कीस महभंगी । लखीत गाथा देषी । आम राजाई वांची, दासी मोकतदा गुरु कहाई---
यानी वार्ता माभली । मनस्य ( ४२.२) पश्चाताप न्न रमणीपएसे महलिया छयह मह भंग || १ || करता हूओ-मुझ थकी अवज्ञा हूई | केतलक दिने गुरु
प्रति बीनती कहावी । तिवारई गुरु धर्म स्नेह जाणी ए वचन सांभली राजा म्लान मुख हू ओ । एतले कहिराव्यु, जे तुम्हे वेष परिवर्तई आवज्यो । तिवारे कौतुक श्री गुरुने मुक्ताफलिं वधावतां नील वस्त्र देषी अवस्थाई रूपइं आम राजा कापडीना वेषे धूसर मलीन हुई, चक्षूना तेजहीणने अंगे नीलावस्त्र उपरि श्री सुरिनी तिहां मस्तकें आम्ल पत्रनो छोगओ धरी, बिहूं कान ऊपरी तुं• दृष्टि रही । तिहां आमनि पिण दृष्टि हुई । चितस्यु संदेह अरी पत्र थापी, पुनः बिहूं हस्तक मांहि बीजोरानां फल हूओ | जे साधुनी दृष्टि नोले सिणगार उपरि रही। ग्रही, शत्रु नगरी, जिहां गुरू, विरोधी राजा सहित, संव व्याख्यान सांभली घरे आवी राजाई गुरुनी परिक्षा जो- समक्ष, व्याख्यान कहई छई, तिहां उतावलो आवी उभो वाने अर्थि पोताना घरनी बडी दासीनई नीला सिंणागर रह्यो । आचार्ये आम ओलख्यो । साहमु जोइ अ दर पहिरावि, रात्रि प्रहर सबा गया पछी, शालाई गुरु पासें देइ कहई--" आम : आवओ, आम ! आवओ ते मोकली । जिहां रात्रि बप्पट्टि संथारा पोरसी कही सांभली-सकल सभा महा धंतर रुप देवी, आमनो संथारेई संथार्या छ, तिहां आवी आचार्यना चरण स्पर्ध्या । शत्रु राजा ते श्री गृरुने पूछे- पुरुषनई मस्तके किस्यु कोमल हाथ जांणी गुरु कहाई-ए कण स्त्री? तिवारइं ते कहइं, तेवारई गुरु क-ए आम्ल । त सांभली विरोधी हूं राजानी रांगी तेहनी मुख्य दासी |राजानी आज्ञा थकी इहां राजा पुनः पु?---ए पुरुषनें कांनई किस्युं ? तिवारई गुरु तुम्हारी भक्तिमां आवी छ । गुरु नीरादरई निभ्रंछी कहई-तुं अरि । ते सांभली विरोधी राजा गुरु...... काढी । ते दासी म्लान मुखी थई आम पासिं आवी आमनई कहई......(४३-१) विहरति ए समस्या गुरु सर्व स्वरूप कह्युं । हवें (४२-१) श्री गुरुइं उपयोग कथक सांभली शाला बाहिरई आम नीकली बारणई देतां थको धर्मकथाई नीला वस्त्रनो उपयोग हूओ। खडीना खंड थकी ए श्लोक लिष्यो. आम मनें संदेह जांणी सुदृष्टिनी प्रतिज्ञा पूर्ण हूइ। गिरी गोपपुरे रम्ये प्रभो ! तत्र पधार्यतां ।। प्रभातना पडीकमणानी क्रिया साचवी गंतुक मनी हूया । सभामध्ये समागत्य, प्रतिज्ञा पूरिता मया ॥ १ ।। विहार करता थकां खडीनां पंड थकी शालाने बारणे ए सकल लोक देवतां ए श्लोक लिघि आम पोतानई गाथा लीषी
घरे आव्या | बीजई दीने संघ तथा राजा पासें गुरै दो तुंबढाई हत्थे वयणे धम्म अखराय चत्तारी। आज्ञा मांगी। अम्हे गोप नगरइं जास्यु | तिवारई वीउलंच भरहवास को अम पहूत्तणं हरइ ।१। . आमनो शत्रू राजा कहई, जिवारई तूमनई तेडवा आम
आम अनि अन्य राजाने मांहो मांहे विरोध छई, आवई, ते तुह्मारो वचन छदं । ते सांभली गुरु कहई । तेहनई नगरई आव्या । तिणे आम गुरु आव्या ते तो काले वामान मांहि आधिनइं गया । तिवारई जांणी घणो आदर देई, बिहू हाथ जोडी कहई-हे विरोधी राजा कहें तुम्हे मुझने कयौ न्ही । गुरु कहें संब पूज्य ! जिवारी आम अत्र तडवा आवै तिवारई समक्षई मई कहयुं जे ' आम ! आयो आम ! आवो ' आमनगरइं जावं, नहीं तु नही । एहवी प्रतिज्ञा करी पुन तुम्हे पुछयु ज ए पुरुष मस्तके किस्युं, तबारे अम्हे तिहां रह्या । हवई ग्यालेर नगरें गृहस्थ प्रातकालि देव कहयुं जें ए आम्ल । पुनः तुम्हे पूछयु, जे ए काने स्युं,
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