________________
अंक ३ ]
तद्रुप
चक्रे
"
जैन छे, ते कहें- इणहीज नगरें जैनाचार्य श्री मानतुंग सूरी महा आम्नायना वारक महा विद्यापात्र निगवी छई । ते सांभली वृद्ध भोजै श्रीमानतुंगसूरीने कचेरीइं तेड्या | वादी कहे, हे दर्शनी ! महापुरुष छो तुम्हे सासननो महिमा करो | तिवारे श्रीमानतुंग वृद्ध भोजने कहें पग थकी कंठ लगे आठील अडतालीस ताला सहीत गाढी मुझ देही करो । राजाई सहु कचेरीना मनुष्य देषतां तिमज कीधु । पछी तिहां थकी उपाडी ओरडा माहि घाली वारणै ताला देइ रक्षक मुक्या कह्युं जपणे रहज्यौ । श्रीगुरु ओरडे बेठा । श्री रुषभ स्तुति श्री भक्तामर स्तोत्र कहितां श्रीरुषभ देवनी कीकरी श्वरी शक्ति आवी । एक २ काव्यई एक निगड एक तालओ उवाडे इम ( ३५- १ ) कहितां थकां " आपा दकंठ मुरुशृंखलवेष्टितांगा० ४२ ए काव्य बहिता लीस कहितां थकां सर्व आर्टल भागी ओरडाना कपाट घुल्या | श्री सूरी रक्षकने पासें आवी उभा । सेवके जोई वृद्ध भोजन वीनव्या । श्रीगुरु कचेरी आव्या देषी राजा नम्यो | आश्चर्य पांमी कहई, धन्य ए धर्म्म ! धन्य ए दर्शन जैन ! जिहां एहवा प्रभाविक महाम्नायना जांण, श्रीमानतुंग जेहवा रत्न त्रयीना आराधक छ । महा निस्पृह निर्लोभी जांणी, परमार वृद्ध भोज श्रीसूरी नई कहई, तुम्हे कीस्यो स्मरण कीधो । तिवारें श्रीगुरू कहे भक्तामर स्तोत्र रूपीई श्रीरुषभदेवनी स्तुतीनो स्मरण कीधो । वृद्ध भोज कहै, ते कहो । जे स्तोत्रि आटील त्रुटा एहवा मंत्राम्नाय है । तिवारें श्रीसुरी स्वर पद अक्षर मंत्र युक्त सभा समक्ष प्रगटपणे श्रीमक्तामर स्तोत्र कौ । ते सांभली वृद्ध भोज श्रीसूरीनें महामहोछवें शा लाई पराव्या । ते दिन यही श्रीभक्तामर स्तोत्रनो महिमा भूमंडलई लोकने विषे विस्तरयो । श्रीजिन शासननी कीर्ति हूइ । इति भक्तामरनी उत्पत्ति जांण ( ३५-२ ) वी ।
वीर वंशावलि.
६.५
लीस वर्षे पुनः वि. सं. ४२४ वर्षे पडी दिशि भी नगरनो भंग हुओ !!
२१ तत्पट्टे श्री वीर सूरी | श्री सुरीये दक्षिण देशी नागपुर नगरे श्री नेमीनाथ बिंब प्रतिष्ठ्यो । एहवई समई श्री वीरनर्वाण हुआ पछी आठसय अनि पिस्ता
२९ तत्पट्टे श्री जयदेव सूरी। क्षणी सुरीदें रेतभोरनई गिरि शृंगई विक्र. ५७२ वर्षे पद्म वि प्रतिष्ठये । पूनः श्री पद्मावती मूर्ति स्थापि | श्री गुरुइं थलेची मरुधरई विहार कर्यो । तिहां भाटी क्षत्रीयना प्रतिबोधक हुया ।
२३ सट्टे की देवानंद सूरी | श्री सुरीह पश्चिम दिशि देवकई पत्तनई विक्र. ५८५ वर्षे श्री श्री पानाथ थाप्यो । पुनः वि० ५७१ वर्षि कच्छ देशी सुथरी ग्राम शिव अनि जैननई बाद हूओ ।।
२४ तत्पट्टे श्री विक्रम सूरी। श्री गुरने भारदा प्रसंन हुई । गुर्जर देशी सरस्वती नदी तट्टे खरसडी ग्रामने विषे विमासी चडवीहार तप कीधो । ते तपना महिमा थकी सारदाई श्री गुरु नमी पीपल वृक्ष सुकओ हूंनो त ( ३६ - १ ) नवपल्लव कप | श्री गुरु कीर्ति हुई । पुनः श्री गुरुई धान्यभार देशि गोला नगर घणा परमार क्षत्री प्रतिबोवी उपकेश कीधा ।
२५ तत्पट्टे श्री नरसिंह सूरी । श्रा सूरीइं उमरगाढ पुहकरना तावनें कंठे भादा प्रमुष नगरे नवरात्रीय अष्टीमीनि दिनई महिष वचनो व्यंतर राक्षस भोग लेता तेहने धम्मपदेश देइ महिना व मुकाव्या ||
२६ तत्पट्टे श्री समुद्र सूरी। मेवाड देशी कुंभलमेरई जाति खोमण क्षत्री । संसार असार जांणी गुरु श्री नरसिंह पासि दिक्षा लीधी | श्री गुरु योग्य : जांणी गच्छ नायक पद दी। श्री मुरी चाडमेर कोटडां प्रमुख नगरि चामुंडा प्रतिबोधक हूया । पुनः अणहिल्ल पत्तने ( ? ) दिगंबर वाद जीती वैराट नगरें जय करयो । यत उक्तं
खोमाजराजकुजोऽपि सुमद्रसूरी
गच्छे शशांककल्पः प्रवणः प्रमाणी । जित्वा तदा क्षपणकान् स्ववशं वितेने
नागदे भुजगनाथ नमस्यतीर्थे ॥ १ ॥ एहवें वि० सं० ५२५ वर्षी श्री जिनभद्र गाण
Aho! Shrutgyanam