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नगर की आवी चहूआण श्री नाहडई श्री वीर वित्र अहार भार सुवर्णमय समासाद थाप्यो । श्री वृद्धदेव सूरी प्रतिष्ठयो ।
जैन साहित्य संशोधक-परिशिष्ट
१८ तट्टे प्रयोतनसूरी | एह विक्र. सं. ५९५ वर्षे अजयामेरु नगरें श्री रुपम बिंब प्रतिष्ठा नीपजावी । पुनः सुवर्णगीरी दो. धनपति द्विलक्ष द्रव्य सुकिति करी यक्षवसती नांम रवि प्रासाद सहित प्रतिष्ठा हूइ । एहीज सूरीई प्रतिष्ठा कीधी ।
१९ तल श्री मानदेव सूरी |
सूरी पदना महिमा थकी षट्विगय त्यागी (३३-१) तेहने भक्तिवंत गृहस्थ भक्ति करी आहार आपे तो आहार न लेवो । ते तपना महिमा थकी पद्मा १ जया २ विजया ३ अपराजिता ४ एच्यार देवी श्री गुरुनी भक्ति साचो | अमारि पलावई । श्री सूरिहं नाडओल नगरे लघु शान्ति निपजावी तेहनई संभलाववाई तथा तेहने जलमंत्री छांटवें चतुर्विव संव थकी महामारि काढि संघ उपद्रव रहीत हूओ | श्री सूरी संघने कुशलकारी हुया । श्री गुरुनो वृव सिंव देशीं विहार हूओ ।
उच गाजिघान देराउल प्रमुख नगरिं घणा सोढा राजकुमारती उपश कीवा । एहनो विस्तार सबंध प्रभावक नई रेतें जो पांचज्यो ।
२० तल श्री मनितुंग सूरी | श्री सूरी अष्ट भय गर्भित भयहर काहतां नमीऊण' इस्ये नाम स्तोत्र श्री पार्श्वनाथनी स्तवना रुपई श्री पद्मावती कृपा की नीपजावी ते माहि 'विलसंत भोग भीसण ' ए गाया आठमीनई कहिवें करी जेणई श्री नागराज वांश कोवो | पुनः श्री सूरीइं श्री चक्रेश्व(३३-२) रीना साज्य की वृद्ध भोज राजानी समाने विषे श्री भक्तामर एहवई नाम स्तोत्र प्रगट कीधो ।
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[ खंड १
विवाद करता राज सभाई माहोमाहि अहंकार घरें ! हुं वणो भध्यो, तेह थकी हुं अधिक पात्र हुँ । इम बहुं मत्सर धरता देषी वृद्ध भोज कहें, रे दक्षो ! तुम्हे बेहुं कास्मिर देशी जाओ | तिहां सारदा जेहनई विद्यावंत कहई ते मोटो पंडित । ते हि राजानो वचन सामली कास्मिर भणी चाल्या | अनुक्रमा वणो मारग उल्लंबी सारदा मंदिर प्रति पाभ्यां । भोजन करा संध्याई बिहु सुता छई, एतलई सरस्वतीई परिक्षार्थि मयने अर्थ जागर्ते ए समस्या पद पूछं " शतचंद्र नमस्थलं "
जे-
ते सांभली मयूरे क दामोदरकराघातविह्वलीभूतचेतसा ।
दृष्टं चाणूर मल्लेन शतचंद्र नभस्थलं || १ || ( ३४- १ ) एही समस्या मयूरे संपूर्ण कही ।
ते सांभली पुनः बाणने परीक्षा हति सारदाई समस्यानुं पद पूछीओ जे-" शतचंद्र नमस्थलं " ते सांभली बाणे अर्ध जागतई क
यस्यामुत्तंगसौधा विलोलवदनांबुजे ।
विरराज विभावय शतचंद्र नमस्थलं ॥ १ ॥
से भक्तामर स्तोत्रनो उत्पत्ति कहई छई । यथा:मालवदेशी उजेनी नगरई राजा भोज वृद्ध छे । ते राज्य करे | तिहां मयुर अने बाण २ एहवें नामई बिहुँ वाडव महाविद्यापात्र रहई छई | एकदा ते ि
एहवी समस्या बांणें करी । ते बीहुनी वांणी सांभली कुमारीका कहें तुम्हें बिहुं महाप्रज्ञ छौं; एहवूं बिरुद लही
तक दिवसें घरे आव्या । बिहुने पंडित जांणिया | तो पिण मयूरनई वृद्ध जाणी भोज घणो आदर दीई । एतले बाण द्वेष घरी | स्वहस्ते चउरंगो हुई चंडीकाने प्रासादे बेठो | चंडीकाना काव्य ६१ करी स्तवना कीधी एतले चंडी प्रत्यक्ष हुई कहई वर मांगी, हुं तुठी । ते बाण कहे, लोके आश्चर्यपणा थकी हस्त पाद नव पल्लव आपओ | देवी कहें हुआ । एतले हस्तपाद नव पल्लव लही नगर मध्य थई दरबारे राजानी कचेरीइं बाग आव्यो । महा आम्नायवंत जांणी राजाई आदर आप्यो । एहवो चमत्कार देषी राजा श्री ( ३४२ ) वृद्ध भोज सभा समक्ष सकल पंडित मंडलीने कहर, जे चमत्कार देवी राजा शिवि दर्शन विना एहवा चमत्कार आमनाय राजापी कामदार
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