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जैन साहित्य संशोधक
[ खंड १
आवे छे. परंतु आ वाचताना संबंधां मारुं एवं मानवं छे के जैनोए मूळ आ विचार आजीविको पासेथी लीधो हतो, अने पाछळथी पोताना बीजा बधा सिद्धान्तोनी साथे ते संगत बने तेवी रीते तेमां फेरफार कर्यो हतो. आचार विषयक सघळा नियमोना संबंधम, जेटला प्रमाणो उपलब्ध थाय छे ते उपरथी, लगभग सिद्ध थाय छे के महावीरे अधिक कठोर नियमो गोसालना लीवा हता. कारण के उत्तराध्ययन २३, १३ ( पृ० १२) मो जणाव्या प्रमाणे पार्श्वना धर्ममां निग्रैथाने नीचे अने उपरना भागमां एकेक वस्त्र पेहरवानी छूट हती. परंतु वर्धमानना धर्ममा कपडानो स्पष्ट निषेध करवामां आव्यो हतो. नग्न साधु माटे जैन सूत्रोमां अनेक स्थळे मळी आवतो शब्द 'अचेलक'' छे जेनो शब्दार्थ 'वस्त्र रहित' एवो थाय छे. बौद्धो अचेलको अने निर्ग्रथोने भिन्न भिन्न माने छे. उदाहरण तरीके धम्मपदं उपरनो बुद्धघोषकृत टीकामां केटore भिक्षुओना संबंधां जणावेलुं छे के, तेओ अचेलको करतां निर्ग्रथोने वधारे पसंद करता हता. कारण के अचेलको तद्दन नग्न रहे छे ( सब्बसो अपटिच्छन्ना ) परन्तु निर्ग्रन्थो कोई जातनुं द्वंकुं आवरण राखे छे; जेने ते भिक्षुओ खोटी रीते 'लज्जानी खातर' मानता हता. अचेलक शब्दद्वारा बौद्धो मक्खल गोसाल अने तेनी पूर्वे थई गला किस संकिe अने नन्द वच्छना अनुयायिओने सूचवे छे। अने तेओना धार्मिक आचारोनुं वर्णन मज्झि मनिकायमा संगृहीत राख्युं छे. तेमां ते स्थले निगण्ठपुत्त सञ्चक — जेनी ओळखाण अपणने उपर थई गरली छे
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तनुसार, मक्खलिपुत्त गोसालनी मोदी असर थयेली छे. भगवती १५, १, मां आपेलो तेना जीवननो इतिहास, हॉर्नले पोताना उवासँग दसा ओना भाषान्तरने अंते, एक परिशिष्टमा संक्षेपमां भाषान्तरित करेलो छे. तेमां ए प्रमाणे नोबेलुंछे के, गोसाल महावीरनी साये तेमना शिष्य तरीके श्रमणधर्म पाळतो थको छ वर्ष सुधी रह्यो हतो. परन्तु पछी ते तेमनाथी जुदो थई गयो अने पोतानो नवो धर्म स्थापीदिन तरीके आजीविकोनो नायक कहेवडावबा लाग्यो. परन्तु बौद्ध ग्रंथोमां तेना संबंधमां एवी नोंध मळी आवे छे के ते नन्द वच्छ अने किस संकिचनो उत्तराधिकारी हतो अने तेन संप्रदाय सानुवर्गमा चिरस्थापित ( लांबा वखत पू स्थापित थलो एवो ) मनातो होई अवेलक परवाना नाने प्रसिद्ध हतो. जैनोनी ए हकिकत के महावीर अने गोसाल ए बन्नेए केटलाक वखत सुधी साथे तपश्चर्या कहती, तेमां शंका करवानुं काई कारण नथी. परन्तु तेओ बन्ने बच्चे जे संबंध बताववामां आवे छे ते वास्तमां तेनाथी जुदा प्रकरनो होय तेम लागे छे. मारुं ए मानवुं छे;--अने मारा आ अभिप्रायना पक्षमां हुं हमणा जकेटलीक दलीला आपीश के महावीर अने गे साल ए बन्ने पोताना संप्रदायोने एक करवाना अने एकने वीजामां मेळवी देवाना इरादाथी परस्पर सहबन्याहता अने लांबा वखत सुधी आ बन्ने आसाथै रह्या हता. ए बावत उपरथी चोक्कत अनुमान थाय छे के ते बन्नेना मतोनी वचे केटक साम्य हो ज जोईए. आगळ पृ० २६ उपरनी टीपमां में जगान्युं
छेक 'सव्ये सत्ता, सव्ये पाणा, सब्वे भूतः, सव्वे जीवा'
ना स्वरूपनुं वर्णन गोसाल तेमज जैनोनी बच्चे समान छे. अने टीकामां जगावेल एकेंद्रिय द्विन्द्रियादि वर्गरूपे प्राजिओना विभाग के जे जैन ग्रंथोमां घण्णा ज साधारण छे, तेवा विभागोनो गोसाले पण उपयोग कर्यो छे. चमस्कारी अने लगभग असत्याभासरूप छ लेश्यानो जैनसिद्धान्त, जेने पहेली ज वखत दृष्टिगोचर कर्मानुं मान प्रो० ल्यूमनने बड़े छे - गोसाले कोला सघळी मनुष्यजाति माटेना छ वर्गोंना विभाग साये संपूर्ण रीते मळतो
१ बीजां एक शब्द 'जिनकल्पिक' छ जेनो अर्थ 'जिन जेवो आचार पालनार' थई शके. श्वेतांबरी कह छे के निकल्पने बदले प्राचीन काळमां ज स्थविरकल्प स्थिर करवामां अव्यो हतो जेनी अंदर बस्त्र राखवानी छूट आपवामां आवी हती.
१ जओ फोन आवृत्ति, पृ. ३९८.
२ मूळमां भावेला 'सेसक पुरिमसमपिता व पटिच्छान्ति ' ए शब्दो बराबर स्पष्ट थता नथी. परंतु तेमां जोवामां आवतो विरोध निशंकरीते ए ज भावार्थ सूचचे छे. पाली शब्द 'सेवक ते मारा धारा प्रमाणे संस्कृत 'शिक्षक' नुं रूप छे आ जो खरू होय तो उपरना शब्दानुं भातन्तर नीचे प्रमाणे ४ई शके 'तेभो ( शरीरना) बागला बाग उपर (कपडुं) पढेरी गुह्यांगने ढांके छे
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