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डॉ. हर्मन जेकोबीनी जैन सूत्रोपरनी प्रभावना नास्ति अवक्तव्यः ); केटलाक प्रसंगे नास्तित्व ( स्याद् निर्वाणना सिद्धान्तने झीलया माटे भूमि तैयार करी राज। नास्ति अवक्तव्यः ); अने केटलीक वखते बन्नेनुं विधान हती. एक बाबत खास नोध लेवा जेध छ:----संयुतकरवू अशक्य होय छे (स्याद् अस्ति नास्ति अवक्तव्यः)' निकाय जेनुं भावांतर प्रो. अल्डन वर्ग करेलु छे, तेमा
आ वाद ते जैनोना प्रसिद्ध सप्तभंगी नय छे. शुं कोई एक ठेकाणे पसेनदि रजा अने खेना नामनी आर्यावचे पण तत्त्ववेत्ता पोताना भयंकर प्रतिस्पर्धने चूप करवाना थए को संवाद आवे छ. तेमा राजाए मृत्यु दाद तथागत प्रयोजन सिवाय, जेने प्रमाणनी जरूर नथी, एवी उवाडी हयाती धरावे छे के नहीं ए संबं वनां प्रश्न पूछेला छे. बाबतोनी व्याख्या करवानी इच्छा करे खरो ? एम लागे जे सूत्रोमां आ प्रश्नो पूछेला छे, तेमां सामञफलत छे के अज्ञेयवादिओना सूक्ष्म विवादोए प्राय तेमना धणा -के जेनु भाषांतर उपर आपेलु छे,-मां जेधा शब्दो खरा समकालीन मनुष्योने गुंचवणमा नांख्या हो अगर संजय वापरे छ तेवा ज शब्दो वापरेला छे. भमाव्या हशे; अने तेथी करीने ते सर्वेने अज्ञानवादनी भूल- बुद्धना समयना अशेयवादनी अतर बुद्ध उपर थई हती मूलामणीमांथी बहार निकळवा माटे स्याद्वादनो सिद्धान्त तेवा प्रकारना मारा अनुमाननी पुष्टिमां हुं महावग्ग १, एक क्षेममार्ग तरीके देखायो हशे. आ शास्त्रनी मददथी २३ अने २४ मां आपेली एक परंपरागत कथा अत्रे विरोधिओ उपर आक्रमण करनार अज्ञानवादिओ पोताना ज रजु करूं छु. ते कथामा एम जणावेलुं छे के बुद्धना साथी सामे थई जता हता. आपणे नथी कही शकता के अज्ञेय- वधारे प्रख्यात एवा सारिपुत्त अने मोग्गलान नामना वादना केटला अनुयायिओ, आ सप्तभंगी नयना सत्यनी बे शिष्यो, तेमना अनुयायी थया पहेला सञ्जयना शिष्यो प्रतीति पामी महावीरना धर्ममा आवी गया हशे! हता अने पछीथी तेओए पोताना सूना गुरुना मतना ___ अज्ञेयवादनी बुद्धना उपर पण केटली बधी असर थई २५० शिष्योने पण बौद्धमानी बनाव्या हता. आ हकिकत हती ते आपणे पाली ग्रंथोमा निरुपित बुद्धना निर्वाण बुद्धे बोधि प्राप्त कर्यु त्यार पछी तरत ज बनी हती. आ विषयक सिद्धान्तमा जोई शकीए छीए. आपकारनां नि- थी ए संभषित छे के पोताना नया मतना प्रारंभ कालनां श्चयात्मक वाक्यो तरफ प्रथम ध्यान प्रो. ओल्डनबर्गे बुद्धे शिष्यो भेळववा माटे ते वखते प्रचलित एवा बीजा खेच्युं हतुं, आ वाक्यो निःशंक पणे जणाधे छ के मृत्यु मतो तरफ सभकारनी योग्य वर्तगुंक राखवानी कोशीश बाद तथागत ( अर्थात् मुक्तात्मा अथवा जेने वास्तवमां करी हशे. व्यक्तित्वना हेतु कही शकाय ते ) हयाती धरावे छे के महावीरना सिद्धान्तोना विकास उपर, मारी मान्यनहीं; एवा प्रश्ननो उत्तर आपवा बुद्ध चेक्खी ना पाडता हता. जो तेमना समयना लोकोना सांभळवामां आवा विचा
२ निर्गणना स्वरूप-कथन संवन्धमा बुद्ध जे मन धारण कर्यु
हतुं ते मना बखतमा भल डहाथप भलु गणाधु होय, परंतु ते से बिलकुल न आव्या होत अने आवी केटलीक बाबतो के संप्रदायना विकासने मांट तो तमांधा पारेगामो समाएला हता. जे मनुष्यना मनथी अतीत होई ते धणी महत्त्वनी गणाय कारण के बेद्ध सतना अनु परायाने, ब्राह्मग दार्शनिको जवा छतना संबंधमां, तेवा प्रकारना उत्तरोथीते लोकोने दूधनाथी पोरा क.दनारा कशास्त्राओनी विरुद्ध पोताना मतन
टकाव राखबान होवार्थी, आ महान् प्रश्न जे। विषयमा ते. संतोष.न वळतो होत तो तेओ, तेवा कोई धार्मिक सुवा- मना संस्थापक काई पग निश्चयात्मक कथन
क रते रक के जे ब्राह्मणधर्ममां तर्कसिद्ध निरुपित सबळी बाब- उपर वधारे स्पष्ट बिनारो जणावधानी फरज पड़ी ही. आ रीते तोना संबंधमां पोतामो स्पट अभिप्राय न आपे तेना पोताना गुरुए अर्था गखेला महेछने पूर्ण करवा माटे सामग्री
भेगी करवाना उद्देश थी बुद्धानर्वाण पछी तरत ज बौद्धधर्भ पुष्कळ उपदेशोने आदरपूर्वक सामळे ए असंभावित छ, परन्तु संप्रदाय ना समां विभक्त थई गयो हो. आश्चर्थ पाभवानी जरूर वस्तुस्थिति जोतां एम लागे छेके अज्ञेयवादे बौद्धोना। नथी के सिलोन जे बाह्म विद्याविषयक केंदा घj दूर आयेलु
छे त्या बौद्धोना आ निवागना सिद्धात असलामा अांडत १ भांडारकर-रिपोर्ट सन् १८८३-४ पृ. ९५
रही शक्यो छ.
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