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जैन साहित्य संशोधक
[खंड,
गमे ते हो पण तेमनामांना, कोईमां आंतर बल, शक्ति अस्तित्व अने नास्तित्वना संबंधमां सर्वे प्रकारनी निरूतथा सामर्थ्य नथी; परंतु आ दरेक जीव पोतानी स्वभा- पण पद्धतिओ तपासता हता अने जो ते वस्तु अनुभवावनियतिने वश थई, छ प्रकारमांनी कोई पण जातिमां तीत मालुम पडती तो तेओ सर्वे कथननी रीति ओनो रही सुख-दुःख भोगवे छे. इत्यादि.' आ सिद्धान्तानुं सूत्र इनकार करता हता. कृतांगमां (]. c. ) आपेलु वर्णन जो के थोडा शब्दोमा
. बुद्ध अने महावीरना समयमा प्रचलित एवा अन्य छे, छतां पण सरखा भावार्थवाळु छ; अलबत, ते स्थळे
तात्त्विक विचारोना विषयमां जैन तथा बौद्ध ग्रंथोमां मळी आ सिद्धान्तो मक्खलिपुत्र गोसालना छे एम स्पष्ट
आवती नोंधो गमे तटली जूज होय, तो पण ते नामां- । कहेवामां आव्युं नथी. जैनो प्रधानतया चार दर्शनोनो
कित कालना इतिहासकारने अति महत्त्वनी छे. कारण
के आ नोधो द्वारा ते कालना धार्मिक सुधारकने केवा नवाद अने वैनयिकवाद, आमांथी अज्ञानिको
प्रकारना पाया उपर तथा कया साधनोनी मददथी पो. ना मतोर्नु मूळमां स्पष्ट कथन करेलु देखातुं नथी. काही
तानो मत उभो करवो पड्यो हतो ते जणाई आबे छे. आ सवळां दर्शनोना विषयमा टीकाकारे जे समजुतो
एक बाजुए आ बधा पाखंडी मनोमां मळी आवती परआपेली छे, अने जे में पृ. ८३ नी २ नंबरनी टीपमां
स्परनी केटलीक साम्यता अने बीजी बाजुए जैन अगर नोंधेली छे, ते घणी ज अस्पष्ट अने गेरसमजुती उत्पन्न
बौद्धोनी जणाती विशिष्टता उपरथी स्पष्ट रीते अनुमान करे तेवी छे. परन्तु ए अज्ञेयवादनो यथार्थ ख्याल आप- करी शकाय के के बद्ध अने महावीरे केटलाक विचारो णने बौद्ध ग्रंथोथी आवी शके तेम छे. सामञफल- तो आ पाखडीओना मतोमाथी लीधा हता अने केटमत्तमां जणाव्या प्रमाणे ते मत सञ्जय बेलट्ठिपुत्तनो हतो; लाक तेओनी साथे चालता तेमना सतत वादविवादनी अने त्यां नीचे प्रमाणे तेनुं वर्णन करेलु छः-'महाराज, असरथी उपजावी कढाया हता. मारु एम धारचु छे के जो मने तमे पुछशो के जीवनी कोई भावी अवस्था छ । सनयना अज्ञेयवादनी विरुद्ध महावीरे पोतानो स्याद्वादना तो हं जबाब आपीश के जो हुं भावी अवस्था अनु- मत स्थाप्यो हतो. अज्ञानवाद जणावे छे के जे वस्तु आभवी शकुं, तो पछी हुं ते अवस्थानुं स्वरूप समजावी
पणा अनुभवनी पछे तेना संबंधमां अस्तित्व अगर शकुं. जो मने पुछशो के शुं ते अवस्था आ प्रकारनी
नास्तित्व अथवा युगपत् अस्तित्व अने नास्तित्वन विछे? तो (हुं कहीश के ) ते मारो विषय नथी. शुं ते
धान, अगर निषेध करी शकाय नहीं. ते ज रीते पण तेथी ते प्रकारनी छे ? ते मारो विषय नथी. शुं ते आ बन्नेथी
उलटी दिशार दोढतो स्याद्वाद एम प्रतिपादन करे के भिन्न छ ? ते पण मारो विषय नथी. नथी एम नथी ? ते
के एक दृष्टिए ( अपेक्षाए ) कोई पुरुष वस्तुना अस्तिपण मारो विषय नथी.' इत्यादि. आ ज रीते मृत्यु
त्वनुं विधान करी शके ( स्याद अस्त्रि) तेम बीजी पछी तथागतनी हयाती रहे छे के नहीं ? रहे छे अने
दृष्टिए तेनो निषेध करी शके ( स्यादे नास्ति ); अने नथी रहेती ? रहे छे एमए नथी ? अने नथी रहेती एम
तेवी ज रीते भिन्न भिन्न कालमां ते वस्तुना अस्तित्व तथा ए नथी १ . आवा प्रश्नो जो कोई पूछे तो तेनो पण
नास्तित्वनुं विधान करी शके ( स्याद् अस्ति नास्ति) ते ए ज रीत जबाब आपे छे. आ उपरथी
परन्तु जो एक ज कालमां अने एक ज दृष्टिए कोई मनुष्य स्पष्ट छे के अशेयवादीओ कोई पण वस्तुना
- वस्तुना अस्तित्वनु तथा नास्तित्वनुं विधान करवा इच्छतो सत्ता-एटले ऊंट, बळद, गधेडा अने तेवा बीजा बधा पशुओ. होय तेणे एम कहेवू जोईए के ते वस्तु विषये काई कही सब्बे पाणा-पटले एकेन्द्रिय द्विन्द्रिय आदि चेतनाबाळा प्रापिओ, सच्चे भूता-एटले अण्डज अने गर्भज जीवोः अने सच्चे जीजा शकाय नहीं (स्याद् अवक्तव्यः ). ते प्रमाणे केटलाक -एटले डांगर, जव, घऊ इत्यादि (वानस्पतिक ) जीवो. संयोगोमा अस्तित्वनुं विधान करवू अशक्य छे (स्याद्
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