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डॉ. हर्मन जेकोबीनी जैन सूत्रोपरनी प्रस्तावना
अंक ४ ]
थलो छे. ते मतमां पांच भूत उपरान्त छटुं तत्त्व नि त्यात्मा मनाय छे. आ मत ते अत्यारे वैशेषिक नामना दर्शनथी जे प्रसिद्धिमां आवे छे तेनुं प्राचीन अथवा लोकप्रसिद्ध रूप छे. बौद्धग्रंथमां आ दर्शनना संस्थापक तरीके पकुध कच्चायन निर्दिष्ट थलो छे. तेनो मत एवो हतो के आखुं विश्व सात वस्तुनुं ( पदार्थोनुं ) बनेलुं छे. अने ते सर्वे पदार्थों नित्य निर्विकार अने परस्पर स्वतंत्र छे. ते पदार्थों चार भूत, सुख, दुःख अने आत्मा ए प्रमाणे छे. आ सर्वेनी एक बीजा उपर कांई असर थती नहीं होवाथी कोई पण पदार्थनो वास्तविक नाश थतो नथी. मारे कहेतुं जोईए के सुख अने दुःखने नित्य मानवा छतां पण ते बन्नेनी आत्मा उपर कोई असर थती न मानवी ते मारा अभिप्राय प्रमाणे तो अज्ञानता भरेलुं छे. परन्तु बौद्धा कदाच असल सिद्धान्तोनुं असत्य आलेखन कयुँ होय तो ते पण संभवित छे. पकुध कच्चायनना विचारो अवश्य करीने अक्रियावादमा अंतर्गत थाय छे. अने आ बाबतमां ते वैशेषिक दर्शन के जे क्रियावादी छे तेनाथी भिन्न पड़े छे. आ बन्ने वादो बौद्ध तेम ज जैन साहित्यमां आवता होवाथी तेमनी विशेष व्याख्या करवी अहीं अस्थाने नहीं गणाय जे सिद्धान्त आत्माने क्रियाशील अने क्रियालित ( क्रियाथी जेना उपर असर थाय तेवो ) माने छे ते क्रियावादी कहेवाय छे. आ वर्गमां जैनधर्म, ब्राह्मणधर्मो पैकी वैशेषिक अने न्यायदर्शनो ( आ बे दर्शनोना स्पष्ट उल्लेखा बौद्ध अने जैन धर्म - शास्त्रोमां थएला नथी ) तथा बीजां पण एवां केटलॉक दर्शनो के जेनां नाम अत्यारे उपलब्ध थई शकतां नथी परंतु जेनी हयातीनी माहीती आपणे आपणा आ ग्रंथोमांथी. मेळवी शकीए छीए, ते सर्वेनो- समावेश थाय छे. अक्रियावाद ते सिद्धान्त कहेवाय छे जेमां आत्मानुं नास्तित्व अगर निष्क्रियत्व अथवा कर्मालिप्तत्व प्रतिपादन करवामां आवे छे. आ वर्गमां सघळा जडवादी मतो; ब्राह्मणधर्मो पैकी वेदान्त, सांख्य अने योगदर्शनो; तथा बौद्ध धर्मन अंतर्भाव थाय छे. बौद्ध धर्मना क्षणिकवाद तथा शून्यवाद नो उल्लेख सूत्रकृतांग १, १४, ४ थी अने
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७ मी गाथामां थलो छे. साथै ए पण जणाववुं जोईए के वेदान्तिओ अथवा तेमना मंतव्योनो पण सिद्धान्तोमा घणे स्थले उल्लेख आवे छे. सूत्रकृतांगना बीजा पुस्तकना पहेला अध्ययनमां, पृ. ३४४ उपर त्रीजा पाखंड मत तरीके वेदान्तनुं वर्णन थएलुं छे. छठ्ठा अध्ययनमां, पृ. ४१७ उपर, तेनुं फरीथी वर्णन आवेलुं छे. परंतु बौद्धोए गणावेला छ तीर्थको मां आ मतनो कोई पण आचार्य नहीं होवाथी आपणे ते उपर आ स्थळे ध्यान देता नथी.
सूत्रकृतांगना बीजा भागना प्रथम अध्ययनमां, चोथा पाखंड मत तरीके दैववाद ( Fatalism ) नुं वर्णन आवेलुं छे. सामञ्ञ फलसुत्तमां आ मतनुं मक्खली गोसाल नीचे प्रमाणे प्रतिपादन करे छे:——— महाराज, जी - वात्माओनी अपवित्रतामां कोई हेतु अगर पहेला हयाती धरावतुं एवं कांई कारण नथी. ते अनन्यकृत छे तेमज ते पहेलां हयाती धरावती कोई बीजी वस्तुथी उत्पन्न थयेली नथी. ( तेवी ज रीते ) जीवात्माओनी पवित्रतामां पण कोई कारण अगर पूर्वे हयाती धरावतो कोई हेतु नथी. ते अनन्यकृत छे तेमज तेनुं कोई उपादान कारण नथी. आनी उत्पत्ति व्यक्तिओना कोई आचारनुं परिणाम नथी. तेम ज पारकाना कार्योंनी पण तेना उपर असर नथी. तेम मनुष्यप्रयत्ननुं पण ते फल नथी. जेने उत्पन्न करवामां, पुरुषनी शक्ति, प्रयत्न, बल, धैर्य, अगर सामर्थ्य एमांनुं कोई कारणभूत थतुं नथी. सर्वे सत्त्व, सर्वे प्राणिओ, सर्वे भूतो, अने सर्वे जीवो, “पछी ते पशु, अगर वनस्पति
१ एक बात याद राखवा जेवी छे के वेदान्तिओ पण बुद्धना प्रतिस्पर्धी तरीके काम बजावता भने तेओ वैदिक धर्मना तत्त्वज्ञामां आगळ पडता होवाथी आपणे एम अनुमान कर जोईए के बौद्ध धर्मनी असरवाळा लोकोथी विद्वान् ब्राह्मणो दूर.ज रहेता .
* मूळमां' सव्वे सत्ता, सव्व पाण, सव्वे भूता, सब्बे जीवा, एवो पाठ छे. जैन सूत्रोमां पण आ ज क्रमथी अनेक ठेकाणेए पाठ आवे छे अने र पाउनु संक्षेपमांall classes of living beings.
सचेतन प्राणिओना बधा वर्गी' एवं भाषान्तर करेलुं छे. बुद्ध घोषनी टीकानुं भाषान्तर, हार्नेले, उवास गदसा ओना परिशिष्ट नं. २ जाना पान १६ उपर नीचे प्रमाणे आयु छे 'सव्वे
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