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________________ जैन साहित्य संशोधक [खंड वता हशे. आ अनुमानने बीजी एक बाबत द्वारा पण उल्लेख छे. पहेला सूत्रमा जे लोको आत्माने एक अने टेको मळे छ. बुद्ध अने महावीरना समका-- अभिन्न माने छ तेमना एक अभिप्रायन वर्णन छ, अने लान एवा मक्खलि गोसले मनुष्य जातिनी छ व- बीजा सूत्रमा पंचभूतने नित्य अने बधुं तेनुं ज बनेटु छे गोमा बहेंचणी करी हती.' बुद्घोषना कहेवा मुजब तेम माननार एक सिद्धान्तनुं वर्णन आपलं छे. बन्ने मतआ छ वर्गमांना त्रीजावर्गमां निग्रन्थोना समावेश करवामां ना अनुयायांओ जीवतां प्राणीनी हिंसा करवामां पाप आध्यो हतो. हवे विचारीए के निर्ग्रन्थे। जो ते ज अर- मानता नथी. आवाज प्रकारनो मत सामञफलसुत्तमा सामां हयातीमां आव्या होत तो तेमनी गणना एक पूरण कस्सप अने अजित केशकंबलिनो होवानुं बताव्यु खास-एटले के मनुष्य जातिना एक स्वतंत्र-पेटाविभाग छे. पूरण कस्सप पुण्य अगर पाष जेवी कोई वस्तुने तरीके कदापि न करवामां आवी होत. जरूर तेणे निम्र- मानतो नथी अने आजित केसकम्बलानो एवो सिद्धांत सोले एक महत्वना अने साथे मारा मानवा प्रमाणे प्रा- छे के अनुभवातीत मंतव्य के जे लोकोमा प्रचलित छ चीन बौद्धो मानता हता तेम एक प्राचीन संप्रदायरूपे तेने मळतु कोई तत्त्व ज नथी. आ उपरान्त ते एम माने लख्या हश. मारा उपरोक्त छेला मतनी पुष्टिमां नीचे छे के ' माणस ( पुरिसो ) चार भूतोनो बनेलो छे; ज्यारे मुजबनी दलील पण छे. मज्झिमनिकाय, ३५ मां बुद्ध अने ते मरी जाय छे त्यारे पृथ्वी पृथ्वीमां, पाणी पाणीमां, सच्चक नामना एक निग्रन्थपुत्र बच्चे थएला वादनुं वर्णन अग्नि अग्निमा, वायु वायुमां, अने ज्ञानेंद्रियो हवामां आपेलु छे. सच्चक वादमां नातपुत्तने हराव्यानी बडाई ( अथवा - आकाशमां ) विलीन थई जाय छे. ठाठडीमारतो होवाथी ते निर्ग्रन्थ होय तेम लागतो नथी. अने ने उपाडनार, चार पुरुषो मुडदाने स्मशानभूमिमा लई बीज ए के जे सिद्धान्तोनु ते समर्थन करवा मथे छे ते जाय छे त्यारे कल्पांत करे छे कपोत रंगना हाडको सिद्धान्तो जैनोना नथी. आ उपरथी ए विचारवा जे छ बाकी रहे छे अने बीजा सघळां (पदार्थो ) बळीने के एक प्रसिद्ध वादी के जेनो पिता निर्यन्थ हतो अने जे भस्मीभूत थई जाय छे. आ छेल्लं सूत्र थोडा फेरफार पोते बुद्धनो समकालीन हतो, तेना पुरावा उपरथी निर्य- साथे सूत्रकृतांग ना पृ० ३४० उपर आवे छे:-'अन्य न्योनो संप्रदाय बुद्धना समयमा स्थापित थयो हतो तेम जनो मुडदाने बाळवा माटे लई जाय छे. ज्यारे अग्नि भाग्ये ज मानी शकाय. तेने बाळी नांखे छे त्यारे मात्र कपोतरंगना हाडकां बाकी हवे आपणे जे जे जैनेतर पाखंडी मतावलबिओ रहे छे अने चार उपाडनारा ठाठडीने लई गाम तरफ सामे जैनोए पोतानो तात्त्विक विरोध बताव्यो छे, अने ते पाछा बळे छे. संबंधे जे उल्लाखो तेओए की छे, ते तपासीए, अने तेनी जडवादना बीजा सिद्धांत (पृ. ३४३, २२, अने साथे बौद्धोना उल्लेखो सरखावीए. सूत्रकृतांग २, १, ५५ पृ. २३७) ना संबंधमां एक बीजी शाखानो पण उल्लेख (पृ० ३८८) अने २१ (पृ०३४३ ) मां घणे अंशे १ माकाशने बौद्ध ग्रंथोमा पांचमा तत्त्व तरीके मान्यु नथी, परस्पर मळता आवता एवा बे जडवादी सिद्धान्ताना परन्तु जैन ग्रंथोमाते मान्यु छे. जुमो आगळ पू० ३४३ अन पृ० २३७ गाथा १५. आ मात्र एक शाब्दिक भेद छे नहींके तात्त्विक. १ दीघनिकाय, सामञ्ञफलसुत्त. २०. २. हु आ स्थल बने मूळ सूत्रोने सामसामे मुकुं / जेथी करीने २ सुमंगलविलासीना पृ. १६२मा बुद्धोष स्पष्ट जणावे छे के गो- तेमनी वच्चनु साम्य वधार स्पष्टीते समजो शकायःसाले पोताना शिष्यों जे चतुर्थ वर्गना हता तेना करतां निर्ग्रन्थो- आसन्दि पश्चमां पुरिसा मतमा- | अ दहणाए । परेहि भिज्जइ; ने हलकी प्रतिना गण्या छे. गासाले तो भिक्खुओने तथीए हलका दाय गच्छन्ति याव अलाहना | अगणिज्झाोमेत सरीरे कवोप्रकारना गण्या छे के जे बाबत उपर बुद्धधोषे लक्ष्य आप्यु नथी. पदानि पञ्चापेन्ति, कापोतकानि | तवण्णाई अहीनि असन्दि ते उपरथी सष्ट जाणाय छे के आ भिक्खुओने बौद्ध साधुओ करतां महानि भवन्ति भस्सन्ता हुतियो | पञ्चमा पुरिसा गामं पञ्चा ते भिन्न मानतो हतो. गच्छन्ति Aho! Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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