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डॉ हर्मन जेकोबीनी जैन सूत्रोपरनी प्रस्तावना
अंक ४ ]
वाचकनु ध्यान खेचवा मांगु छः बौद्धो नातपुत्तने अग्गिवेसन अर्थात वैश्यायन कहे छे, परंतु जैनोना मतानु सार ते काश्यप हता; अने पोताना तीर्थकरो संबंधी आवो बाबतोमां जैनानुं ज कहेतुं विश्वासपात्र मनावुं जो ईए. वळी महावीरनो एक मुख्य शिष्य, जे सुधर्मा नामे हतो अने जेने सूत्रामां महावीरना धर्मना मुख्य उपदे. शक तरीके बतावेलो छे ते पोते अनिवैश्यायन हतो; अने तेणे जैन धर्मनो प्रसार करवामां मुख्य भाग भजवेलो होवाथी बहारना बीजा माणसो शिष्यने गुरु समजी लेवानी भूल करी होय अने तेथी करीने शिष्यनुं गोत्र गुरुने लगाडी देवामां आव्युं होय, ते घणुं संभवित छे. आ रीतनी बौद्धोए करेली बेवडी भूल महावीरनी पूर्वे पार्श्व - नामना तीर्थकरनी तथा महावीरना मुख्य शिष्य सुधर्मा - नी हयातीनी साक्षी आपे छे.
पार्श्वए एक ऐतिहासिक पुरुष हता ते वात तो बधी रीते संभावित लागे छे. केशी' के जे महावीरना सम मां पार्श्वना संप्रदायनो एक नेता होय तेम देखाय छे तेनो तथा अन्य पण तेवा अनुयायी ओना जैन सूत्रोमा घणे ठेकाणे उल्लेखो थरला छे; अने ते उल्लेख एवी सरळ रीते थएला छे के जेथी करीने तेनी सत्यासत्यताना संबंध शंका उठावाने कारण मळतुं नथी. उत्तराध्ययनना २३ मा अध्ययनमां जुना अने नवा संप्रदायनो पर स्पर मेळ केवी रीते थई गयो हतो ते बतावनारी; एक कथा आ विषयमा घणी ज अगत्यनी छे. केशी अने गौतम के जेओ बने जैन धर्मा बे संप्रदायोना प्रतिनिधि तथा नेता हता, तेओ पोताना शिष्यपरिवार सहित एक वखते श्रावस्ती पासेना उद्यानमा भेगा मळे छे, अने महाव्रतोनी संख्या विषयक तथा संचलकाचेलक अवस्था विषयक तेमना धार्मिक मतभेदों वबारे विवेचन कर्या सिवाय मात्र सहज समजावीने दूर करवामां आवे छे. अने त्वराथी मौलिक मीतिविषयक विचारोना संबंधमां प्रत्येक पक्ष दृष्टान्तो द्वारा एक बीजाना विचारो समजी
१ राजप्रश्नीमां पाश्र्श्वने (?) राजा परभी साथ संवाद थो हतो अने त्यार बाद राजा ते पोतानो धर्मानुयायी बनाव्यो हतो.
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समजावी निःशंक बनी संपूर्ण एकमत थाय छे. बन्ने संप दायो बच्चे कांईक मतभेद जेवुं जोवामां आवे छे, परंतु परस्पर द्वेष या वैर बिलकुल जोवातुं नथी. जो के प्राचान संप्रदायना अनुयायिओने 'पंच महाव्रत प्रतिपादनार' महावीरना धर्मनो स्वीकार करवो पडयो हतो, ए वात खरी छे; तो पण तेओ पोतानी केटलीक जूनी रूढि ओने पण वळगी रह्या हता. खास करीने वस्त्र वापरवाना विषयमां के जे रूढीनो महावीरे त्याग कर्षो हतो, तेम आपणे मानवुं जोईए. आ कल्पनानुसार आपणे श्वेताम्बर अने दिगम्बर संप्रदायरूपी बे फिरकानी उत्पत्तिनुं मूळ कारण पण बतावी शकीए छीए, के जेना संबंधां श्वेताम्बर अने दिगम्बर बने संप्रदायमां भिन्नमिन्न अने परस्परविरोधी दंतकथाओ प्रचलित छे. आ भेद देखीतीरीज कांई आकस्मिक थयो न हतो; परंतु असलनो एक मतभेद [ उदाहरण तरीके जेवो के श्वेताम्बर मतना केटलाक गच्छोनी बच्चे अत्यारे ए हयाती धरावे छे ] काळे करीने विभागना रूपमा परिणत थयो अने आखरे तेणे एक महान् धर्मभेदनं रूप ली.
बौद्ध ग्रन्थोमां मळी आवता उल्लेखो, नातपुत्तनी पूर्वे पण निर्ग्रन्थोनी हयाती हती, ए मकारना आपणा विचारने दृढ करे छे. ज्यारे बौद्ध धर्मनो प्रादुर्भाव थयो त्यारे निर्ब्रन्थोनो संप्रदाय एक मोटा सम्प्रदायरूपे गणातो होवो जोईए. ए निर्ग्रन्योमांना केटलाकने बौद्ध पिटको मां, बुद्धना अने तेना शिष्योना विरोधी तरीके अने बळी केटलाकने तेना अनुयायी थएला तरीके वर्णवेला छे के जे उपरथी आपणे उपर प्रमाणे अनुमान करी शकीए छीए. एथी उलटू ए. ग्रंथोमां कोई पण स्थले एवो उल्लेख के सूचन सरखं पण थएलुं जोवामां नथी आवतुं के निर्ग्रन्थोनों सम्प्रदाय ए एक नवीन सम्प्रदाय छे. आ उपरथी आपणे अनुमान करी शकीए छीए के निर्ग्रन्थो बुद्धा जन्म पहलां घणा लांबा कालथी अस्तित्व धरा
? श्वताम्बर अन दिगंबर सम्प्रदायांनी उत्पत्तिना संवधमा जर्मन ओरिएन्टल सोसायटीना जर्नलना ३० मां भागमा प्रकट थरलो मारो निबंध जुओ ।
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