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अंक
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दक्षिण भारतमें ९ वीं-१० वीं शताब्दीका जैन धर्म ।
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नाम क्रमशः चन्द्रगिरि और विन्ध्यगिरि हैं, जिनपर जै- में गोम्मटेश्वरकी उसी प्रकारकी एक और मूर्ति बननियों के मन्दिर और प्रतिमाएं हैं; और शिलालेख भी वाई । १८ हैं जिनसे जिनमतके प्राचीन इतिहासपर बहुत प्रकाश ये "विशाल एक ही पत्थरमें बनी हुई नग्न जैन-मूर्तियां पडता है । एक परम्परागत किन्वदन्तीके अनुसार चन्द्र- संसारके आश्चर्योमस हैं " "ये “निस्संदेह जैन-प्रतिगिरि नाम चन्द्रगुप्तके कारण पडा है, जो अपने गुरु माओंमें सर्वोत्कृष्ट और समस्त एशियाकी पृथक्-स्थित भद्रबाहु और उसके १२००० शिष्यों के साथ एक भयं- प्रतिमाओंमे सबसे बडी हैं । ऊंचाई पर स्थित होनेके कर दुर्भिक्ष के निकट आनेपर पाटलिपुत्र छोडकर दक्षि- कारण, कोसोंतक दृष्टि गोचर होती हैं । और एक विशेणकी ओर चला गया था । चन्द्रगिरि ही पर भद्रबाहुने घ सम्प्रदायकी होने पर भी, उनका विशाल गुरुत्व और अपने नश्वर शरीरका त्याग किया और अन्तकालमें उस- दिव्य शान्ति-प्रकाशक स्वरूपके कारण हमें उन्हें प्रतिष्ठा के निकट केवळ एक ही शिष्य उपस्थित था और वह युक्त ध्यानसे देखना पडता है । श्रवण बेलगोल वाली उपरोक्त चन्द्रगुप्त था । यदि हम जैन-किम्वदन्तीको सबसे बडी मूर्तिकी उंचाई लगभग ५६३ फीट है और स्वीकार करले तो परिणाम वही निकलता है कि उप- कटिके निम्नभागमें उसकी चौडाई १३ फीट है। वह रोक्त चन्द्रगुप्त जो भद्रबाहु मुनिका शिष्य था, प्रसिद्ध 'नीस ( Gneiss)' पत्थरके एक बड़े टुकडेसे काटकर मौर्य-सम्राट् ही है । १७
बनाई गई है; और ऐसा जान पडता है कि जिस जग___ चन्द्रगिरि ही पर चामुण्डरायने एक भव्य मंदिर नि- ह पर वह आज स्थित है वहीं पर वह बनी थी। कर्कलवाली र्माण करा था जिसमें उसने २२ वें जैन तीर्थंकर नेमि- मूर्ति जो उसी पत्थर की है,परन्तु जिसकी लम्बाई १५ फीट नाथ की मूर्ति स्थापित करवाई । तदनन्तर चामुण्डराय- कम है, अनुमानसे ८० टन तौलमें होगी। इन भीमकायमूके पुत्रने उसका दूसरा खण्ड भी बनवा दिया और उसमें तिओंमें सबसे छोटी येनूरवाली मूर्ति है जो ३५फीट लम्बी तेइसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथकी मूर्ति स्थापित की गई। है । ये तीनों मूर्तियां लगभग एकसी हैं, परन्तु येनूरवाली यह दोनों खण्ड ईसाकी दसवीं शताब्दी में निर्मित हुए मूर्तिके कपोलोंमें गड्ढे हैं और उससे गंभीर मुसकुराहट
और उनसे उस समयकी गृह निर्माण कलाका उत्तम कासा भाव प्रकट होता है, जिसके कारण लोगोंका यह बोध होता है।
कहना है, कि उसके प्रभावोत्पादक-भावमें न्यूनता गोम्मटेश्वर ।
आ गई है । जैन कलाकी अति एकनियमबद्धताका यह विन्ध्यगिरिपर चामण्डरायने बाहुबली अथवा भुज- उत्तम प्रमाण है कि यद्यपि येनूरवाली मूर्तिकी मुसकराहबलीकी, जिनका अधिक लोकप्रसिद्ध नाम गोम्मट- टको छोडकर वस्तुतः तीनों विशाल मूर्तियां एक हीसी स्वामी अथवा गोम्मटेश्वर है, एक विशाल प्रतिमाका हैं, तथापि उनके निर्माण कालोंमें बडा अन्तर हैं।" निर्माण किया । कालान्तरमें चामुण्डरायका अनुकरण
१८ श्रवण बेलगोलकी मूर्तियों के लिये देखो-'इन्डियन एन्टी. करके वीर-पाण्ड्य के मुख्याधिकारीने कर्कल (दक्षिणी से
क्वेरी ' भाग २, पृ. १२८ ' एपिग्राफिया इन्डिका,' भा.७ पृ. कनारा ) में सन् १४३२ ई. में गोम्मटेश्वर की दूसरी १०८.लईस राईसका 'माईसोर ओ: कुर्ग' पृ. ४७ । क लकी मूर्ति बनवाई। और कुछ काल उपरान्त प्रधान तिम्म- मातयाक
त पमान A. मूर्तियों के लिये देखो-'इन्डियन एन्टीकेरी' भाग २, पृ. ३५३.
'एपिग्राफिया इन्डिका' भा. ७, पृ. ११२। -येनूरकी मूर्तियों के राज ने येनूर ( दक्षिणी कनारा ) में सन् १६०४ ई० विषयमें देखो-इन्डि. एन्टी. भा. ५, पृ. ३७, एपि. इन्डि. भा.
१७ इस विषय पर विशेष देखने के लिये देखो-रुपियाफिया ७, पृ. ११२। कर्नाटिका, भाग २, भूमिका पृ० १-१४। और भी देखो मिसेज १९ देखो-'इम्पीरियल गेझेटियर आव इन्डिया' पृ. १२१. सिनक्लेयर स्टिवन्सन रचित “दि हाई आव जैनीजम" २० देखो-विन्सेण्ट स्मीथ रचित 'ए हिस्टरी आव फाईन पृ० १०॥
आर्ट इन इन्डिया एन्ड हिलोन' पृ. २६८ ।
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