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जैन साहित्य संशोधक।
[ख।
चामुण्डराय-निर्मित मूर्ति " केवल तीनोंमें अधिक यह लिखा है कि चामुण्डराजन मूर्ति बनवाई, और प्राचीन अथवा लम्बी ही नहीं है, किन्तु बडी ढालू पहा- तीसरी पंक्तिमें लिखा है कि गंगराजने मूर्त्तिके आसपाडीकी चोटीपर स्थित होने और एतदर्थ उसके निर्माणमें सका भवन बनवाया । "२२ बडी कठिनाइयोंका सामना करनेके कारण उसका वृत्तान्त बाई औरके पत्थरमें यह लेख हैसबसे अधिक रोचक है । यह मूर्ति दिगम्बर है और श्रीचामुण्डराजे करविपलें उत्तराभिमुख सीधी खडी है......जंघोंके ऊपर वह श्रीगंगराजे सुत्ताले करविपले । बिना सहारेके है । उरुस्थल तक वह वल्मीकसे आच्छा- अर्थात्दित बनी हुई है, जिसमेंसे सर्प निकल रहे हैं । उसके श्रीचामुण्डराजने निर्माण कराया । दोनों पदों और बाहुओंके चारों और एक वेलि लिपटी श्रीगंगराजने चैत्यालय निर्माण कराया । हुई है जो बाहुके ऊपरी भागमें फलोंके गुच्छो में: “इसकी लिपि नागरी है और भाषा मराठी है... समाप्त होती है । एक विकसित कमलपर उसके पैर शायद महाराष्ट्र देशके जैनयात्रियोंके लाभार्थ मराठी स्थित हैं ।
भाषाका प्रयोग किया गया है । १२३
चित्र ई ६ में । हमने उपरोक्त शिलालेखोंकी प्रतिश्रवण बेलगोलकी गोमटेश्वरकी मूर्तिके ।
लिपि दी है । पहिले बाई औरका लेख है । दोनों निम्न भागका शिलालेख।
पंक्तियों में एकही प्रकारके अक्षर होनेके कारण बाई श्रवण बेलगोलकी गोम्मटेश्वरकी मूर्तिके दाहिने और और के लेखका गंगराजके समयमें खुदा जाना माना बाएं पैरोंके समीप छोटासा लेख है । दाहिने पैरका जाता है, जब उसने चामुण्डराज स्थापित गोमटेश्वर लेख यह है:
मूर्तिके चारों ओर भवन निर्माण कराया । यह देखते श्रीचामुण्डराजं माडिसिदं;
हुए भी यह बात सम्भव जान पडती है कि बाई श्रीचामुण्डराजन [शे] य्व [व] इत्तां; ओरका लेख दाहिनी और वालेका केवल दूसरी भाषामें श्रीगंगराज सुत्तालयवं माडिसिद;
रूपान्तर है। अर्थात्
गंगराज। श्रीचामुण्डराजने निर्माण कराया, श्रीचामुण्डराजने निर्माण कराया,
गंगाराज होयशाल-वंशीय-नृपति विष्णुवर्धनका मश्रीगंगराजने चैत्यालय निर्माण कराया।
न्त्री था, जिसने ईसाकी १२ वीं शताब्दीमें शासन किया। " प्रथम और तृतीय पंक्तिकी लिपि और भाषा लगभग सन् ११६० ई० के एक शिलालेखमें गंगराज, कानडी है । द्वितीय पंक्ति प्रथम पंक्तिका तामिल अन- चामुण्डराय और हुल्लकी प्रशंसा इस प्रकार पाई वाद है, और उसमें दो शब्द है जिनमें पहला 'ग्रन्थ'
जाती है। और दूसरा 'वट्टेलुत्तु' लिपिमें है । पहिली दो पंक्तियों में
__" यदि यह पूछा जाय कि प्रारम्भमें ( श्रवण वेल
गोलमें ) जैन-मतके कौन २ उन्नायक थे-तो कहना इन मूर्तियों की शिल्पकलाका विशेष वर्णन जाननेके लिये- होगा कि (वे थे) राचमल्ल नृपति का मन्त्री राय, उसके स्लरक (Slurrock ) रचित 'मेन्युअल माव साउथ कनारा, पृ. ८५, फर्गुसन साहेबकी 'हिस्टरी आव इन्डियन आर्चि- २२-२३ देखो, एपिग्राफिया इन्डिका, भाग ७, पृ. १०८-९ । टेक्चर, पृ. २६७, 'फे जर्स मेगजीन' के मई १८७५ के अंकमें इस लेखके साथ लेखकने कई चित्र देने चाहे थे परंतु उनप्रकाशित मि. वालहाउस का लेख, इत्यादि देखने चाहिए। का अकाल स्वर्गवास होजानेके कारण वे चित्र हमें न मिल सके। २१ देखो, एपियाफिया कर्नाटका, भाग १, भूमिका पृ.२८,
संपादक।
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