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जैन साहित्य संशोधका
[खंड
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राय अधिकतर अपने गुरु अजितसेनकी सेवामें, धार्मिक एक हस्तलिखित पुस्तकमें लिखा है कि “ चामुण्डराय विचारोंमेंही, अपना समय व्यतीत करता था और श्रवण जो — रणरङ्गमल्ल ' 'असहाय-पराक्रम' 'गुणरत्नभूषण' बेलगोल (माइसोर ) के विन्ध्यगिरि और चन्द्रगिरि पर 'सम्यक्त्व-रत्न-निलय' आदि उपाधिधारी है, जो सिंह गोमटेश्वर और नेमिनाथकी विशाल मूर्तियोंकी स्थापना नन्दी महामुनिद्वारा अभिनन्दित गंगवंशीय नृपति राजकरने और अपनी सम्पत्तिके अधिक भागका इन मल्लदेवका महामात्य ( प्रधानमन्त्री ) है "१५ । मूर्तियोंकी पूजामें व्यय करने के कारण उसका नाम चामुण्डराय द्वारा स्थापित मूर्तियों और मन्दिरों का जैनमतके महान् उन्नायकों में अमर हो गया । वर्णन करनेके पूर्व यह उत्तम होगा कि हम उन स्थाराचमल्ल या राजमल्ल द्वितीय ।
नोंका संक्षेप वर्णन करें जिनमें उक्त धार्मिक स्मारक स्थिगंगवंशीय मारसिंह द्वितीयके मरणोपरान्त पाञ्चालदेव, त हैं और जो आजकल जैनयात्रियोंके लिये अत्यन्त जिसका पूरा नाम धर्ममहाराजाधिराज सत्यवाक्य कोगणी पवित्र तीर्थ हैं। वर्मा पाञ्चलदेव था, सिंहासनारूढ हुआ | उसके अन
श्रवण बेलगोल । न्तर राचमल्ल या राजमल्ल द्वितीय राजा हुआ जिसका श्रमण बेलगोल अर्थात् श्रभण या जैनियोंका बेलगोल पूर्ण नाम धर्म-महाराजाधिराज सत्यवाक्य कोगुणीवर्मा माइसोरमें हसन जिलेके चन्नरयपत्न तालुकेमें एक ग्राम है। राचमल्ल था । चामुण्डराज राचमल्ल अथवा राजमल्ल हेल बेलगोल और कोडी बेलगोल नामक दो बेलगोलोसे द्वितीयका भी मन्त्री था । एक शिलालेखमें लिखा है, पृथक् करनेके लिये यहां बेलगोलके पूर्व श्रवण शब्दका " राय ( अर्थात् चामुण्डराय ) नृपति राचमल्ल का श्रेष्ठ प्रयोग हुआ है । कानडी भाषामें बेलगोलका अर्थ है मन्त्री ,१२ , और दूसरे में " चामुण्डराय जो वैभवमें "श्वेतसरोवर" और बहुतसे शिलालेखोंमे " धवल सरोनाति नाहिती , नातली नवना. वर" " धवल सरस" और "श्वेतसरोवर" का उल्लेख मक एक जैनग्रन्थमें यह लिखा है कि राजमल्ल नामक है, और उस स्थान पर स्थित मनोहर सरोवर ही के एक नृपति था, जो सिंहनन्दी मुनिका चरणोपासक था। कारण उसका यह नाम पडा होगा | वहां दो पहाडियां चामुण्डभूप ( अथवा राज ) उसका मन्त्री था। ४ हैं । एक उसके उत्तरमें और एक दक्षिणमें | उनके
११ डॉ. फ्लीटके मतमें राचमल्ल नाम शुद्ध है ( देखो, एपिग्राफिया इन्डिका, भाग ५, लेख नं. १८) और कुछ शिलालेखोंमें भी यह नाम मिलता है, पर जिन जैनलखों को हमने भूमिकामें उदृत किया है वे राजमल्ल नाम हीका उपयोग करते हैं। और देखो, एपिग्राफिया करणाटिका, भाग ३, लेख नं. १०७. १२'राचमल्ल भूवरवर मंत्री-रायने ।'
(भांडारी वस्ती शिलालेख, लु. रा. श्रवण बेलगोल, लेख पृ० १०३)
१३ " राचमल्लं जगन् नुतन् आभूमिपण द्वितीयविभवं चामु. ण्डरायम्" (द्वारपालक दरवाजे के बाई ओरका शिलालेख, देखो, लु. रा. श्रवण पृ०६७ १४ "श्रीदेशीयगणाब्धिपूर्णमृगभृच्छ्रीसिंहनन्दिवति-- श्रीपादाम्बुजयुग्ममत्तमधुपः सम्यक्त्वचूढामणिः । श्रीमज्जैनमताब्धिवर्धनसुधासूतिर्महमिण्डले रेजे श्रीगुणभूषणो बुधनुतः श्रीराजमल्लो नृपः ।।...
तस्यामात्यशिखामाणिः सकलवित् सम्यक्त्वचूडामणिभव्याम्भोजबियन्मणिः सुजनवन्दिवातचूडामाणिः । ब्रह्मक्षत्रियवैश्यशुक्तिसुमणिः कीत्यौघमुक्तामाणिः पादन्यस्तमहीशमस्तकमणिश्चामुण्डभूपोऽग्रणीः ।।"
(बाहुबलीचरित्र, श्लोक ६-११) १५ सिंहनन्दिमुनीन्द्राभिनन्दितगङ्गवंशललाम...... श्रीमद्राजमल्लदेव-महीवल्लभमहामात्यपदावराजमान-रणरङ्गमल्ला-सहायपराक्रम-गुणरत्नभूषणसम्यक्त्वरत्ननिलयादिविविधगुणग्रामनामसमासादितकीर्ति...श्रीमच्चामुण्डराय-भवत्पुण्डरीक---- द्रव्यानुयोगप्रश्नानुरूपं......" ( अभयचन्द्र विद्यचक्रवतीरचित गोमटसार टीका ) १६ श्रवण शिलालेख नंबर १०८ तथा ५४.
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