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अंक ३]
वीरबंशापलि. कालि श्री वीजापुर थकी विहार करता गोधिरा नगरई अ- आव्यो छु, ते रहिस्युं ज । ते सांभली ( ८२.२) तिण व्या। (८१-२) तिहां डाकिणिना उपद्रव थकी सांजनी पाषंडीए यतीने क्रूर दांत देषाड्या | तिवारई यतीइं वेलाई साधु घंटाकर्णने मंत्री मंत्रीने कपाट देता, अने जे तेहनी कूहणी देषाडी । ते सकल वातां साधुइं आवी श्री दीवसई श्रीसूरी आव्या तेहिज दिने उतावली रात्रिइं सूरीने कही । गुरु कहइं भलु | एतले संध्यानई समयइं कोइक अजाण साधुई घंटाकर्णनो मंत्र भण्या विगेर प्रतिक्रमण कीधा पछी तिणे जटिले शालाई कोइक मंत्रशालाना कपाटनी जयणा कधी | गुरु पिण पोरसी कही नई योगई करी मूषक मेल्या । साधुहं गुरुनि कह्यौ, पाटि संथा-या छइं, निद्राई आव्या । एतली व्यंतरी एतलि श्री सूरीइं नूतन घटनई मूषई कल्पक आछादी गुरु च्यारे मीली आवी गुरु संथान्यानी पाटि च्यारे पाइया उपाढी दत्त आम्नाय स्मरण कीधो | तिवारइं ते जट्टील बुबाट
आकासे लेई चाली । एतलई श्री गुरु जाग्या, डाकि- करतो आवी गुरुनई नमी कहई-आज पछी तुह्म गछि 'णी जांणी, पिंहुं दिसि रजहरण फेरव्यो । तेतले डाकिणी उपद्रव नही करूं । मई तुम्हने जाण्या नहीं । इम कही
आकासे मस्तकिं पाट सहित अधर लटकई । वाच दीधी स्वथानिकेगयो । श्रीगुरु कीर्ति हुइ । तिहां थकी. वितुम्हारई गछई उपद्रव नहीं करूं । प्रभात कालि संघाग्रहि हार करता नोलाई नगरें चौमासि रह्या । एहवई संघामूकी । तिहां थकी सूरि विहार करता मालव देशि मांड- चार १, कालसत्तरि २, कायस्थिति ३, प्रमुष ग्रंथकारक वगढि आव्या । तिहां श्री सूरीना उपदेश थकी प्राग्वाट वि. सं० १३४७ वर्षि श्री धर्मघोष सूरी स्वर्ग हूओ । शाति वृद्ध शाषाई सं० पृथवीधर बाहेतालीस हेम धडी एहवइं गुज्जराति वीसलनगरा वाडव मंत्री माधव भाइ बेची प्रासाद एकवीस स्वदसि आने धार नगरई प्रमुषई केशव थकी राजा श्री कर्ण लडीनई तूरकाणी राज्य निपजाव्या । ते माहि मूल नायक सकल बिंब सप्त हुआ। • धातुना थाप्या । श्री धर्मघोष (८२-१) सूरीई प्रतिष्ठया । पुनः वि० सं० १३६३ वर्षि सिद्धपुरनगरि सि
श्री गुरु ब्रह्मंडल नगरे आव्या, तिहां रात्रि अहिडंस (८३-१) धराय कृत रुद्रालयनो छेद हूओ ॥ हुओ, संघने व्यग्र चित्त जांणी श्री सूरी संव प्रति कहई- ४७ तत्पट्टे श्रीसोमप्रभ सूरी। प्रभाति नगरनी पोल उघडास, तिवारइं प्रथम सुका तेहनो वि० सं० १३१० वर्षे जन्म । वि० सं० काष्ठनी भारी आवस्यइं, ते माहि काब्र वर्णि सकल महा १३२१ वर्षि व्रत । वि० सं० १३३२ वर्षि सूरी पद । विषापहारण नामि ओषधीनो मूल सर्पाकारी हुसई, श्रीसूरीने ईग्यार अंग सूत्रार्थ तदूभय जिह्वाग्रि नित्य तेहनी आदा सूंठसु घसी अहिडंके देज्यो । एतलि स्वाध्याय करता । मूमंडाले शील, तप, संजम आरामुझनी समाधि थास्यें । श्री संघि तिमज कीधो । श्री गुरु धतां मालव देशि विचरई । एहवि स्वगौत्रिया वृद्धसमाधि पणि हूआ । ते दिन थकी श्री सूरीइं जावजीव शालिक श्रीरत्नाकर सूरी प्रगट हूया, तेहनो संबंव कहई : लगी छ विगयनो नीम लीधो, अनि सदाकाल युगंधरी- छई । नो आहार करवो, ए बिहु नीम लीइं, श्री सूरी अवंती
श्ररित्नाकर सूरी । पासना दर्शनई उत्कंठीत थका उज्जेणी नगरई आव्या । गूर्जर देशि रायखंडी वडली नगरी वृद्धशालाई श्री. तिहां पाखंडोना उपद्रव्य थकी यतो कोई चोमासु न रत्नाकर सूरी सप्त कलसि मुक्ताफलना परिग्रह धारक - रहई । ते सकल वार्ता श्री गुरुई संवनी पूछी निर्णय रहेई छ । एहवे धवलका नगरनो वासी प्राग्वाट वृद्ध कीधो । एतले मध्याने यति गौचरी जाता बाजारो देषो शा० सा० रुना व्यवसायार्थि तिहां आव्यो । श्री चिंतापाखंडी जट्टीले यतीने बोलावी कहें-तुझे अत्र चौमासई मणि पासने नमी शालाई श्री रत्नाकर सूरी वंद्या, सपरिथिर हुई रहिज्यो । तिवारई ते यति कहें-रहिबानई ग्रहि दीठा । तथापि श्री सूरीने महा उत्तम जांणी सा.
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