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जैन साहित्य संशोधक- पारशिष्ट.
स वल्लभः कस्य नरस्य न स्यात् ।। १ ।। देयं देय सदा देयं अन्नदानं विचक्षणैः । अन्नदातुर्यशो नित्यं जगङ्कस्य यथाद्भुतं || शा इति श्रीमाल सा जगहू उत्पत्ति ।
४३ तल श्री सोमप्रभसूरी | लघु गुरु भाई श्री मणिरत्नसूरी । ए बेहू गुरु माई जाणवा | श्री सूरी उत्तम प्राणिनें धर्मोपदेशनई कहिवई थt उपगार करता विचरई । एतलर्इ प्रा० मंत्री वस्तुपाल १ लघुभाइ मं० तेजपाल २ प्रगट हुया | तहनो संबंध कहइ छ ।
वस्तुपाल तेजपाल संबंध |
[ खंड १
वस्तुपाल ? तेजपाल ( ६९ - १ ) २ मांडलि नगरई वर्ष पांचना हुया । तिवारि दिहां मनुष्यज्ञात पूछि | एतलिं तिहां थकी आसराज पश्चिम दिशि जाई देवक पत्तनई रह्यो । तिहां मनुष्य बालक मोटा तेजवंत देषी गांम ठिकांणुं पूछ | तिहां थकी एतले घोडिआल गामि पोताने दोश आवी रह्या । तिहां वर्ष आठना वि बालक हुया | तिवारई घृत कूपिकानो व्यापार करई । एवे तिहां श्री भुवनचंद्रसूरी विहार करता आल्या सा० आसराजई कुंवर स्त्रीई ओलख्या । गुरु व बालकने पुनवंत जांणी तिवारई श्री गुरुई वि०सं० १२६९ वर्षि वस्तुपा लनई जिनशासन किर्ति कारक उत्तम योग्य जांणी अत्रिका १ अनि कवड यक्षनओ २ वर दीव | गुरु विहार करतां तारणगिरिं श्री अजितनाथनी यात्रा गया। क्रेटलेक दिने सा० आसराज तिहां थकी स्त्री कुअर युक्त बिं बंधव लद्द धवलकइ नगरे आवी रह्या । इहां थकी गुरुदत्त वरनई महिमाई दिन २ व्यापार थकी उदयवंत हुया । एहवई विक्र० सं० १२७४ वर्षे वस्तुपालने ललतादेस्युं पाणी ग्रहण हुआ ? पुनः भ्रातृ तेजप लने अनोपदेस्युं पाणिग्रहण हूओ (६९-२) २ । एहवें माता कुअरदेनों स्वर्ग हूओ | दिवस इग्यारनई आंतरई पिता सा० आसराजनो स्वर्ग हूओ । एवं वर्ष १८ व्यापारे हूया | तिणहिज वर्षि अंबिका - कवड यक्षनी कृपा थकी राजा श्री वीरधवली वस्तुपालने घणा आयहि मंत्रिपद दीधी । तेजपाल भंडारी पद दीघो । अणहिल पाटणे आगार निपजाबी तिहां रह्या । तेतले तिहां भंडारी पद तथा मंत्री पदन तिलक अवसरि मंत्री वस्तुपाले ज्ञाति त्रीस पाटण माहलि पोषतो हूओ । एहवें पाटण नगरश्रेष्टीनें घरे भवितव्यता योग थकी अजाणपणे नुहतरी वीसरयौ । ते सेठनो पुत्र वर्ष १३ नो ते सामान्यपणा की थी तेल हलद्र हीग्वा वेची चिहुं पुहरे बरे आव्यो । एतले माताने रुदन करती दीठी । ते देषी पुत्र कहें - ए किम ? तिवारे माता कहें - आपण बरें नुहुतरु नहीं । अन राजमंत्री भाग्यवंत हूओ पिण ए छिद्र सहित छ ।
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गुजरात देसि धुलका नगरई मावाट जाति ऊंचरड गौत्र सा० आसराज रहे है । ते पाटणि वस्त्र व्यापारे आव्यो | तिहां हाटमांडी रह्यो । मालसुद गांमि व्या पार करी | एकदा पंचासरा पासनी यात्रा करी धर्मशालाई चित्रावाल गछि आ० श्री भुवनचंद्रसूरी प्रति वांदि बइठो हवि तहां श्रीमा ( ६८- २ ) ली ज्ञाती वणहर गोत्रे सा० आंवो, तेहनी स्त्री लक्ष्मी, तस्य पुत्री बाल विधवा कुंवर नांमी । ते श्री गुरूनि वांदि छई । एतलि गुरु वांदतां थका श्री सूरीई वामकुक्षी तिल वर्ण देषी मस्तक धूणी | तिवारई पासे बेसी शिष्ये कहं श्री गुरु ए कीम ? गुरु कहे एहनि कुक्षि युग्म पुत्र वस्तुपाल १ तेजपाल र नामि पुत्र वणा पुन्यना करणिना कारक हूसिं। तेनो आचंद्राकिं नाम रहस्यई । ते गुरु कथक वचन सा आसराजी सांभल्युं । केवलैक दिवसें पूर्व कम्र्मना संचयना योगे की ते विहूनो संग हुआ । एतलि तिहां थकीत बिहू पलायन हुई मांडलि नगरई जाइ रह्या । अनुकमि वि० सं० १२६० बर्षि वस्तुपालनो जन्म हूओ | पुनः एक पंचास पलनई अंतरे तेजपाल जन्म हूओ २ । तिर्ण आसराजि पहिला गुरि नाम का हूंता तेहीजनांम दिनां । एहवि मालव देसि नलवर नगरहं शालिकुमार प्रगट हूओ | तेहनई मनुष्य ढोलो नांम कहे है | राजा श्री वीरधवलनई राज्यई पुनः वि सं० १२४१ वर्ष लाषो फुलाणी प्रगट हूओ । एताल
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