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________________ वीर अंशावलि. वयोवृद्धास्तपोवृद्धा ये च वृद्धा बहुमता : । जीयं जलविंद सम्मं संपत्तिओ तरंगलोलाओ। सर्वेपि धनवृद्धानां द्वारे विटंति किंकराः॥१॥ सुमिणं च समं पिम्मं जं जाणिज करीज स ।।१।। इम विचारी तीणई वृद्धाई बेटा आगलि कहें--आस- एहयो उपदंश गुम्मुष थकी सामली मंत्री वस्तुपालि राज प्रागवाट सा१, कु (७०-१) यर बाल विधवा श्री- वि०सं० १२८० वर्षि श्री अ (७१-१)वदापरि प्रासाद माली, मत्री तहना पुत्र, माटो छाद्र ए छ । ए वात थंभ थाप्यो । पनः वि० सं० १२८२ वर्षि प्रासादि पुत्रने सधली कही । ते सांभली बेटाने हर्ष हूओ । एतले कलस दंड ध्वज चढाव्यौ । श्री नेमिश्वर थाप्यौ । तिहा जिहां समग्र साजनो भोजन करइ छ मुख्य गृहस्थ हर्ष श्री भवनचंद्र सूरीइं स्व शीध्य उ० श्री जगचंद्रने तथा मई बेठा वार्ता करई छ, तिहां तिणे आवी चौरासी पं० देबेंद्रने सूरी पदई कीधा । तिणहिज प्रासादि निहुँ साजनानी आज्ञा करी, बिहाथ जोडी, माताई कही जे भ्रातानी स्त्रीयई नव नव लक्षई द्रव्य वावरीने स्व स्व विपरीत वात, तेहनी वीनती सकल साजानानई कीधी । नामि विहं आलीया नीपजावी नाम राख्यु । तिण हिज तिवारई तेहनो साजनो कहई-रे मुग्ध ! तुं कुण घर आ वर्षि श्री गिरनारी मं० वस्तुपाले उद्धार कीधो । एतलई पत्तने मुख्य हुई ? ते ए कीसी वात कही ? लाजतुं श्री आबु, सिद्धाचल, गीरनार, ए तिहु तीर्थे अहार लक्ष नथी । एतले ते कहे मंत्रीनी उत्पत्ती सबली ते वृद्ध मनुष्यई उ० श्री देवभद्र आ. श्री जगचंद्र आ० श्री गृहस्थ आगलि प्रकासी | सांभली सकल लजावत देवेंद्र प्रमख स्वेतांबर इप्यार आचार्य पुनः दिगंबर भर हुआ । चितई संदेह पञ्यो । सकल साजनई तेहनी एकवीस आचार्य युक्ति यात्रा करी । सकल संघ सहित माता वृद्धा पूछ । तिणे कह्युं मुन्न वरई नुहतर नहीं, मं० वस्तुपाल पाटणि आव्या । केटलिक दिने गुरु श्री अनि तेहने घरे तुम्हे द्रव्ये गया । पिण तुम्हे सकल भवनचंद्र सरि स्वर्ग हुआ। तिवारे मंत्रीइं वणे आग्रही साजनो जाइ बरु डी गामी जे एहनी उत्पत्तीना कारक उ० श्री देवभद्र आ० श्री जगच्चंद्र आ. श्री देवेंद्र नई श्री भवनचंद्र गुरु सत्य गोत्रीयाने पूछौ । तिणे साजने धीनती करी पाटणे चौमास राख्या । उतरीई चउमासई वृद्ध गुरु पुछ्या । तिवरे श्री गुरुई यथार्थ कह्यौ । एताल मं० नी आज्ञा लही त्रिह विहार कीधो । भीलडी नगरई ते पाटणि आव्या | मंत्रीनी वात मांहो मांही कहीवइ श्री पास दर्शनि आव्या । एहवे तिहां हिंदआणि नगरमां तथा अन्य गामि वि (७०.२) स्तरि । एतलें (७१-२ ) देश थकी श्री सोमप्रभ सूरी पिण विहार करता तिहां थकी वि०सं० १२७५ वर्ष मंत्री वस्तुपाल ? तेज- भीलडी नगरे सह हर्षि पास दर्शनि आव्या | तिवारइं पाल २ थकी प्राग्वाट लघुशाषा प्रगट हुई । एतले उ. श्री देवभद्र, आ. जगचंद्र, आ. देवेंद्र, ए बिहुए स्वज्ञातीयां परज्ञातीया दुर्बल गृहस्थनें भोजन तेडी कवल श्री सोमप्रभ सूरीने वांदणई करी बंद्या । तिवारी श्री २ स्वर्ण मुहर देइ स्वज्ञात वधारी नाम राष्यु । सकल जाती सोमप्रभ सूरीई घरतर, स्तवपक्ष, आगिम, राकापक्ष, जीवात लघशाषा हइ । एतलिं श्री भवनचंद्र सुरी बिंवदणिक, उपकेश, जीरावल्ली, नांणावाला, निंबजिया, विहार करता पाटणि आव्या । महामोहोत्सवि शालाई इत्यादि आचार्यनी शाक्षि वि०सं० १२८३ वर्षि श्री पधराव्या । चौमासई रया । म० वस्तुपाल गुरु वचनइ सोम प्रभ गरि १ मणिरत्न सुरिई जावजीव आंबल पंचासरपास प्रासादि वर्षि मांहि च्यार प्रौढ साधर्मिक तपना धारक १ पुनः समता आदि गुण आगला जाणी संतोषई । पुनः कुमारपाल विनिर्मित श्री तीहणपाल स्व गछद लेई आ० श्री जगचंद्र सूरी नई पातानी पाटि विहारि एकादसि, चतुर्दशिइ, अष्टोतरी पुजाइं स्वजाति साधर्मिक पावई । नित्ये सतरभेदि स्व नीर्मापित श्री थाप्या । श्री बीजापूर नगरी उ श्री देवभद्र, आ.श्री सभ्युपूज्य प्रासाद हुई । एकदा श्री भुवनचंद्र सूरी में जगचंद्र सूरी, आ. श्री देवेंद्र, ए बिहु चौमासि रह्या, थकी उपदंश कहे अनि श्री सोम प्रभ सूरी १ श्री मणिरत्न सूरी २ वडाली Aho I Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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