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जैन साहित्य संशोधक.
[भाग १
__ महावीर निर्वाणना समयनुं निरूपण करतां पहे. रीते कथन छे के महावीरना जमालि नामना भाणेज ला आपण शरूआतमां ए तपास करीए के जैन- धर्मभेद को हतो; तेमज भगवती सूत्र ( सय १७) चर्म अने बौद्धधर्म बन्ने परस्पर स्वतंत्र धर्मो छ के एक मां महावीरना बीजा शिप्य मक्खलिपुत्त गोसापीजामांथी नीकळेला छे. जे यूरोपीय विद्वानोए लना उपर पण स्फुट रीते आक्षेपो करेला आ विषय उपर आज सुधीमां लख्यं छे. ते सघळा सा. जोवामां आवेछ. ( साथे साथे कही जाउं छं के मान्य रीते उपर दर्शावला बीजा मनने स्वीकारवान आ मक्खलिपुत्त गोसाल ते पालिसूत्रोमां निर्दिष्ट पोतानुं वलण बतावे छे. कोलक ( Colebrooke ) मंखलिगोसालज छे. तने ते स्थळे छ तैथिकोमांनोमहावीरने गौतम बुद्धाना गुरु तरीके माने छे. अने पाखंडमतावलंबिओमांनो-एक तथा बुद्धमतना ते प्रमाणे मानवान कारण ते ए बतावे छे के महा- विरोधी तरीके गणाव्यो छे. वीरनो एक इन्द्रभूति नामनो शिष्य घणीवार गौत- प्रो. एच. विल्सन (Prof. H. Wilson) 'हिंदु मस्वामी अथवा गौतम नामे ओळखाय छे. प्रिन्सेप ओना धार्मिक संप्रदायो' नामना पोताना निबंधमां ( Prinsep ) अने स्टीवन्सन ( Stevenson ) ए कोलक्रकथी तहन विरुद्ध मत उपस्थित करे छे. ते वे विद्वानो तेनाज अभिप्रायने स्वीकारे छे, अने थोडा- कहे छै के जैनधर्म ए बौद्ध धर्मनी शाखाछे अने ते ज समय अगाउ, मि. एडवर्ड थोमसे (Mr. Ed. ई. स. नी दसमी सताब्दिना अरसामा बुद्धधर्मनी Thomas ) पण तेज मतनु पुनः प्रतिपादन कयु छे. पडतीमांथी उत्पन्न थयो छे. प्रो. ए. वेबर पोताना प्रो. वेबर ( Prof. Weber ) पोताना शत्रुजय मा- उपरोक्त पुस्तकमां जो के जैनधर्मनी आना करता हात्म्य ('Ueber das Catrunjaya mahatmya') वधारे प्राचीनता स्वीकार छ परंतु साथे ते बौद्धधर्मउपरना निबंधमां कोलबुकनी कल्पनाने भ्रांतिपूर्ण नी पूर्वकालिकता पण, एच. विल्सनना कहेवा मुजसिद्ध करे छे अने लखे छे के, इन्द्रभूति ते गौतमबुद्धनी बकवल राखे छे. प्रो. लेसन (Prof. Lassen) एकंमाफक क्षत्रिय नहीं पण ब्राह्मण जातिनो हतो. तेनु दर वेबरना अभिप्रायनेज मळतो थाय छे ( Indगोत्र गौतम होवाथी ते ए नामे पण ओळखाय छे. Alterth. IV 755 Sqq). उपर उपरथी जोतां परंतु आटला उपरथी तेनी गौतमबुद्धनी साथे एक- केटलांक कारणो प्रो. विल्सनना मतने पुष्टि आपतां ता करवी ते प्रकट भूल छे. जो इन्द्रभूतिए विरोधी मालुम पडे छे. कारण जैनसत्रोमा जणाव्या प्रमाणे मत स्थापवान वधमानना धर्ममागेनो त्याग कर्यो महावीर विहारना-के जे बुद्धनी पण जन्म अने उपहोत, तो, महावीर निर्वाण बाद थोडा वखत पछी देशनी भमि हती, त्यांना निवासी मात्र हता, रचाएला जैनसूत्रोमां वारंवार तेना संबंधमां जे आदर एटलंज नहीं पण ते बन्ने समकालीन अने एकज भरेला उलेखो करवामां आव्या छे ते कदापि न राजाओना राज्योमां विचरता हता, एवं पण वर्णन करवामां आवत. बरके तेथी उलटुं, महावीरनो मळी आवे छे. अलबत श्रेणिक अने कुणिक (अथवा प्रिय शिष्य होवा छतां बने तेटली रीते तेनी निदाज करवामां आवी होत * कारण के सूत्रोमा स्पष्ट गुरुना अणधार्या अवसानना समाच र सांभळ्या त्यारे तेओ
......... अत्यंत शोकग्रस्त बन्या हता. पछीथी तेमणे प्रबुद्ध थई जोडे * इन्द्रभूतिना संबंधमां जे एक दंतकथा प्रचलित छे ते के, एक अंतिम अवशिष्ठ बंधन, के जेनाथी तेओ संसारबद्ध उपरथी इन्द्रभूांत तमना गुरु उपर केटला अनुरक्त हता ते हता, ते बीजुं कांई नहीं पण तेमना गुरु प्रत्येनो तेमनो प्रबल स्पष्ट थाय छे. महावीरना देहत्याग वखते तेओ गेरहाजर प्रेमभाव हतो. पश्चात् तेमणे ते बंधनने सर्वथा छेदी केबलइता; ज्यारे तेमणे स्थान तरफ पाछा फरतां पोताना पूज्य- ज्ञान प्राप्त कर्यु हतुं.
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