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________________ जैन मागम साहित्यनी मूळ भाषा कई ? चन्ने अर्थनो सूचक छे. जे समासमां ते 'अर्थ' तीर्थकर भाषित अर्थने गणधरो जे सूत्र रूपमा शब्द अवयविथी पूर्वना स्थानने शोभावतो होय, त्यां गंथे छे ते सूत्रो कई भाषाए निबद्ध होय छे, तेना ते, 'बराबर अडधा' अर्थने सूचववा साथे माटे जैन साहित्यमां नीचे प्रमाणेनो जूनो उल्लेख नान्यतर जातिमां रहे छे, अने जे समासमां ते मळी आवे छः ('अर्थ' शब्द) अवयविधी पूर्वना के पछीना स्था- "पोराणमद्धमागहनने अलंकृत करतो होय त्या, ते साधारण अर्थने भासानिययं हवइ सुत्तं ।" जणावे छे, अने ते साये तेने नरजातिमा रहेवु पडे छे. अर्थात् " गणधर ग्रथित पुरातन सूत्र, अर्धमागधी आ हकिकत आदिम वैयाकरण पाणिनिजीए पोतानी भाषामां होय छे." आमां आवेल अर्धमागध शब्दना अष्टाध्यायीमा “अर्ध नपुंसकम् । २।२।२।" ए अर्थने स्फुट करतां निशीथ-चूर्णिकार श्रीजिनदास सूत्रमा अने हेमचंद्रजीए "समेंऽशेऽर्ष नवा । महत्तरजी जणावे छ के३१११५४ । " ए सूत्रमा स्पष्टपणे जणावेली "मगहद्धविसयमासानिबद्धं अद्धमागहं; अहवा छे.. अर्थात् 'मागध्या अर्धम्-अर्धमागधी' अटारसदेसीभासाणियतं अद्धमागधं" ए व्युत्पत्तिथी बनतो अर्धमागधी शब्द एम स्पष्टपणे -निशीथचूर्णि, लि. पृ. ३५२. सूचवे छे के, जे भाषामां बराबर अडधी मागधी भाषा अर्थात् " मगधदेशनी अडधी भाषामां निबंधाअने बराबर अडधी बीजीबीजी भाषाओ मिश्रित थएली एल ते अर्धमागध; अथवा अढार प्रकारनी देशी होय, ते ज भाषा अधेमागधी शब्दथी संबोधी शका- भाषामां नियत थएल ते अर्धमागध." य. जो आपणे शब्दोनो हिसाब लगावीए तो एम मारा विचार प्रमाणे आर्य श्रीजिनदास महत्तरजी कल्पी शकाय के, जे भाषामां सो शब्दोमां पचास शब्दो एजणावेल उपरनो अर्थ, में स्थिर करेल अर्थथी जदो तो मागधी भाषांना, अने पचास शब्दो बीजी बीजी होय एम जणातुं नथी. भाषाना-प्राकृत, पाली, शौरसेनी अने पैशाची वि चावि तेओ जे अढार प्रकारनी देशी भाषामां नियत गेरेना-मिश्रित थएला होय ते ज भाषा सत्रने अर्धमागधनुं नाम आपे छे, ते संबंधे कांइ स• अर्धमागधी ' शब्दनो अर्थ धारण करी शके छे. छ. विशेष जणावता नथी, एटले माराथी ए जाणी शकातुं परंत एम तो न ज होई शके के, जे (साहित्यनी) नथी के. अहीं तेओए अढार प्रकारमा कई कई देशी भाषामा एकाद रूप मागधी भाषानुं होय अने बीजा बधां रूपो प्राकृत' के इतर भाषानां होय तेने अर्ध कल्पी शकुं छं के, अंग साहित्यनो मुख्य संबंध मागधीन नाम घटी शके. श्री महावीरनी जन्मभूमि (मगधदेश) नी भाषा साथे __ आ रीते हुँ प्रसिद्ध वैयाकरणानी साख आपवा होवाथी ते अढार प्रकारनी देशी भाषामां पण माउपरांत व्युत्पत्ति उपरथी पण अर्धमागधी शब्दना गधी भाषानी प्रधानता होवी ज जोईए. वळी एथी उपर जणावेला अर्थने ज स्थिर करूं छु. अने ए ज ए पण संभवे छ के. मगधना निकटवर्ती बीजा बीजा अर्थने लक्ष्यमा राखी मारे अहीं सघळी चर्चा करवा- प्रातोनी भाषाओनो पण मागधीने संपके थएल होनी छे. वाने लीधे बीजी बीजी प्रांतिक (देशी) भाषाओथी ! अहीं हुं प्रारुत' तथा आगळ आवता 'सौराष्ट्री' मिश्रित एवी मागधीने पण ते महत्तरजीए अर्धमागध शब्दथी श्रीहेमचंद्र संकलित अष्टम अध्यायगत ते भाषाने विवर्धा छं के जे भाषानुं व्याकरण शौरसेनाना प्रकरण पहेलो आवेलुं छे. आ रीते महत्तरजीए करेल अर्धमागधनी बन्ने Aho! Shrutgyanam
SR No.009877
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages274
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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