________________
जैन साहित्य संशोधक.
[भाग १ एम लागे छे. अने तेथी दिगम्बरोनो उपरोक्त आक्षेप स्थविरावली महावीरे पोते कही होय एम मानी निरर्थक निवडे छे. श्वेतांबर संप्रदायमां कल्पसूत्र एक शकाय नहीं. जिनचरित्रमा महावीरना निर्वाण प्रतिष्ठित ग्रंथ मनाय छे. अने प्रतिवर्ष वर्षावास पछीनी बनेली बीनाओ लखेली छे अने स्थविरावलीएटले पज्जुसणमां ते जाहर रीते ( सभामां ) मां तेमनी पछीनो जैनधर्मनो इतिहास आपेलो छे, वंचाय छे.
आ भागोनो पर्युषणा या वर्षावास साथे कोई जाआ कल्पसत्र ते भ:बाह स्वामीनी कृति मनाय तनो संबंध नथी. तेथी ते पर्युषणाकल्पनं नाम धराछ. आ ग्रंथनी वस्तु तेमण प्रत्याख्यानप्रवाद नामना ववाना बिलकुल अधिकारी नथी. अने तदनुसार, नवमा पर्वमांथी लीधी छे, एवं किरणावली नामनी वास्तविकरीते दशा - तस्कंधना आठमा अध्ययनना टीकाना निम्नलिखित अवतरण उपरथी मालुम भाग तरीके पण तेने मानी शकाय नहीं. आ अनुपडे छे.
___ मान उपरथी स्वाभाविकरीतेज एवो अर्थ फलित 'प्रणेता तावत् सर्वाक्षरसन्निपात विचक्षणश्चत- थाय छे के पर्युषणाकल्प ए नाम वास्तविकरीते र्दशपर्वविद यगप्रधानः श्रीभद्रबाहस्वामी दशाश्रत- सामाचारीनुं ज छे, अने तेम होवाथी दशाश्रतस्कस्कन्धस्याप्टमाध्ययनरूपतया प्रत्याख्यानप्रवादाभि- न्धन आठमुं अध्ययन पण तेटलाज भागने कही धाननयमपूर्वात् कल्पसूत्रामिदं सूत्रितवान्.'
शकाय. तेटला माटे, तेटला भागनेज भद्रबाहुस्वामी____ अर्थात्-आना कर्ता ते, सर्वशास्त्रप.रगामी, चतु- नी कृति तरीके मानवो जोईए. एटलं तो स्वयंदेशपूर्वना वेत्ता अने युगप्रधान एवा भद्रबाह स्वामी सिद्ध छे के भद्रबाहुस्वामीनी पछीनी पण घणी पेढिछे. तेमणे प्रत्याख्यान प्रवाद नामना नवमा पर्व- ओनी नामावली आपती स्थविरावली भद्रबाहुनी माथी दशाश्रुतस्कंधना आठमा अध्ययन रूपे आ रचेली न होई शके. तेमज ते एक कर्तानी पण कृति कल्पसूत्र रच्युं छे.
नथी. स्थविरावलीनी संक्षिप्त वाचना अने विस्तर किरणावली टीकाकारनु उपरोक्त कथन. के जेनं वाचना अथात् स्थविरोनी टंकी अने विस्तृत पनरावर्तन बीजा टीकाकारोए पण पोतानी टीका- नामावली, असलमां, बन्ने एकमेकथी स्वतंत्र होवी ओमां कर्यु छ,-के कल्पसूत्र ते पर्यषणाकल्प छे, अने ते जोईए. कारण के, ते बन्नेनी भाषाशैली अने वर्ण्यवदशाश्रतस्कन्धन आटगें अध्ययन छे; ते भलभरेलं स्तुमां परस्पर भिन्नताओ रहेली छे. आ स्थविराछ. आ भल कल्पसूत्रना अंतिम शब्दोना आशयने वलिओ, जेनी अंदर असलमां छेल्ला दशकेवली बराबर न समजवाथी थई छे. ए शब्दोनो जो बराबर ( दशपूर्वी ! ) वज्र अने तेमना अन्तवासिओनां ज अर्थ करीए तो तेनाथी एटलंज सिद्ध थाय छ के नाम हशे, तनी अंत केटलीक गाथाओ उमेरवामां कल्पसूत्र ए नाम, ए ग्रंथना छेवटना प्रकरणने आवी छ; अने तेनी अंदर फल्गुमित्रथी मांडीने देवअर्थात् सामाचारी, के जेनी अंदर यतिओना आचा- धिंगणी सुधीना स्थविरोनां नामो आवेलां छे. कल्परोना नियमो आपवामां आव्या छे, तेनेज लाग पडे सूत्रनी केटलीक प्रतिओमां आ गाथाओनं गद्यरूछे. कारण के तेना अंतमां एवं कथन छे के 'महावीरे पान्तर, तेनी पहेलां दाखल करवामां आवेलुं छे. 'आ प्रमाणे पर्युषणाकल्प नामना आठमा अध्ययननु ए तो देखीती रतिज अर्वाचीन उमेरो छे. कारण के आख्यान कर्य, भाषण कयु, प्रज्ञापन कर्य, अने घणी प्रतिओमां ए गद्यरूपान्तरने पडतुं मकवामां वारंवार उपदेश आप्यो.' आ शब्दो मात्र सामाचारी- आव्युं छे. तेमज सौथी प्राचीन टीकाकारे आ फेरने ज लागु पडी शके; कारण के जिनचरित्र अने फारनो उल्लेख पण करेलो छे. आ उपरांत, आग्रंथनी
Aho! Shrutgyanam