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डॉ. हर्मन जेकोबीनी कल्पसूत्रनी प्रस्तावना.
अंक १]
भमां ण लखेलो जोवामां आवे छे, सरखावो, हेमचंद्र १,२२९.
५) बे स्वरोनी बच्चे आवता व्यञ्जनने कायम राखवो अथवा तेना बदले बीजानो आदेश करवो, अगर तो, तेनो लोप करवो, ते बाबत ग्रंथोनी नकल करनाराओनी-लहियाओनी पसंदगी उपर आधार राखती होय तेम लागे छे.
(६) कल्पसूत्रनी एक प्रतिमां (इंडिआ ऑफिस लाईब्रेरी १५९९ ) व्व ने बदले ब्ब अने केवल अथवा संयुक्त शब्दोनी आदिना व ने माटे व लखेलो छे. उदाहरण तरीके - विवद्धन ने बदले बिबद्धन, महाबीर, इत्यादि. आ विशेषतानुं कारण एम लागे छे के प्रति पूर्व हिन्दुस्थानमा लखाई हो.
७) उ अने उ (ओ) नो घणी वार परस्पर विनिमय (अदलाबदलो ) थाय छे. परंतु तेनो ध्वनि साथ कोई संबंध नथी. कारण के ज्यारे उ अथवा उनी पहेलो व्यञ्जन आवेलो होय छे त्यारे नं०२ मां कहली बाबत बाद करता क्यारे पण परस्पर आ विनिमय थतो नथी. A अने B नामनी कल्पसूत्रनी प्रतिओमां आ संज्ञाओना संबंधमां भाग्येज भूल थली जोवामां आवे छे.
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मेळवी शकाय तेम छे. हुं एम धारुं हुं के प्रायः कोई पण वखते घळा जैनलेखकोए एक चोकस वर्ण विन्यास-पद्धतिनं अवलंबन कर्य होय तेम लागतुं नथी. कारण के गुफाओना शिलालेखोनी प्राकृतनी साथे बीजी प्राकृत भाषाओमां तेमज आधुनिक भारतवर्षनी प्रचलित देश भाषाओमां पण एकज शब्दनी वारंवार भिन्न भिन्न रीतिए जोडणी कराएली जोवामां आवे छे.
उपर वर्णवेला वर्ण विन्यास विषयक भेदो व्याकरणशास्त्रनी भिन्न भिन्न शाखाओने अंगे उभा थला छे. मारी आवृत्तिना मूळनी नीचे में तमाम विविध पाठान्तरो संभाळ- पूर्वक नोध्यां छे. मात्र छठ्ठा अने सातमा नंबरमा जणावेली हकिकतने अंगे उपस्थित थएलां पाठान्तरो लख्यां नथी. छतां पण सौथी प्राचीन अने प्रामाणिक जोडणी कई हशे तने निर्णीत करी शक्यो नथी. कागळनी घणी हस्तलिखित प्रतिओ तपासतां मने एवी प्रतीति थई छे के तेना उपरथी जैन प्राकृत भाषाना विशुद्ध वर्ण विन्यासनो पत्तो मेळवी शकाय तेम नथी. परंतु ताडपत्रनी प्राचीनतम प्रतिओने बारीकाईथी तपासतां वधारे संतोषकारक परिणाम
आ विषय पूर्ण करतां पहेलां मारे जणाववुं जोईमें जैन - प्राकृतना वर्णविन्यासना संबंधमां एक गति स्थापवानो उद्देश राख्यो नथी. पण एक जैन ग्रंथना प्रथम आ प्रकाशनना समये वस्तुस्थितिनो केटलोक ख्याल आपवो मने योग्य लाग्योछे. जो के मने आखा ग्रंथमां एकज प्रकारनी जोडणी स्वीकारवी सरळ पडत खरी — जेमके नित्य or या न ज लखवो. परंतु भारतवासिओना हृदयमां जाणे मजबूत रीते जामी गई होय तेवी अनियमिततानी अंत:प्रेरणाने आघातन पहोंचाडवा माटे में अन्य प्रतिओथी समर्थित एवी A नामनी सौथी प्राचीन प्रतिनी जोडणी साधारण रीते कबुल राखी छे. अने तेथी एक शब्दनी सदा एकज रीते जोडणी करवामां आवी नथी.
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जैन धर्म अने साहित्यने लगता सामान्य प्रश्नो ना संबंधमां हुं जेटली हकिकत एकठी करी शक्यो हुं, ते आपी दईने, हवे खास कल्पसूत्रना संबंधमां केटलुक विवेचन करीश आ ग्रंथनी, जैनोना पवित्र पुस्तको तरीके गणाता आगमोमां तो खास गणना थती नथी. अने दिगम्बरो तो एने बनावटी ग्रंथ सुद्धां कहेतां अचकाता नथी. तेमने आम कहेवानुं कारण ए छे के, एनी अंदर दिगम्बर- मान्यता विरुद्ध, महावीर त्रिशलानी कुक्षिमां आव्या तेनी पहेला देवानंदानी कुक्षिमां आव्या हता, आवुं वर्णन आवे लुं छे. परंतु आ वर्णन आचारांगसूत्र तथा आवश्यकसूत्रमां पण आंवतुं होवाथी, ए पुरातन होय
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