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डॉ. हर्मन जैकोबीनी कल्पसूत्रनी प्रस्तावना.
अगिआरमी ग्रंथशती ( ग्रंथ १०००-११००); वैषम्य (न्यूनाधिक्य ) थी सर्वथा विज्ञात छे, एम तो प्रमाण करतां प्रत्यक्षरीते वधारे ग्रंथसंख्यावाळी थ- स्पष्ट देखाई आवे छे. परंतु, तेओ आनुं कारण एली छे.तेथी जो ए प्रस्तुत प्रकरणने बातल करवामां ए बतावे छे के पर्युषणा-सामाचारीनी पहेलां जे आ आवे तो तेनी संख्या पण बराबर प्रमाणसर थई रहे बे भागो मकवामां आवेला छे ते 'मंगलार्थम् ' एटले छे. वळी स्थविरावलीना प्रथमना बे सूत्रो बीजां बधां मंगलमाटेज मकवामा आवेला छे. आ बाबत पर्यसूत्रोथी रचनामां जुदा पडे छ; अने तेथी मारा षणाकल्पनियुक्तिमां नीचे प्रमाणे जणावी छे:धारवा प्रमाणे, शायद एक वखते तेनो अंतर्भाव पुरिम-चरिमाण कप्पो जिनचरित्रमा थतो हशे. आ रीते आपणे स्थवि- उ मंगलं वद्धमाण-तित्थंमि । रावलीमां भिन्न भिन्न प्रकारना चार पांच प्रकरणों तो परिकहिया जिनपरिजोई शकीए छीए. डॉ. स्टीवन्सन जे एवं अनुमान कहा य थेरावली चेत्थ [म् ॥ करे छे के असल, जिनचरित्र ते महावीर चरित्र भावार्थ-पहेला अने छेल्ला जिनोनो कल्प वर्धजेटलं ज हशे ( कल्पसूत्र पृ० ९९), तेने हुँ खोटुं मानना तीर्थमां मंगळभूत छे. अने तेटला माटे जिमानतो नथी. परंतु साथे मारूं ए पण विशेष नचरित्रो, अने स्थविरावली अहिं कहेवामां आवी छे. मानवु छ के डॉ. स्टीवन्सने जे उमेरा दीव्या पछीना टीकाकारोए आ गाथाना उत्तरार्धने छ ते उपरांत बीजा पण केटलाक उमेरा तेमां थया छे; बदली तेने 'अधिकारत्रयम्' नी पद्यबद्ध विषयसूचिना अने तेने लईने आ भाग आटलो विस्तृत थएलो आकारमा फेरवी नाखी छे:छे. आ कथनना प्रमाण तरीके मात्र हुं चौद स्वप्नो पुरिम-चरिमाण कप्पो ना वर्णनना निर्देश करूं छं. आ वर्णन समग्र मंगलं वद्धमाण-तित्थंमि। पुस्तक नी आर्ष-भाषाशैलीथी तद्दन भिन्न पडे छे. तो परिकहिया जिनगणकारण के, एमा जे घणा लांबा लांबा अने गुंचवा- हराइ-थेरावलि-चरित्तं ॥ डा भरेला समासो दृष्टिगोचर थाय छे, ते खास, भावार्थ-वर्धमानना तीर्थमा पहेला अने मुकाबलामा अवाधीन एवा भारतवर्षीय काव्य- छेल्ला जिनोनो कल्प मंगल-स्वरूप छे, तेटला माटे साहित्यमा आवता समासोना आकारना छे. कहे- जिन ( चरित्र ) गणधरादि स्थविरावली अने चरित्र वानी भाग्येज जरूर छे के, एमां वीरनिर्वाणना ९८० अर्थात पर्यषणा-सामाचारी कहेवामा आवी छे. अने ९९३ वर्ष संबंधी जे अवतरणो आपेला छे, परंपरागत कथानुसार जैनागमोना नवीन संस्कते काना निर्देशक नथी परंतु कल्पसूत्रना संपादक रण वखते देवर्धिगणीए जिनचरित्र, स्थविरावली देवर्धिगणीने उद्देशीने लखाएला छे. जे आर्ष-भाषा- अने सामाचारी ए त्रणे भागोने कल्पसत्र एवा शैलीमा आ जिन चरित्रनी रचना थएली छे तेज नाम नीचे एकज पुस्तकमा पुस्तकारूढ कर्या होय भाषा-शैली गयरचनावाळा प्राचीन सूत्रोमां पण तेम जणाय छे,—जो के तेनो आगमोमां अंतर्भाव जोवाय छे. तेथी आना कर्ता भद्रबाहु न होई शके थतो थी. आ परंपरागत कथानी सत्यताना एम कही शकाय तेम नथी. परंतु, आ प्रश्नने प्रत्यक्ष पक्षमां बे दलीलो छ. पहेली ए के, आ बीनानी प्रमाणना अभावे अनिर्णयात्मक स्थितिमांज रहेवा तारीख कल्पसूत्रमा आपेली छे. अने बीजी ए के, देवो ठीक लागे छे.
आखुं कल्पसूत्र सो सो ग्रंथोनी ( ३२ अक्षरनो जैन विद्वानो कल्पसूत्रमा चर्चाएला विषयोना एक ग्रंथ ) प्रमाणवाळी ग्रंथ-शतिओमां वहेंची
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