________________
ज्ञानप्रदीपिका ।
भव शीघ्र विश्वास दिलाने का कारणस्वरूप सुतारिष्ट को बताता हूं। यदि लग्न और षष्ठ में चंद्रमा हो और उन से सप्तम में पापग्रह हों तो माता और पुत्र दोनों का मरन होता है। किंतु यदि पंचम और षष्ठ में पाप ग्रह हों तो माता का मरण निश्चय होगा।
૧૮
द्वादशे चंद्रसंयुक्ते पुत्रवामा क्षिनाशनम् ।
व्ययस्थे भास्करे नश्येत् पुत्रदक्षिणलोचनम् ||३||
द्वादश में चंद्रमा हो तो पुत्र की बांई आंख और सूर्य हो तो दाहिनी आंख नष्ट होती है।
पापाः पश्यन्ति भानुं चेत् पितुर्मरणमादिशेत् । चन्द्रादित्यो गुरुः पश्येत् पित्रोः स्थितिरितीरयेत् ||४||
पाप ग्रह यदि सूर्य को देखते हों तो पिता को मृत्यु और गुरु यदि चंद्र सूर्य को देख ते हों तो मा-बाप को स्थिति बताना चाहिये ।
यदि लग्नगतो राहुर्जीवदृष्टिविवर्जितः ।
जातस्य मरणं शीघ्रं भवेदत्र न संशयः ॥ ५॥
यदि लग्न में राहु बिना बृहस्पति की दृष्टि के हो तो पुत्र शीघ्र ही मरेगा- इसमें संशय
नहीं
द्वादशस्थ अर्किचंद्र नेत्रयुग्मं विनश्यति । षष्ठे वा पंचमे पापाः पश्यन्तीन्दु दिवाकरौ ॥६॥ पित्रोर्मरणमेवास्ति तयोर्मंदः स्थितो यदि । भ्रातृनाशं तथा भौमे मातुलस्य मृतिं वदेत् ॥७॥
द्वादश स्थान में यदि शनि और चंद्र हों तो जातक की दोनों आंखें मारी जाती हैं 1 पंचम किंवा षष्ठ में यदि पाप ग्रह रहें और चन्द्र सूर्य को देखें और पंचम और षष्ठ में शनि भी पड़ा हो तो मां-बाप मर जायेंगे। शनि बैठा हो तो भाई का नाश, मंगल हो तो मामा की मृत्यु बताना चाहिये ।
उदयादित्रिकस्थेषु कण्टकेषु शुभा यदि । मित्रस्वात्युच्चवर्गेषु सर्वारिष्टं विनश्यति ॥ ८ ॥
Aho! Shrutgyanam