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ज्ञानप्रदीपिका। • प्रश्न काल में स्त्री-पुरुष ग्रहों में जो बलवान होकर देखता है, उसी के अनुसार स्त्री अथवा पुरुष का जन्म कहना किन्तु लग्न यदि परिवेषादि दुष्ट ग्रहों से देखा जाता हो तो गर्भ का नाश हो जाता है।
लग्नादोजस्थिते चंद्रे पुत्र सूते समे सुताम् ।
वशान्नक्षत्रयोगानां तथा सूते सुतं सुतां ॥७॥ ला से विषम गृह में चंद्र हो तो पुत्र सम में हो तो पुत्री उत्पन्न होती है। नक्षत्र योग आदि के वश से भी पुत्र पुत्री का विचार किया जाता है।
लग्नतृतीयनवमे दशमैकादशेऽपि वा ।
भानुः स्थितश्चेत् पुत्रः स्यात्तथैव च शनैश्चरः ॥८॥ लग्न, तृतीय, नवम, दशम, एकादश में यदि सूर्य या शनि हा तो पुत्र पैदा होगा।
ओजस्थानगताः सर्वे ग्रहाश्चेत्पुत्रसंभवः ।
समस्थानगताः सर्वे यदि पुत्री न संशयः ॥६॥ लग्न से विषम स्थान में यदि सभी ग्रह हों तो पुत्र और सम स्थान में हों तो पुत्री इसमें सन्देह नहीं।
आरूढात्सप्तमं राशिं यावतीं तां सुरेष्यति (2)॥१०॥
तावन्नक्षत्रसंख्याकैः सुतः स्यादिवसः सुतम् । आरूढ़ से सप्तम राशि पर्यन्त जितने नक्षत्र होंगे उतने ही दिनों में पुत्र उत्पन्न होगा।
इति पुत्रोत्पत्तिकाण्डः
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सुतारिष्टमथो वक्ष्ये सद्यः प्रत्ययकारणम् । लग्नषष्ठे स्थिते चंद्र तदस्ते पापसंयुते ॥१॥ मातुः सुतस्य मरणं किंतु पंचमषष्ठगाः । पापाः तिष्ठन्ति चेन्मातुर्मरणं भवति ध्रुवम् ॥२॥
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