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ज्ञानप्रदीपिका ।
सहभोक्ता भोजनानि तत्तथानुभवो रिपून् । (?) मेषराशौ भवेच्छाकं वृषभे गव्यमुच्यते ॥२॥ धनुर्मिथुनसिंहेषु मत्स्यमांसादिभोजनम् । नक्रालिक र्किमीनेषु फलभक्ष्यफलादिकम् ||३|| तुलायां कन्यकायाञ्च शुद्धान्नमिति कीर्तयेत् ।
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मेष लग्न यदि बली हो तो शाक भोजन बताना चाहिये। वृष हो तो दद्दों दूध घी आदि, धनु मिथुन और सिंह हों तो मछली मांस, मकर, वृश्चिक, कर्क और मीन हो तो फलाहार और तुला कन्या हों तो शुद्ध अन्न बताना चाहिये ।
भानोस्तिक्तकटुक्षारमिश्र भोजनमुच्यते ||४|| उष्णान्नक्षारसंयुक्तं भूमिपुत्रस्य भोजनम् ।
सूर्य का भोजन तींता कडवा खारा, और मंगल का गर्म अन्न और खारा है ।
भर्जितान्युपदं सौरे सौम्यस्याहुर्मनीषिणः ॥५॥ पायसान्नं घृतैर्युक्तं गुरोर्भोजनमुच्यते ।
शनि और बुध का भोजन भुना हुआ पदार्थ, तथा वृहस्पति का घृतयुक्त पायस जानना । सतैलं कोद्रवान्नं च भवेन्मन्दस्य भोजनम् ॥६॥ समापं राहुकेत्वोश्च रसवर्गमुदाहृतम् ।
तेल में बना हुआ और कोदो भी शनि का भोजन है। उड़द के साथ यह राहु और केतु का भी भोजन है ।
जीवस्य माषवटकं सुष्ठु मीनैस्तु भोजनम् ॥७॥ चन्द्रकदर्यप्रसवमत्स्याद्य भजनं वदेत् ।
बृहस्पति और चन्द्रमा का भोजन मांस और मछलो से होता है ।
क्षौद्रापूपपयो युग्भिर्भोजनं व्यंजनैर्भृगोः ॥ ८ ॥
शुक्र का भोजन मधु दूध और अप्रूप आदि व्यंजनों से होता है 1
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