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ज्ञानप्रदीपिका।
उदय या चतुरस्त्र में यदि पाप ग्रह हों तो आठ दिन में, लग्न और द्वितीय में हो तो १४ दिन में, दशा में पाप ग्रह स्थित हों तो ३ दिन में और चतुर्थ में हों तो दश दिन में मृत्यु होगी।
निधनारूढगे पापदृष्टे वा मरणं भवेत् । तत्तद्ग्रहवशादेव दिनमासादिनिर्णयम् ॥१३॥
मृत्यु और आरूढ़ स्थान यदि पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो मरण बताना। दिन महीने आदि का निर्णय ग्रहों पर से कर लेना ।
इति मरणकाण्डः
ग्रहोच्चैः स्वर्गमायाति रिपो मृगकुले भवः । नीचे नरकमायाति मित्रे मित्रकुलोदभवः ॥११॥
स्वक्षेत्रे स्वजने जन्म मित्रं ज्ञात्वा वदेत् सुधीः । मृत्यु के समय मृत प्राणी को ग्रहों के उच्च के रहने पर स्वर्ग होता है शत्रु स्थान में रहने पर पशुयोनि में जन्म, मित्र गृह में रहने पर मित्र कुल में जन्म और स्वक्षेत्र में रहने पर स्वजनों में जन्म बताना चाहिये।
इति स्वर्गकाण्डः
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कथयामि विशेषेण मूकद्रव्यस्य लक्षणम् ।
पाकभाण्डानि भुक्तानि व्यंजनानि रसं तथा ॥१॥ अब मैं विशेष करके मूक द्रव्यों का निर्णय करता है। इस प्रकरण में पाक-माण्ड भुक्त, व्यंजन और इसका वर्णन होगा।
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