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ज्ञानप्रदीपिका।
नीचे चेद व्याधिमोक्षो न मृत्युर्मरणमादिशेत् ॥५॥ ग्रहेषु बलवान् भानुर्यदि मृत्युस्तदाग्निना । मंदः क्षुधा जलेनेन्दुः शीतेन कविरुच्यते ॥६॥ बुधस्तुषारवाताभ्यां शस्त्र णोरो बली यदि ।
राहुविषेण जोवस्तु कुक्षिरोगेण नश्यति ॥७॥ यदि लग्नेश नीव में हो तो मृत्यु बताना। यदि ग्रहों में बली सूर्य हो तो आग से, शनि हो तो भूख से, चंद्र हो तो जल से, शुक हो तो शोत से, बुध हो तो तुषार और वातसे केतु हो तो हथियार से राहु होतो विषसे और बृहस्पति हो तो कुक्षिरोग से मृत्यु होती है।
विधोः षष्ठाष्टमे पापः सप्तमे वा यदि स्थितः ।
रोगमृत्युस्तलाभ्यां (?) वा रोगिणां भरणं भवेत् ॥८॥ यदि चंद्र के छठे' या आठवें स्थान में पाप ग्रह हों तो रोगो की मृत्यु होगी।
आरूढान्मरणस्थानं तस्मादष्टमगः शशी । पापाः पश्यंति चेन्मृत्यं रोगिणां कथयेत्सुधीः ॥६॥ आरूढ़ से अष्टम स्थान को उससे अग्रम स्थान स्थित चंद्रमा और पाप ग्रह देखते हो, तो रोगी मरेगा।
द्वितीये भानुसंयुक्ते दशमे पापसंयुते । दशाहान्मरणं ब्रूयात् शुक्रजीवी तृतीयगौ ॥१०॥
सप्ताहान्मरणं व यात् रोगिणामह्नि बुद्धिमान् । द्वितीय में सूर्य हों, दशम में पाप हो तो दश दिन के भीतर ही रोगी मरेगा। और यदि शुक्र और बृहस्पति हों तो सात दिन के भीतर दिन में ही रोगी मरेगा।
उदये चतुरस्र या पापास्त्वष्टदिनान्मृतिः ॥११॥ लग्नद्वितीयगाः पापाश्चतुर्दशदिनान्मृतिः । त्रिदिनान् मरणं किन्तु दशमे पापसंयुते ॥१२॥ तस्मात्सप्तगे पापे दशाहान्मरणं भवेत् ।
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