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ज्ञानप्रदीपिका।
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ओजराशौ शुभैदृष्टे स्वेच्छया भोजनं भवेत् ।
समराशौ पापदृष्टे भुक्तेऽल्पं पापवीक्षिते ॥६॥ यदि विषम राशि को शुभ ग्रह देखते हों तो अधिकता से और सम राशि को पापग्राह देखते हों और युक्त हों तो कमो के साथ भोजन बताना चाहिये।
किंचित्पश्यति पापश्चेत् पुराणान् मधुभोजिनः । (2) अर्कारौ मांसभोक्तारौ उशनश्चन्द्रभोगिनां ॥१०॥
नवनीतघृतक्षीरदधिभिर्भोजनं भवेत् । पाप ग्रह की साधारण दृष्टि हो तो मधुर भोजन बताना। सूर्य और मंगल मांसभक्षी, शुक्र, चन्द्र और राहु मक्खन घी दूध और दही के साथ खाने वाले हैं।
जलराशिषु पापेषु सौम्येषु च दिनेषु च ॥११॥
सतैलं भोजनं ब्रूयादिति ज्ञात्वा विचक्षणः । पाप ग्रह जलराशि में हों और सौम्य ग्रह दिनवाला हों तो सतैल भोजन बताना चाहिये।
पूर्वोक्तधातुवर्गेण भोजनानि विनिर्दिशेत् ॥१२॥ मूलवर्गेण शाकादीनुपदेशाद वदेद बुधः । जीववर्गेण भुक्त्वा च मत्स्यमांसादिकानपि ॥१३॥ सर्वमालोक्य मनसा वदेन्नणां विचक्षणः ।
पूर्व कथित धातुवर्ग से भोजन, मूल वर्ग से शाक सब्जी आदि, और जीववर्ग से मांस मछली आदि का भोजन बुद्धिमान् पुरुष सब देख सुन के बतावे ।
इति भोजनकाण्डः
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