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भास्वत्याम
शरकृतिविधि
खखेन्दुवेदाधिक भास्करस्य प्रागवद्भचप्राप्तदिशः शरश्च । तत् खाष्ट भागस्य कृतिः सुधांशोयथा दिशं व्यस्तमितः खरांशोः ॥४॥
सं० टी० - खखेन्दु वेदाधिकभास्करस्य पर्वकालसंस्कारितद्दिन सूर्यस्य प्राग्वत् पूर्ववत् भचक्राप्तदिशः शरश्च तत् खाष्टभागस्य सुधांशोचन्द्रस्य यथा दिशं कृतिः, इतः खरांशोःसूर्यस्य व्यस्तं, चन्द्रग्रहणे याम्यशरे याम्या सौम्यशरे सौम्याकृतिः, सूर्यग्रहणे याम्यशरे सौम्या सौम्यशरे याम्याकृतिरिति ॥ ४ ॥
भा० टी० - पर्वकाल से संस्कारित द्विगुणित सूर्य में ४१०० को युत करके उसमें २००० का भाग देके पूर्ववत् याम्य सौम्य दिशा का शर स्पष्ट करें ( अर्थात् २१०० का भाग देने से लब्ध १।३मिले तो याम्य शर, और ८०/२/४ मिळे तो सौम्य शर होता है। फिर शेष को २७०० में गत गम्य करने से जो शेष बचे वह और पूर्व शेष इनमें से जो न्यून होय उसके अपने दशमांश से हीन करने से स्पष्टशर होता है ) स्पष्टशर में ८० का भाग देने से जो फल मिलै उसका कृति ( वर्ग ) बनावें । चन्द्रग्रहण में जिस दिशा का शेर रहता है उसी दिशा की कृति होती है, और सूर्यग्रहण में याम्यशर में सौम्य कृति और सौम्यशर में याम्यकृति होती हैं ॥। ४ ॥
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