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________________ १३९ · चन्द्रग्रहणाधिकारः। हीनं धनं पर्वणि शीतरश्मेः स्पर्शोऽथमुक्तिश्च तदिष्टकालः ॥३॥ सं० टी०-इन्दुखण्डमेकत्राङ्गहतं षड्गुणितं, अन्यत्र खपञ्च युक् खण्डविखण्डितं पञ्चाशद् युक्तेन ग्रासेन विभाजितं स्थित्यई भवति तद्दिनमान हीन पूर्णिमा घटिकासु हीनं धनं स्पर्श मोक्ष कालौ भवतः, पर्व घटिकासु हीने कृते सति स्पर्शकालः पर्वघटिकासु युते सति मोक्ष कालो भवति पर्व घटिकैव मध्यकाल इति ॥३॥ भा० टी० ग्रास के दो जगह धर के एक जगह के अंक को ६ से गुणि सजाती कर लेवै फिर दुसरे जगह घरे हुए अंक में ५० को युत करि सजाती करके इसका सजाती षद् गुणित ग्रास में भाग देने से फल स्थित्यद होती है । पर्वकाल में स्थित्यर्द्ध को घटाने से स्पर्शकाल होता है, और युक्त करने से मोक्षकाल होता है, और पन्ति के समान मध्यकाल होता है ॥३॥ उदाहरण-ग्रास ४१।७।६ है, इसको दो जगह रक्खे एक जगह के अंक को ६ से गुणा तो २४६।४२।३६ हुए, इसका एक राशि किया तो ८८८१५६ हुए, दूसरे जगह ग्रास ४१७१६ रक्खा है इसमें ५० को युत किया तो १७६ हुए, इसको सजाती किया तो ३२८०२६ हुए इसका ८८८९५६ में भाग दिया तो फल स्थित्यर्द्ध २१४२ हुई । पर्व काल ५३ । २३ में स्थित्यर्द्ध २।४२ को हीन किया तो स्पर्शकाल ५०.४१ हुआ, पर्व काल में स्थित्यर्द्ध को युत किया तो मोक्ष काल ५६३ हुआ पर्व काल के तुल्य ५३।२३ मध्य काल हुआ ॥ ३ ॥ Aho ! Shrutgyanam
SR No.009873
Book TitleBhasvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShatanand Marchata
PublisherChaukhamba Sanskrit Series Office
Publication Year1917
Total Pages182
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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